Tuesday, May 31, 2011

कोई शख्स मेरे आंसू पोंछे

है कोई शख्स मेरे आंसू पोंछे ,
थक गया हूँ यार अब रोते रोते .

पता नहीं देख कर किसका सपना ,
जाग जाता हूँ नियमित सोते सोते .

खुद को दोस दूँ या दोस दूसरों को ,
हो गए कुछ औरकुछ होते होते .

यह जमीन वास्तविक बंजर निकली ,
थक गए सम्भावना बोते बोते .

इसे संभाल कर रखना मेरे भइया,
जो बचा है अंत में खोते खोते .
                                   "चरण"

Monday, May 30, 2011

संवरने को जी चाहता है

कई बार क़त्ल करने को जी चाहता है ,
कई बार स्वयं मरने को जी चाहता है .

हो गए हालात इस कदर बदतर ,
हद से गुजरने को जी चाहता है .

थक गया हूँ लीक पर चलते चलते ,
कुछ नया करने को जी चाहता है .

परखने को वक्त के मूसल की ताकत ,
सर ओखली में धरने को जी चाहता है .

छमा करना दोस्त मन में खोट नहीं ,
बस यों ही मुकरने को जी चाहता है .

जरा ठहरो मेरी अर्थी उठाने वालों ,
आखरी बार संवरने को जी चाहता है .
                                             "चरण"

Sunday, May 29, 2011

हम मशीने नहीं हैं

हम मशीने नहीं हैं ,
पशु पक्षी भी नहीं हैं हम ,
पेड़ , पौधे , वनस्पति भी नहीं हैं -
जो एक जगह उग कर वहीँ सुख जाते हैं .
हम मनुष्य हैं,
चलते रहना हमारा धर्म है,
हम रुकते नहीं हैं-
एक जगह पर,
हम होते हैं निराश कभी कभी -
पर खोते नहीं हैं विश्वास कभी भी ,
हम खो जाते हैं भीड़ में अक्सर -
किन्तु बिछड़ते नहीं एक दुसरे से कभी -
हो जाते हैं आँखों से ओझल ,
चले जाते हैं बहुत दूर कहीं ,
लगने लगता है -
नहीं मिलेंगे अब कभी भी कहीं भी,
किन्तु -
टकरा ही जाते हैं कहीं न कहीं -
किसी न किसी नए मोड़ पर ,
किसी न किसी नए रूप में,
फिर कभी - 
प्रस्स्नता होती है इस मिलन से -
मन में उभरने लगती हैं सारी यादें -
चल चित्र की तरह ,
किन्तु हम -
एक दुसरे को देख कर -
निकल जाते हैं चुप चाप ,
अपनी अपनी राह पर ,
बिना कुछ बोले -
बिना कुछ सुने -
क्योंकि अब -
हम हम नहीं रह जाते ,
बदल जाते हैं हमारे रिश्ते -
बदल जाता है हमारा धर्म -
बदल जाती है हमारी सोच -
बदल जाते हैं हमारे विचार -
बदल जाती है हमारी मंजिल
                                 "चरण"

Saturday, May 28, 2011

आदमी मर जाता है...

आदमी मर जाता है,
अक्सर -अचानक,
अच्छा आदमी ,
स्वस्थ आदमी ,
मृदुल स्वाभाव वाला आदमी ,
उसे दफना दिया जाता है ,
पूरी ओपचारिकता के साथ ,
या-- 
जला दिया जाता है _
समस्त निर्धारित क्रियाओं के साथ ,
या छोड़ देते हैं _
चील कव्वों के खाने के लिए _
बहरहाल , 
आदमी मर जाता है ,
उसके साथ नहीं मरती उसकी पत्नी ,
प्रेमिका भी नहीं मरती अक्सर ,
माता पिता भी नहीं मरते _
न मरते हँ बच्चे -
ईस्ट -मित्र -
नाते रिश्तेदार भी शांत हो जाते हँ -
मात्र संवेदना व्यक्त करके ,
केवल आदमी मर जाता है 
अकेला आदमी ,
न दुकान बंद होती है -
न व्यवसाए रुकता है ,
फेक्टारियां व अन्य प्रतिष्ठआन भी -
चलते रहते हँ पूरववत,कॉलेज में भी -
वैसे ही लेने लगते हैं चाय की चुस्कियां ,
राजनैतिक दाव पेच भी -
चलते रहेते हैं पहेले जेसे ही -
बस -
केवल -
एक आदमी नहीं रहता ,
अच्छा आदमी -
स्वस्थ्य आदमी -
सुंदर आदमी -
मृदुल स्वाभाव वाला आदमी .
                              "चरण"

Friday, May 27, 2011

मैं उड़ जाना चाहता हूँ

मैं संसार के सारे बन्धनों को तोड़कर उड़ जाना चाहता हूँ,
मुक्त आकाश में,
जहाँ छल हो न कपट न बैर भाव, न इरसा, न द्वेस,
बस,
एक हल्का सा झोका हो पवन का,
भीनी सी महक हो फूलों की,
पक्षी गाते हों सुरीले गीत,
चांदनी बिखरी हो चारों और,
मुझे न सुख चाहिए,
न ईस्वरिया, न सामर्थ
एक हल्का सा स्पर्स चाहिए,
स्नेह मही एक शब्द चाहिए 
करुना माहि एक आंसू चाहिए,
स्वप्निल आँख से टपका हुआ,
मैं विलीन हो जाना चाहता हूँ
छितिज़ के गर्भ में,
डूब जाना चाहता हूँ,
अथाह सागर की गह्रैओं में,
मेर लिए अर्थहीन हो गए हैं सब,
मेरी कल्पनाओं से ओझल हो गए हैं सब,
भूत,
वर्तमान और
भविष्य.
                                             "चरण" 

Tuesday, May 24, 2011

हौसला कम नहीं...

मर रहे हैं  खप  रहे  हैं  गम नहीं है  दोस्तों ,
इतना  हौसला  भी कोई कम नहीं  है  दोस्तों . 
अपने कन्धों  पर उठाये घुमते हैं अपनी लाश ,
किन्तु फिर भी आँख अपनी नम नहीं है दोस्तों .
मोल भाव में न अपना वक्त यूं जाया करो ,
और होंगे बिकने वाले हम नहीं हैं दोस्तों .
दुत्कारिये मत हमपे थोडा सा भरोसा कीजिये ,
इन्सान हैं हम बेतुके मौसम नहीं हैं दोस्तों .
झेल लेंगे हर तरह की आग को तूफान को ,
मत समझना हममें इतना दम नहीं है दोस्तों .
हर जगह इच्छा बिना न हमको यूं लहराइए ,
हम तीज के त्यौहार के परचम नहीं हैं दोस्तों 
                                                   "चरण"