Saturday, November 26, 2011

डमरू बजायेंगे

हो गया या और भी करतब दिखायेंगे
दिखा ही रहे हो तो हम भी ठहर जायेंगे
हम भी देखें क्या करिश्मा है तुम्हारे पास
एक बार हमको यह झोली दिखायेंगे
वैसे हमें मालूम है अब क्या करेंगे आप
खाली हथेली पर जरा सरसों उगायेंगे
सन्न रह जायेंगे सब देखने वाले
एक बार फिर से जब डमरू बजायेंगे
आप तो माहीर हैं जादूगिरी में
क्या आपके बेटे को मदारी बनायेंगे
पकडे गए हैं आपके कुछ गुप्त हथकंडे
शाख अपनी और अब कितनी गिरायेंगे
सोच लो कुछ और करने के लिए तुम अब
कब तलक सड़कों पे यूँ बन्दर नचाओगे
अब तो यह मेरा इलाका छोड़ दो भाई
कब तलक बच्चों को ऐसे बर्गालाओगे .
                                      "चरण" 

हवा भी रंग बदलती है

आजकल तो हवा भी रंग बदलती है
कभी इसके कभी उसके संग चलती है
पल भर को भरोसा कर भी लें तो क्या
संसद की गलियों से कभी गंगा निकलती है
अब हमें वातावरण में गर्मी चाहिए
भाषणों से भी कहीं बरफ पिघलती है
आश्वाशन से नहीं भरता हमारा पेट
पेट में अब तो भयंकर आग जलती है
अब हमें काफ़िर हवाओं से लड़ना है
सो चुके जग जाओ अब तो रात ढलती है
सुला दो मुझको कोई लोरियां गा कर
नींद  से बोझिल ये आँखे बहुत जलती हैं
कब छंटेंगे ये अँधेरे किसको मालूम है
बाहर आने को मेरी इच्छा मचलती है .
                                     "चरण"

Friday, November 25, 2011

आसमान छूकर भी बौने

आसमान छूकर भी बौने
कितने हैं मजबूर खिलौने
देह से काम निकल जाने पर
प्राण उड़े जैसे मृग छौने
अक्सर हम ऐसे फिंक जाते
ज्यों शादी में पत्तल दौने
आगे बढ़ पथ रोक रहे हैं
उनके कुछ संकल्प घिनौने
अभी अभी दफना कर आये
कुछ आशा कुछ स्वप्न सलोने
बतलाने की बात नहीं है
घर फूँका है घर की लौ ने .
                         "चरण"

Thursday, November 24, 2011

धीरे से उठाना मेरा मासूम जनाजा

कब उठाओगे हमें इतना बताइए
कब जलाओगे हमें इतना बताइए
मरे पड़े हैं कब से जिनके इन्तेजार में
कब बुलाओगे उन्हें इतना बताइए
कठोर दिल के हैं कभी रोते नहीं हैं वे
कैसे रुलाओगे उन्हें इतना बताइए
सड़ने लगा शरीर बदबू आ रही  है अब
अब तो कोई मातमी धुन ही बजाइए
कहा सुना सब माफ़ कर देना मेरे साथी
बेकार की मय्यत पर ना आंसू बहाइये
धीरे से उठाना मेरा मासूम जनाजा
नाजुक हूँ बहुत देख कर कन्धा लगाइए
झुलस न जाऊं ध्यान  रखियेगा जरुर
हो सके तो कोल्ड फायर से जलाइए .
                                      "चरण" 

Wednesday, November 23, 2011

कभी कभी ऐसा भी होता है

कभी कभी ऐसा भी होता है
मै गहरी नींद में सो रहा होता हूँ
और अनायास
कविता आकर मुझे झिझोड़ देती है
और मै
मजबूर हो जाता हूँ
कागजों पर उसकी अगवानी के लिए
ऐसी कविता
मेरी जांची परखी नहीं होती
इसलिए
जब उसपर अनुकूल प्रतिकिर्या होती है
तो मै स्वयं भी
चौंक पड़ता हूँ
अनायास जन्मी
ऐसी सार्थक कविता पर .
                   "चरण"

Tuesday, November 22, 2011

शब्दों की लकीरें

मै भावनाओं में बहकर
कविता नहीं लिखता
और न ही खड़ा करता हूँ
शब्दों का ताजमहल
मै कविता लिखने से पहले
संदर्भों की सच्चाई को
ठोक पीट कर जांचता हूँ
और
पूरी तरह आश्वस्त हो जाने के बाद
खून से रंगता हूँ कागजों को
पसीने से खींचता हूँ
शब्दों की लकीरें
और फिर
अन्सुआई आँखों से निहारकर
फेंक देता हूँ
साहित्यिक दरिंदों के बीच
अंतिम संस्कार के लिए
                        "चरण"

Monday, November 21, 2011

वर्ष गांठ के शुभ अवसर पर

यह कविता उन सभी को समर्पित है जिनका आज जन्म दिन है .
 ---------------------------------------------------------
जीवन यूँ तो छण भंगुर है
किन्तु सदियों तक चलता है
जिसने अवसर को पहिचाना
जीवन उसका हो जाता है
जिसने अवसर को ठुकराया
अपनी ही किस्मत छलता है
सूर्य रोज उदय होता है
और उसी दिन ढल जाता है
कुछ ही घंटो के जीवन में
कर्तव्य अपना कर जाता है
बादल भी कहाँ रोज गरजते
पानी भी कहाँ रोज बरसता
किन्तु थोड़े से अवसर में
हर रीता घट भर जाता है
आज तुम्हारी वर्ष गांठ है
सारी सृष्टी समर्पित तुमको
मेरी भी आयु जुड़ जाये
दुनिया गले लगाये तुमको
वर्ष गांठ के इस अवसर तक
एक युग मानव जी लेता
कितने ही संघर्षों से युक्त
घूँट घूँट विष पी लेता है
फिर भी मानव तू महान
अपनी मानवता मत खोना
जीवन जीने के हेतु है
सर धर हाथ कभी मत रोना
वैसे जीवन के सुमनों में
अपने ही कांटे बनते हैं
फिर भी अपने अपने ही हैं
भले हमारा मन छलते हैं
अभी तो केवल एक अंश ही
जीवन का बलिदान किया है
अभी तो पूरा युग बाकी है
इसका भी अनुमान किया है
समस्त सृष्टी पर यूँ छा जाना
जैसे बादल छा जाते हैं
रजनी का अंधकार मिटाने
चाँद और तारे आ जाते हैं
आज मित्र इस शुभ अवसर पर
बोलो तुमको क्या दे  डालूं
कविताओं के ढेर लगा दूँ
या दिल के उदगार निकालूं
एक कवि क्या दे सकता है
देने को उसपर क्या होता
जो समाज की पीडाओं को
अपने कन्धों पर नित ढ़ोता.
                         "चरण"





Saturday, November 19, 2011

झूठ के आगे कभी मातम नहीं होते

झूठी तसल्ली  से कभी गम कम नहीं होते
एक जुगनू से अँधेरे कम नहीं होते

सर झुकाना है तो बस सत्य के आगे
झूठ के आगे कभी मातम नहीं होते
क्यों बताते हो उन्हें तुम दर्दे दिल की बात
सब जानकर भी नयन जिनके नम नहीं होते
जीना पड़ेगा हमको कठिनाईयों के बीच
हर समय त्यौहार के मौसम नहीं होते
जिंदगी में ऐसा भी एक वक्त आता है
जब हम तो होते है मगर हम हम नहीं होते
कुछ दोस्तों पर तो भरोसा कर लिया करो
कुछ दोस्त होते हैं सभी दुश्मन नहीं होते
                                                 "चरण"

Thursday, November 17, 2011

मेरा परिचय

तुमने
मेरा परिचय माँगा है
या मेरा घाव कुरेदा है
भूखे नंगों का भी कोई परिचय होता है
पैदा होता है तो रोता है
यौवन चढ़ता है तो रोता है
यही सिलसिला  जीवन भर चलता है
संभव है परिचय में
तुम बाप का नाम भी पूछोगे
किसका नाम लूँगा
क्या सूखे बासी टुकड़ों का
सड़े गले जूठे फलों का
या फटे पुराने चीथड़ों का
मुझे नहीं बताया
मेरी माँ ने
मेरे बाप का नाम
शायद वह बता भी नहीं सकती
शायद उसको भी नहीं पता होगा
मेरे असली बाप का नाम
क्योंकि
यह भूखा पेट
उसे ठेकेदार के यहाँ भी ले गया है
जमींदार के यहाँ भी ले गया है
जागीरदार के यहाँ भी ले गया है
वह राजाओं के यहाँ गयी है
महाराजाओं के यहाँ गयी है
वह बंगलों में गयी है
कोठियों में गयी है
वह अफसरान की सेवा में भी रही है
चमचों की चिलम भी भरी है
चपरासियों तक से बतियाई है
वह नेताओं के यहाँ रही है
अभिनेताओं के यहाँ रही है
मंत्रियों के यहाँ रही है
मुख्य मंत्रियों के यहाँ रही है
प्रधान मंत्रियों के यहाँ रही है
उसने समाज सेवियों के
पांव दबाये हैं
मुल्ला मौलवी
पंडित पुरोहित
पादरी प्रीस्ट
आदि आदि के
दिल भी बहलाए हैं
उसको जगह जगह
रोटियां दिखाई गयीं
और बदले में ---------.
                      "चरण"



Wednesday, November 16, 2011

तुम हवा हो

तुम हवा हो
रुकोगी नहीं
तुम नदी हो
ठहरोगी नहीं
तुम
उगते हुए सूर्य का प्रकाश हो
बंधोगी नहीं
तुम समय हो
तुम गति हो
बढ़ना तुम्हारा धर्म है
बढ़ना तुम्हारा कर्त्तव्य है
बढ़ना तुम्हारी नियति है
और मै नादान
हवा को रोकना चाहता हूँ
नदी के बहाव को
ठहराना चाहता हूँ
सूर्य के प्रकाश को
बाँधना चाहता हूँ
तुम्हारे बढ़ने के धर्म
तुम्हारे बढ़ने के कर्त्तव्य
तुम्हारी बढ़ने की नियति पर
अंकुश लगाना चाहता हूँ
मै कितना मुर्ख हूँ
समय के प्रभाव से
कितना अनभिज्ञ हूँ
सचमुच मै कितना नादान हूँ
मै भूल जाता हूँ
मै बीता हुआ अतीत हूँ
मै चुका हुआ कल हूँ
तुम वर्तमान हो
तुम भविष्य हो
तुम्हारी गति तीव्र है
मै चल नहीं सकता
तुम्हारे साथ
क्योंकि मै भूत हूँ
थका हुआ कल हूँ
रुका हुआ पल हूँ .
            "चरण" 

आदमी

हर तरह के हाल में जीता है आदमी
हर तरह के ज़हर को पीता है आदमी
भगवान भी सीखे तो आदमी से कुछ सीखे
बाइबल कुरान और गीता है आदमी
आदमी की अहमियत कम करके न आंको
बारूद की सुरंग में पलीता है आदमी
जिंदगी भर हड्डियाँ घिसता राहा मगर
विडम्बना है आज तक रीता है आदमी
                                              "चरण"

Tuesday, November 15, 2011

रिश्ते ख़राब कर गयी महंगाई
आँखों में आंशु भर गयी महंगाई
रोज छुप छुप के वार करती है
पर्वत से ऊपर चढ़ गयी है महंगाई
मचा हुआ था शोर झोपड़ पट्टी में
पता चला कुछ घर निगल गयी है महंगाई
इसकी चपेट में कोई भी आ सकता है
हर शख्स की दुश्मन बनी है महंगाई
जब भी करती है छोटों पे वार करती है
धन्ना सेठो के घर जाने में डरती है महंगाई
सामने आये बिना ही खून कर देती है यह
पकडाई में आती नहीं है महंगाई
आज की रात चैन से सोलो
कल नया गुल खिलाएगी महंगाई .
                                     "चरण"

Monday, November 14, 2011

लड़कियां बाल कटायें ,
लड़के बाल बढायें,
आओ हम सब मिलकर ,
बाल दिवस मनायें .
                    "चरण"

Friday, November 11, 2011

बड़ी शालीनता से

हमारा दिल भी तोडा तो बड़ी शालीनता से
मेरी किस्मत को फोड़ा तो बड़ी शालीनता से
हम टकटकी लगाये उनेह देखते रहे
वे मुस्कुरा के चल दिए शालीनता से
हम तो शायद मर्यादा लाँघ चुके थे
वे रिश्ते निभाते रहे शालीनता से
हमने जो कुछ कहा सब अनसुना सा कर दिया
अपनी ही बात कहते रहे शालीनता से
आती रहेंगी अब सदा ये तल्ख़ यादों की तरह
कोशिश करेंगे भूल जायें इनको हम शालीनता से .
                                                       "चरण"

Thursday, November 10, 2011

अवसर

उस दिन 
जब सत्य ने
असत्य के आगे
अपने हथियार डाल दिए
और गिड गिडा कर
छमा याचना करने लगा
तब
पहली बार
मुझे बोध हुआ
की --मै
वर्तमान के दर्पण के सामने
भूत का लबादा पहने
इतिहास के पन्नो को
चाटता रहा हूँ
और
कोलाहल से दूर
धरती के नीचे
दूर तक
पुरानी शीलंन की तलाश में
केंचुवे सा
रेंगता रहा हूँ
उस दिन
पहली बार
मैंने
असत्य की प्रतिष्ठा को जाना
और
प्रगतिवाद के झुण्ड के साथ
सत्य पर
असत्य की विजय का
लोहा माना
देर से ही सही
पर
अब मैंने
वर्तमान को पहचान लिया है
सत्य और असत्य के
अंतर को जान लिया है
अब मुझे
कोई
बेवकूफ नहीं बना सकता
और न ही
रूढ़िवादी
दकियानूसी
जैसे शब्द कहकर
सभ्य सभाओं से
मेरा वहिष्कार कर सकता है
अब मैंने
अवसर को पहचान लिया है
अवसर को ओढ़ लिया है
अवसर पर जीता हूँ
अवसर पर मरता हूँ
अवसर जो कहता है
अवसर पर करता हूँ .
                       "चरण"

Tuesday, November 8, 2011

हमको जीने नहीं दोगी

तुम्हारी बेरुखी हमको जीने नहीं देगी 
तुममे बदलाव की आशा हमें मरने नहीं देगी 
हमारे एक सपने ने हमें कंगाल कर दिया 
जिंदगी तू ही बता और कितने इन्तहां लेगी 
हमने चाहा था उन्हें बस इतनी सी बात है 
इतनी सी बात के लिए और कितने कष्ट देगी 
माना की उनमे प्यार का अंकुर नहीं उगा 
इस एक तरफ़ा प्यार की कितनी सजा देगी 
एक अवसर दो हमें अपनी बयानी का 
फिर हमें कबूल है जो भी सजा देगी 
हम तो मर जायेंगे यार वायदा रहा 
अगर वह अपने मुह से एक बार कह देगी .
                                         "चरण"

Monday, November 7, 2011

भावनाओं के द्वार खटखटाते हुए दो भाव अब भी शेष हैं ___

हाँ जीवन का सूरज 
डूब गया भरी दुपहरी में 
साँझ घिर आयी है 
अँधेरा होने तक 
भटक गया है  कारवां गंतव्य से 
निराशा की गहरी खाइयाँ 
उलझनों के ऊँचे ऊँचे पर्वत 
पाप के कंटीले वन 
सभी कुछ सामने हैं 
अविश्वाश की गांठ अभी भी 
सुलझी नहीं 
आज फिर पनप रहा है एक नया बीमार 
गुटबंदी का जामा पहने 
किन्तु अब भी शेष है 
प्रभु की ज्योति एकता सूत्र में 
बाँधने को 
हाँ धर्म की ज्योति दिखाने को 
ताकि हम भी देख सकें 
अनंत जीवन का स्वर्ग 
यही हमारा कर्तव्य है .
                       "चरण"

Sunday, November 6, 2011

धरती पर चाँद

एक  चाँद पूनम का 
मैंने देखा है 
आकाश में नही 
पृथ्वी पर 
फटे चीथड़ों में लिपटा
चीथड़े 
जैसे वृक्छों के झुरमुट बन गये
चाँद का यौवन 
इन झुरमुटों से 
छन छन कर 
निकलता है 
बिखरता है 
बिसरता है 
बिफरता है 
पर कौन है 
जिसने 
उस ओर देखा है .
                "चरण"

चाँद के हाथ में हथौड़ा

मैंने 
चाँद के हाथ में 
हथोडा देखा 
जो तपे हुए 
लाल सुर्ख लोहे को 
बे रहमी से कूट रहा था 
लोहे ने हार मान ली 
उसका रंग काला पड़ गया 
लोहा सूरज बन गया 
चाँद के हथोडों की मार से 
दूर 
पहाड़ी की ओट में छुप गया 
आश्चर्य 
घोर आश्चर्य 
चाँद के नाजुक हाथ में हथोडा 
लोहे की कठोरता को पीटता 
सूरज को छितिज तक घसीटता 
मैंने मुट्ठी खोलकर देखी 
छाले उठ आये 
आँख मिली आंसू भर आये 
                             "चरण"

Saturday, November 5, 2011

विवशता

जिसे देखकर
मेरा दिल
मचलाने लगता था
और मै
पिच से
चुटकी भर थूक
बड़ी असभ्यता से
बीच सड़क में बिखेर देती थी
कल रात
उसके सामने
मैंने
अपने हथियार डाल दिए
हाँ
कल रात
मैंने
उस कसाई से समझौता  कर लिया
क्योंकि
मै
अपने बाप को
अ-समय
मरने देना नहीं चाहती थी .
                               "चरण"

Thursday, November 3, 2011

बाहर जाना छोड़ दिया

जब से हुयी है जुदा वो हमने सारा जमाना छोड़ दिया 
घर पर ही रहता हूँ अक्सर बाहर जाना छोड़ दिया 
उसके गम में उठता हूँ मै उसके गम मे सोता हूँ 
अब तो मैंने गलती से भी हँसना हँसाना छोड़ दिया 
जब तक थी इस जीवन मे मै महका महका रहता था 
जब से गयी है मैंने भी अब इत्र लगाना छोड़ दिया 
उससे लिपटा रहता था हर बात हिर्दय की कहता था 
अब तो मैंने सपने मे भी मुस्कुराना छोड़ दिया 
उसकी देह की खुसबू से जो पक्छी खिंच खिंच आते थे 
अब उन मूक परिंदों ने भी घर पर आना छोड़ दिया 
जिस कुटिया मे रहती थी वो उसमे अब मै रहता हूँ 
मैंने उसके प्यार के खातिर महल पुराना छोड़ दिया .
                                                            "चरण"

Wednesday, November 2, 2011

खुद पर कभी हंस कर दिखाइए

खुद पर  कभी हंस कर दिखाइये
फिर किसी और पर ऊँगली उठाइये
सम्पन्न लोगों के यहाँ जाते ही रहते हो 
कभी गरीब की भी कुटिया में आइये 
जोड़ तोड़ करके बनाया है भव्य महल 
हमको भी इस महल का कोना दिखाइये 
कैसे पचा लेते हैं आदमी का लहू आप 
हमको भी कुछ इस तरह का गुर बताइये
आप की औकात अब हम जान चुके हैं 
इस तरह न हमसे अब नजरें चुराइये
कुछ नहीं होगा तुम्हारा बेशरम लोगों 
जाइये फिर कल नया करतब दिखाइये 
आप को करना था जो भी कर चुके हैं आप 
कृपया बच्चों को अपने मत सिखाइये .
                                          "चरण"

Tuesday, November 1, 2011

एक दिन एक शायर महोदय पुलिस स्टेशन पहुंचे और थानेदार साहब से बोले श्रीमानजी मुझे एक रिपोर्ट लिखवानी है मेरा कलाम चोरी हो गया है पास में खड़े एक साहित्यकार नुमा हवालदार ने कहा जनाब मै आपको एक सलाह देता हूँ आप फेस बुक पर नजर रखिये क्योंकि आजकल चोरी का साहित्य फेस बुक पर बहुत छप रहा है क्योंकि यहाँ कोई रोकटोक नहीं है .
                     "चरण"