Tuesday, August 16, 2011

क्यों राह में यूँ ऱोपकर पौधे गुलाब के

क्यों राह में यूँ ऱोपकर पौधे गुलाब के
रुख मोड़ने लगे हो तुम मेरे ख़्वाब के
इस वास्ते हमने अभी निर्णय नहीं किया
हम इन्तेजार में थे मुक्कमल जवाब के
जिस शक्ल पर चिपकी हुयी हैं मुस्कुराहटें
है आंसुओं से तरबतर पीछे नकाब के
जिन पर लिखी हुयी थी मेरी दर्दे दास्तान
पुड़ीयों  में ढल रहे हैं वे पन्ने किताब के
इस गाँव भर का खून सुखाने के बावजूद
नखरे अभी भी बरक़रार हैं तालाब के .
                                                        "चरण"

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