फिर फिसल कर गिर पड़ी कीचड़ में जिंदगी
और धंसती जा रही कीचड़ में जिंदगी
गाँव शहर ढूड ढूंड थक गए है लोग
हमको मिली रोते हुए बीहड़ में जिंदगी
मजबूर हो हालात के हाथों में बिक गयी
हर घड़ी प्रतारणा सहती है जिंदगी
शायद इसके मुह में अब जुबां नहीं
अक्सर ही खामोश सी रहती है जिंदगी
चारों तरफ शमसान सा लगता है आजकल
कुम्भकरण की नींद में सोई है जिंदगी
हो सके इस वक्त तो इसको संभाल लो
किसी सुनहरी आँख का मोती है जिंदगी .
"चरण"
और धंसती जा रही कीचड़ में जिंदगी
गाँव शहर ढूड ढूंड थक गए है लोग
हमको मिली रोते हुए बीहड़ में जिंदगी
मजबूर हो हालात के हाथों में बिक गयी
हर घड़ी प्रतारणा सहती है जिंदगी
शायद इसके मुह में अब जुबां नहीं
अक्सर ही खामोश सी रहती है जिंदगी
चारों तरफ शमसान सा लगता है आजकल
कुम्भकरण की नींद में सोई है जिंदगी
हो सके इस वक्त तो इसको संभाल लो
किसी सुनहरी आँख का मोती है जिंदगी .
"चरण"
सच कहा बहुत मजबूर हो गयी है ज़िन्दगी
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