Monday, January 2, 2012

सत्य कहाँ खो गया है

हमको नहीं मालूम सत्य कहाँ खो गया
ठण्ड का मौसम है शायद सो गया
सत्य के बगैर ही जगना पड़ेगा
उठ जाओ यार अब सवेरा हो गया
खेत में उगने लगी हैं नागफनियाँ
कौन कैसे बीज ऐसे बो गया
हम तो बैठे थे हंसीं उम्मीद में
कौन मेरे स्वप्न सारे धो गया
कल तलक जो साथ चलते थे मेरे
आज यह अलगाव कैसे हो गया
एक भला सा आदमी जिसने संभाला था मुझे
आज वही आदमी मारने को आ गया
सारी जमात आज भूखी है यहाँ
एक नेता सबके हिस्से का अनाज खा गया
कल देख कर जलती हुयी कुटिया गरीब की
मेरी आँखों में घुप अँधेरा छा गया
एक बूढ़े ने संभाला बात को
कौम का मसीहा बन के आ गया .
                                 "चरण"

No comments:

Post a Comment