Friday, December 23, 2011

सारी खुशियाँ बाँट आया हूँ

जिंदगी की सारी खुशियाँ बाँट आया हूँ
साथ में बस एक नया एहसास लाया हूँ
जीने के लिए एक सहारे की जरुरत है
वह सहारा भी अब मै ढूंढ़ लाया हूँ
मुझको नहीं मालूम अब कैसे कटेंगे दिन
जिंदगी से बहुत दूर भाग आया हूँ
उसके दामन से सभी कांटे बटोर कर
अपने सुखों की गठरी उसे सौंप आया हूँ
देख सकता था नहीं मै उसकी तन्हाई
अब उसी के हाल पर मै छोड़ आया हूँ
खुदा हाफिज़ कहा और मै निकल आया
दोस्तों पर दिल वहीँ पर छोड़ आया हूँ
                                    "चरण"


Tuesday, December 20, 2011

हुजूम

हर तरफ गलियों में सड़कों पर सवालों का हुजूम
मंजिलें मकसद नहीं ऐसे ख्यालों का हुजूम
आदमी के जहन पर इक पहराहन सा डालकर
कौम को भड़का रहा है कुछ रजालों का हुजूम
अब अँधेरे की जगह पर रौशनी के नाम पर
लोग चस्पां रहे हैं कुछ उजालों का हुजूम
जिसका जी चाहे जिसको कटारी घोंप दे
है आवामी राज में कैसी मजलों का हुजूम
हर गली हर मोड़ पर एक शोर सा कायम है अब
लोग कहते है बनेगा कल उबालों का हुजूम
ऐसी हरकत तो तारीख की जुबान पर दाग है
रहनुमाई में हो जिसकी तीर ढालों का हुजूम
बात फिर दोहराई जाएगी जमेंगी सुर्खियाँ
जब चलेगा काफिला लेकर मशालों का हुजूम
हरफ पन्नो पे नया इतिहास फिर लिखने को है
लाजिमी लगने लगा है अब हवालों का हुजूम
कल तलक जो शहर में बेमायना था आदमी
आज वो करने लगा है अपनी चालों का हुजूम .
                                                     "चरण"

Monday, December 19, 2011

desh कोई देखता नहीं

इन रहबरों की जात कोई देखता नहीं
इस देश के हालात कोई देखता नहीं
हर ओर रहजनी है कतल लूट और डाके
सत्ता की यह सौगात कोई देखता नहीं
कीमत है सौ गुनी मगर आधी है मजूरी
नेताओं की औकात कोई देखता नहीं
चांदी के चंद सिक्के न देने की वजह से
वापस हुई बारात कोई देखता नहीं
अबलायें बिकती हैं दो रोटी के वास्ते
इन बुर्जुओं के हाथ कोई देखता नहीं
रोना फिजूल है तेरा अब इस जगह
तेरे दिले जज्बात कोई देखता नहीं .
                                  "चरण" 

Sunday, December 18, 2011

इन्सान का चेहरा

वेद का चेहरा कहीं कुरआन का चेहरा
इन्सान से छल कर गया इन्सान का चेहरा
मंदिर में सरेशाम सरेसहर बिकता है
भक्त का चेहरा कहीं भगवान का चेहरा
फिर आदमी बन आदमी को मात दे गया
साधु का चेहरा कहीं शैतान का चेहरा
जिंदगी में दोस्त अक्सर ओढ़ कर मिले
जान का चेहरा कहीं अनजान का चेहरा
जाने मुझे क्यों आंकड़ों के सब्ज बाग़ में
हर कोण से दिखता है बियाबान का चेहरा
हर शख्स खुद तलाश में गुम हो गया कहीं
पहचान से जाता रहा पहचान का चेहरा
ये सब मुखौटे है जिन्हें इन्सां समझ बैठे
तुमने चरण देखा नहीं इंसान का चेहरा .
                                           "चरण"

Saturday, December 17, 2011

फाईलों में

काली करतूतें हैं यानी फाईलों में
जब्त है ऐसी कहानी फाईलों में
बाबुओं की तोंद फलती फूलती
हो रही है बागवानी फाईलों में
एक बार फंस गया जो आदमी
गल गयी उसकी जवानी फाईलों में 
खेत तो सूखे पड़े हैं देखिये
लग रहा है आज पानी फाईलों में
एक मछली है तड़पती रेत पर
हर प्रगति हिन्दुस्तानी फाईलों में
                                  "चरण"

Monday, December 12, 2011

इतने भी पागल नहीं हैं

इतने भी पागल  नहीं हैं आप की बातों में आ जायें
हम तो चाहते हैं ज़माने भर पे छा जाएँ
बेच सकते हो हमें तो बेच कर देखो
फिर न कहना यदि कच्चा चबा जायें
हरकत तुम्हारी दोगली है जानते हैं हम
हो सके तो आप भी धरती पे आ जायेँ
आसान नहीं है मुल्क के बच्चों को बहकाना
हम देखते रहे और मलाई आप खा जायें
आदत है हमें देश का अनाज खाने की
कैसे विदेशी माल के झांसे में आ जायेँ
एक बार देख चुके हैं तुम्हारी चाल
क्या चाहते हो फिर से हम गुलाम हो जायें
दाल रोटी ही भली है आपके पकवान से
कृपया मत बहुत का लालच दिखायें .
                                                 "चरण" 

Thursday, December 8, 2011

दोस्ती करते हो क्यों

जो तुम्हारी क़द्र ही करता न हो
तुम उससे दोस्ती करते हो क्यों
जो तुम्हारे प्यार की गहराई न समझे
तुम उससे प्यार ही करते हो क्यों
जो तुम्हारी न सुने अपनी ही सुनाता रहे
ऐसे घमंडी शख्स पर मरते हो क्यों
तुम भी तो इंसान हो वस्तु नहीं हो
कह दो उसको साफ साफ डरते हो क्यों
झुक जाओगे इक बार तो झुकते ही रहोगे
इस तरह अन्याय को सहते हो क्यों
प्यार करते हो कोई सौदा नहीं करते
फिर उसकी शर्तों पर यहाँ बिकते हो क्यों
तुमने ही चुना था कभी इस निकम्मे दोस्त को
अब क्या हुआ यूँ छुप छुप के आहें भरते हो क्यों .
                                                  "चरण"


Wednesday, December 7, 2011

जब से मेरी आँखों में जाला पड़ गया

जब से मेरी आँखों में जाला पड़ गया
सच मानिये दिल का उजाला बढ़ गया
अब नजर आता है मुझको साफ़ साफ़
क्यों खडी फसल पे पाला पड़ गया
आँख रहते सच नजर आता नहीं था
मेरा वजूद किस नहर में सड़ गया
क़त्ल करते हुए देखा था अपनी आँख से
फिर भी वह तो झूठ पर ही अड़ गया
चुप चाप देखता रहा अपराध बढ़ता ही रहा
सांसदों का काफिला कुछ और आगे बढ़ गया
क्या खिलाएं अपने बच्चों को यहाँ पर अब
हर चीज का मिजाज़ देखो आसमा पर चढ़ गया
बे खौफ घूमता था मैं सड़कों पर सीना तान
घबरा रहा हूँ जबसे मेरा सच से पाला पड़ गया
                                                   "चरण"

Sunday, December 4, 2011

मुझे बस प्यार चाहिए

मै प्यार की  भाषा  समझता हूँ मुझे बस प्यार चाहिए
प्यार कर सको तो करो बस यही उपकार चाहिए
कोई दौलत कमाता है कोई शौहरत कमाता है मुझे मतलब नहीं इनसे
मुझे इन सबके बदले में जरा सा प्यार चाहिए
दुनिया मुझे जीने नहीं देगी और मै मरना नहीं चाहता
जीने के वास्ते तनिक सा प्यार चाहिए
मुझे जिन्दा जला डालो या सूली पर चढ़ा दो यार
जर्रे जर्रे से यही आवाज आएगी मुझे बस प्यार चाहिए .
                                                                    "चरण"

Saturday, December 3, 2011

एक रोटी का सव

मरे हुए शरीर को घसीटती हुयी
रेगिस्तान बन गयी छातियों पर
अधमरे बच्चे को
चिपकाये हुए
एक नारी आत्मा
मेरे दरवाजे पर आ खडी हुयी
और
मूक फिल्मो की भांति
होंठ फरफराने लगी
जिसका आशय
रात की बची
एक बासी रोटी से था
मैंने जुबान पर
गोखरू उगा कर कहा
माँ
रोटी तो मेरे पास नहीं है
किन्तु
आज ही
रोटी पर ----मैंने
एक बड़ी सशक्त
कविता लिखी है
चाहो तो
पढ़कर सुना दूँ .
               "चरण"

Friday, December 2, 2011

मैं दोस्ती करता हूँ निभाने के वास्ते

मैं  दोस्ती  करता  हूँ निभाने के वास्ते
खोया हुआ विश्वाश जगाने के वास्ते
दिल से तुम्हारे दूर मै जाता नहीं कभी
जाता भी हूँ तो लौट कर आने के वास्ते
शायद तुम्हारे प्यार में पगला गया हूँ मै
खोना तो पड़ता है मगर पाने के वास्ते
आदत नहीं है मुझको कडवे बीज बोने की
मै फल उगाता हूँ तेरे खाने के वास्ते
तुम्हारे प्रेम से प्रेरित मै सुंदर गीत लिखता हूँ
कभी एकांत में तुमको ही सुनाने के वास्ते
सवाल मेरी दोस्ती पर मत खड़ा  करना
पैदा हुआ हूँ साथ निभाने के वास्ते
                                   "चरण"

Saturday, November 26, 2011

डमरू बजायेंगे

हो गया या और भी करतब दिखायेंगे
दिखा ही रहे हो तो हम भी ठहर जायेंगे
हम भी देखें क्या करिश्मा है तुम्हारे पास
एक बार हमको यह झोली दिखायेंगे
वैसे हमें मालूम है अब क्या करेंगे आप
खाली हथेली पर जरा सरसों उगायेंगे
सन्न रह जायेंगे सब देखने वाले
एक बार फिर से जब डमरू बजायेंगे
आप तो माहीर हैं जादूगिरी में
क्या आपके बेटे को मदारी बनायेंगे
पकडे गए हैं आपके कुछ गुप्त हथकंडे
शाख अपनी और अब कितनी गिरायेंगे
सोच लो कुछ और करने के लिए तुम अब
कब तलक सड़कों पे यूँ बन्दर नचाओगे
अब तो यह मेरा इलाका छोड़ दो भाई
कब तलक बच्चों को ऐसे बर्गालाओगे .
                                      "चरण" 

हवा भी रंग बदलती है

आजकल तो हवा भी रंग बदलती है
कभी इसके कभी उसके संग चलती है
पल भर को भरोसा कर भी लें तो क्या
संसद की गलियों से कभी गंगा निकलती है
अब हमें वातावरण में गर्मी चाहिए
भाषणों से भी कहीं बरफ पिघलती है
आश्वाशन से नहीं भरता हमारा पेट
पेट में अब तो भयंकर आग जलती है
अब हमें काफ़िर हवाओं से लड़ना है
सो चुके जग जाओ अब तो रात ढलती है
सुला दो मुझको कोई लोरियां गा कर
नींद  से बोझिल ये आँखे बहुत जलती हैं
कब छंटेंगे ये अँधेरे किसको मालूम है
बाहर आने को मेरी इच्छा मचलती है .
                                     "चरण"

Friday, November 25, 2011

आसमान छूकर भी बौने

आसमान छूकर भी बौने
कितने हैं मजबूर खिलौने
देह से काम निकल जाने पर
प्राण उड़े जैसे मृग छौने
अक्सर हम ऐसे फिंक जाते
ज्यों शादी में पत्तल दौने
आगे बढ़ पथ रोक रहे हैं
उनके कुछ संकल्प घिनौने
अभी अभी दफना कर आये
कुछ आशा कुछ स्वप्न सलोने
बतलाने की बात नहीं है
घर फूँका है घर की लौ ने .
                         "चरण"

Thursday, November 24, 2011

धीरे से उठाना मेरा मासूम जनाजा

कब उठाओगे हमें इतना बताइए
कब जलाओगे हमें इतना बताइए
मरे पड़े हैं कब से जिनके इन्तेजार में
कब बुलाओगे उन्हें इतना बताइए
कठोर दिल के हैं कभी रोते नहीं हैं वे
कैसे रुलाओगे उन्हें इतना बताइए
सड़ने लगा शरीर बदबू आ रही  है अब
अब तो कोई मातमी धुन ही बजाइए
कहा सुना सब माफ़ कर देना मेरे साथी
बेकार की मय्यत पर ना आंसू बहाइये
धीरे से उठाना मेरा मासूम जनाजा
नाजुक हूँ बहुत देख कर कन्धा लगाइए
झुलस न जाऊं ध्यान  रखियेगा जरुर
हो सके तो कोल्ड फायर से जलाइए .
                                      "चरण" 

Wednesday, November 23, 2011

कभी कभी ऐसा भी होता है

कभी कभी ऐसा भी होता है
मै गहरी नींद में सो रहा होता हूँ
और अनायास
कविता आकर मुझे झिझोड़ देती है
और मै
मजबूर हो जाता हूँ
कागजों पर उसकी अगवानी के लिए
ऐसी कविता
मेरी जांची परखी नहीं होती
इसलिए
जब उसपर अनुकूल प्रतिकिर्या होती है
तो मै स्वयं भी
चौंक पड़ता हूँ
अनायास जन्मी
ऐसी सार्थक कविता पर .
                   "चरण"

Tuesday, November 22, 2011

शब्दों की लकीरें

मै भावनाओं में बहकर
कविता नहीं लिखता
और न ही खड़ा करता हूँ
शब्दों का ताजमहल
मै कविता लिखने से पहले
संदर्भों की सच्चाई को
ठोक पीट कर जांचता हूँ
और
पूरी तरह आश्वस्त हो जाने के बाद
खून से रंगता हूँ कागजों को
पसीने से खींचता हूँ
शब्दों की लकीरें
और फिर
अन्सुआई आँखों से निहारकर
फेंक देता हूँ
साहित्यिक दरिंदों के बीच
अंतिम संस्कार के लिए
                        "चरण"

Monday, November 21, 2011

वर्ष गांठ के शुभ अवसर पर

यह कविता उन सभी को समर्पित है जिनका आज जन्म दिन है .
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जीवन यूँ तो छण भंगुर है
किन्तु सदियों तक चलता है
जिसने अवसर को पहिचाना
जीवन उसका हो जाता है
जिसने अवसर को ठुकराया
अपनी ही किस्मत छलता है
सूर्य रोज उदय होता है
और उसी दिन ढल जाता है
कुछ ही घंटो के जीवन में
कर्तव्य अपना कर जाता है
बादल भी कहाँ रोज गरजते
पानी भी कहाँ रोज बरसता
किन्तु थोड़े से अवसर में
हर रीता घट भर जाता है
आज तुम्हारी वर्ष गांठ है
सारी सृष्टी समर्पित तुमको
मेरी भी आयु जुड़ जाये
दुनिया गले लगाये तुमको
वर्ष गांठ के इस अवसर तक
एक युग मानव जी लेता
कितने ही संघर्षों से युक्त
घूँट घूँट विष पी लेता है
फिर भी मानव तू महान
अपनी मानवता मत खोना
जीवन जीने के हेतु है
सर धर हाथ कभी मत रोना
वैसे जीवन के सुमनों में
अपने ही कांटे बनते हैं
फिर भी अपने अपने ही हैं
भले हमारा मन छलते हैं
अभी तो केवल एक अंश ही
जीवन का बलिदान किया है
अभी तो पूरा युग बाकी है
इसका भी अनुमान किया है
समस्त सृष्टी पर यूँ छा जाना
जैसे बादल छा जाते हैं
रजनी का अंधकार मिटाने
चाँद और तारे आ जाते हैं
आज मित्र इस शुभ अवसर पर
बोलो तुमको क्या दे  डालूं
कविताओं के ढेर लगा दूँ
या दिल के उदगार निकालूं
एक कवि क्या दे सकता है
देने को उसपर क्या होता
जो समाज की पीडाओं को
अपने कन्धों पर नित ढ़ोता.
                         "चरण"





Saturday, November 19, 2011

झूठ के आगे कभी मातम नहीं होते

झूठी तसल्ली  से कभी गम कम नहीं होते
एक जुगनू से अँधेरे कम नहीं होते

सर झुकाना है तो बस सत्य के आगे
झूठ के आगे कभी मातम नहीं होते
क्यों बताते हो उन्हें तुम दर्दे दिल की बात
सब जानकर भी नयन जिनके नम नहीं होते
जीना पड़ेगा हमको कठिनाईयों के बीच
हर समय त्यौहार के मौसम नहीं होते
जिंदगी में ऐसा भी एक वक्त आता है
जब हम तो होते है मगर हम हम नहीं होते
कुछ दोस्तों पर तो भरोसा कर लिया करो
कुछ दोस्त होते हैं सभी दुश्मन नहीं होते
                                                 "चरण"

Thursday, November 17, 2011

मेरा परिचय

तुमने
मेरा परिचय माँगा है
या मेरा घाव कुरेदा है
भूखे नंगों का भी कोई परिचय होता है
पैदा होता है तो रोता है
यौवन चढ़ता है तो रोता है
यही सिलसिला  जीवन भर चलता है
संभव है परिचय में
तुम बाप का नाम भी पूछोगे
किसका नाम लूँगा
क्या सूखे बासी टुकड़ों का
सड़े गले जूठे फलों का
या फटे पुराने चीथड़ों का
मुझे नहीं बताया
मेरी माँ ने
मेरे बाप का नाम
शायद वह बता भी नहीं सकती
शायद उसको भी नहीं पता होगा
मेरे असली बाप का नाम
क्योंकि
यह भूखा पेट
उसे ठेकेदार के यहाँ भी ले गया है
जमींदार के यहाँ भी ले गया है
जागीरदार के यहाँ भी ले गया है
वह राजाओं के यहाँ गयी है
महाराजाओं के यहाँ गयी है
वह बंगलों में गयी है
कोठियों में गयी है
वह अफसरान की सेवा में भी रही है
चमचों की चिलम भी भरी है
चपरासियों तक से बतियाई है
वह नेताओं के यहाँ रही है
अभिनेताओं के यहाँ रही है
मंत्रियों के यहाँ रही है
मुख्य मंत्रियों के यहाँ रही है
प्रधान मंत्रियों के यहाँ रही है
उसने समाज सेवियों के
पांव दबाये हैं
मुल्ला मौलवी
पंडित पुरोहित
पादरी प्रीस्ट
आदि आदि के
दिल भी बहलाए हैं
उसको जगह जगह
रोटियां दिखाई गयीं
और बदले में ---------.
                      "चरण"



Wednesday, November 16, 2011

तुम हवा हो

तुम हवा हो
रुकोगी नहीं
तुम नदी हो
ठहरोगी नहीं
तुम
उगते हुए सूर्य का प्रकाश हो
बंधोगी नहीं
तुम समय हो
तुम गति हो
बढ़ना तुम्हारा धर्म है
बढ़ना तुम्हारा कर्त्तव्य है
बढ़ना तुम्हारी नियति है
और मै नादान
हवा को रोकना चाहता हूँ
नदी के बहाव को
ठहराना चाहता हूँ
सूर्य के प्रकाश को
बाँधना चाहता हूँ
तुम्हारे बढ़ने के धर्म
तुम्हारे बढ़ने के कर्त्तव्य
तुम्हारी बढ़ने की नियति पर
अंकुश लगाना चाहता हूँ
मै कितना मुर्ख हूँ
समय के प्रभाव से
कितना अनभिज्ञ हूँ
सचमुच मै कितना नादान हूँ
मै भूल जाता हूँ
मै बीता हुआ अतीत हूँ
मै चुका हुआ कल हूँ
तुम वर्तमान हो
तुम भविष्य हो
तुम्हारी गति तीव्र है
मै चल नहीं सकता
तुम्हारे साथ
क्योंकि मै भूत हूँ
थका हुआ कल हूँ
रुका हुआ पल हूँ .
            "चरण" 

आदमी

हर तरह के हाल में जीता है आदमी
हर तरह के ज़हर को पीता है आदमी
भगवान भी सीखे तो आदमी से कुछ सीखे
बाइबल कुरान और गीता है आदमी
आदमी की अहमियत कम करके न आंको
बारूद की सुरंग में पलीता है आदमी
जिंदगी भर हड्डियाँ घिसता राहा मगर
विडम्बना है आज तक रीता है आदमी
                                              "चरण"

Tuesday, November 15, 2011

रिश्ते ख़राब कर गयी महंगाई
आँखों में आंशु भर गयी महंगाई
रोज छुप छुप के वार करती है
पर्वत से ऊपर चढ़ गयी है महंगाई
मचा हुआ था शोर झोपड़ पट्टी में
पता चला कुछ घर निगल गयी है महंगाई
इसकी चपेट में कोई भी आ सकता है
हर शख्स की दुश्मन बनी है महंगाई
जब भी करती है छोटों पे वार करती है
धन्ना सेठो के घर जाने में डरती है महंगाई
सामने आये बिना ही खून कर देती है यह
पकडाई में आती नहीं है महंगाई
आज की रात चैन से सोलो
कल नया गुल खिलाएगी महंगाई .
                                     "चरण"

Monday, November 14, 2011

लड़कियां बाल कटायें ,
लड़के बाल बढायें,
आओ हम सब मिलकर ,
बाल दिवस मनायें .
                    "चरण"

Friday, November 11, 2011

बड़ी शालीनता से

हमारा दिल भी तोडा तो बड़ी शालीनता से
मेरी किस्मत को फोड़ा तो बड़ी शालीनता से
हम टकटकी लगाये उनेह देखते रहे
वे मुस्कुरा के चल दिए शालीनता से
हम तो शायद मर्यादा लाँघ चुके थे
वे रिश्ते निभाते रहे शालीनता से
हमने जो कुछ कहा सब अनसुना सा कर दिया
अपनी ही बात कहते रहे शालीनता से
आती रहेंगी अब सदा ये तल्ख़ यादों की तरह
कोशिश करेंगे भूल जायें इनको हम शालीनता से .
                                                       "चरण"

Thursday, November 10, 2011

अवसर

उस दिन 
जब सत्य ने
असत्य के आगे
अपने हथियार डाल दिए
और गिड गिडा कर
छमा याचना करने लगा
तब
पहली बार
मुझे बोध हुआ
की --मै
वर्तमान के दर्पण के सामने
भूत का लबादा पहने
इतिहास के पन्नो को
चाटता रहा हूँ
और
कोलाहल से दूर
धरती के नीचे
दूर तक
पुरानी शीलंन की तलाश में
केंचुवे सा
रेंगता रहा हूँ
उस दिन
पहली बार
मैंने
असत्य की प्रतिष्ठा को जाना
और
प्रगतिवाद के झुण्ड के साथ
सत्य पर
असत्य की विजय का
लोहा माना
देर से ही सही
पर
अब मैंने
वर्तमान को पहचान लिया है
सत्य और असत्य के
अंतर को जान लिया है
अब मुझे
कोई
बेवकूफ नहीं बना सकता
और न ही
रूढ़िवादी
दकियानूसी
जैसे शब्द कहकर
सभ्य सभाओं से
मेरा वहिष्कार कर सकता है
अब मैंने
अवसर को पहचान लिया है
अवसर को ओढ़ लिया है
अवसर पर जीता हूँ
अवसर पर मरता हूँ
अवसर जो कहता है
अवसर पर करता हूँ .
                       "चरण"

Tuesday, November 8, 2011

हमको जीने नहीं दोगी

तुम्हारी बेरुखी हमको जीने नहीं देगी 
तुममे बदलाव की आशा हमें मरने नहीं देगी 
हमारे एक सपने ने हमें कंगाल कर दिया 
जिंदगी तू ही बता और कितने इन्तहां लेगी 
हमने चाहा था उन्हें बस इतनी सी बात है 
इतनी सी बात के लिए और कितने कष्ट देगी 
माना की उनमे प्यार का अंकुर नहीं उगा 
इस एक तरफ़ा प्यार की कितनी सजा देगी 
एक अवसर दो हमें अपनी बयानी का 
फिर हमें कबूल है जो भी सजा देगी 
हम तो मर जायेंगे यार वायदा रहा 
अगर वह अपने मुह से एक बार कह देगी .
                                         "चरण"

Monday, November 7, 2011

भावनाओं के द्वार खटखटाते हुए दो भाव अब भी शेष हैं ___

हाँ जीवन का सूरज 
डूब गया भरी दुपहरी में 
साँझ घिर आयी है 
अँधेरा होने तक 
भटक गया है  कारवां गंतव्य से 
निराशा की गहरी खाइयाँ 
उलझनों के ऊँचे ऊँचे पर्वत 
पाप के कंटीले वन 
सभी कुछ सामने हैं 
अविश्वाश की गांठ अभी भी 
सुलझी नहीं 
आज फिर पनप रहा है एक नया बीमार 
गुटबंदी का जामा पहने 
किन्तु अब भी शेष है 
प्रभु की ज्योति एकता सूत्र में 
बाँधने को 
हाँ धर्म की ज्योति दिखाने को 
ताकि हम भी देख सकें 
अनंत जीवन का स्वर्ग 
यही हमारा कर्तव्य है .
                       "चरण"

Sunday, November 6, 2011

धरती पर चाँद

एक  चाँद पूनम का 
मैंने देखा है 
आकाश में नही 
पृथ्वी पर 
फटे चीथड़ों में लिपटा
चीथड़े 
जैसे वृक्छों के झुरमुट बन गये
चाँद का यौवन 
इन झुरमुटों से 
छन छन कर 
निकलता है 
बिखरता है 
बिसरता है 
बिफरता है 
पर कौन है 
जिसने 
उस ओर देखा है .
                "चरण"

चाँद के हाथ में हथौड़ा

मैंने 
चाँद के हाथ में 
हथोडा देखा 
जो तपे हुए 
लाल सुर्ख लोहे को 
बे रहमी से कूट रहा था 
लोहे ने हार मान ली 
उसका रंग काला पड़ गया 
लोहा सूरज बन गया 
चाँद के हथोडों की मार से 
दूर 
पहाड़ी की ओट में छुप गया 
आश्चर्य 
घोर आश्चर्य 
चाँद के नाजुक हाथ में हथोडा 
लोहे की कठोरता को पीटता 
सूरज को छितिज तक घसीटता 
मैंने मुट्ठी खोलकर देखी 
छाले उठ आये 
आँख मिली आंसू भर आये 
                             "चरण"

Saturday, November 5, 2011

विवशता

जिसे देखकर
मेरा दिल
मचलाने लगता था
और मै
पिच से
चुटकी भर थूक
बड़ी असभ्यता से
बीच सड़क में बिखेर देती थी
कल रात
उसके सामने
मैंने
अपने हथियार डाल दिए
हाँ
कल रात
मैंने
उस कसाई से समझौता  कर लिया
क्योंकि
मै
अपने बाप को
अ-समय
मरने देना नहीं चाहती थी .
                               "चरण"

Thursday, November 3, 2011

बाहर जाना छोड़ दिया

जब से हुयी है जुदा वो हमने सारा जमाना छोड़ दिया 
घर पर ही रहता हूँ अक्सर बाहर जाना छोड़ दिया 
उसके गम में उठता हूँ मै उसके गम मे सोता हूँ 
अब तो मैंने गलती से भी हँसना हँसाना छोड़ दिया 
जब तक थी इस जीवन मे मै महका महका रहता था 
जब से गयी है मैंने भी अब इत्र लगाना छोड़ दिया 
उससे लिपटा रहता था हर बात हिर्दय की कहता था 
अब तो मैंने सपने मे भी मुस्कुराना छोड़ दिया 
उसकी देह की खुसबू से जो पक्छी खिंच खिंच आते थे 
अब उन मूक परिंदों ने भी घर पर आना छोड़ दिया 
जिस कुटिया मे रहती थी वो उसमे अब मै रहता हूँ 
मैंने उसके प्यार के खातिर महल पुराना छोड़ दिया .
                                                            "चरण"

Wednesday, November 2, 2011

खुद पर कभी हंस कर दिखाइए

खुद पर  कभी हंस कर दिखाइये
फिर किसी और पर ऊँगली उठाइये
सम्पन्न लोगों के यहाँ जाते ही रहते हो 
कभी गरीब की भी कुटिया में आइये 
जोड़ तोड़ करके बनाया है भव्य महल 
हमको भी इस महल का कोना दिखाइये 
कैसे पचा लेते हैं आदमी का लहू आप 
हमको भी कुछ इस तरह का गुर बताइये
आप की औकात अब हम जान चुके हैं 
इस तरह न हमसे अब नजरें चुराइये
कुछ नहीं होगा तुम्हारा बेशरम लोगों 
जाइये फिर कल नया करतब दिखाइये 
आप को करना था जो भी कर चुके हैं आप 
कृपया बच्चों को अपने मत सिखाइये .
                                          "चरण"

Tuesday, November 1, 2011

एक दिन एक शायर महोदय पुलिस स्टेशन पहुंचे और थानेदार साहब से बोले श्रीमानजी मुझे एक रिपोर्ट लिखवानी है मेरा कलाम चोरी हो गया है पास में खड़े एक साहित्यकार नुमा हवालदार ने कहा जनाब मै आपको एक सलाह देता हूँ आप फेस बुक पर नजर रखिये क्योंकि आजकल चोरी का साहित्य फेस बुक पर बहुत छप रहा है क्योंकि यहाँ कोई रोकटोक नहीं है .
                     "चरण"

Monday, October 31, 2011

झूठ के पांव नहीं होते मगर दौड़ता बहुत तेज है .
                                                        "चरण"

Saturday, October 29, 2011

निष्कर्ष और निष्कर्ष बोध -सत्य

ढेर सारी जिंदगी के ढेर सारे स्वप्न 
नंगे हो पहाड़ों से फिसलकर 
धूप सेवन कर रहे हैं 
और 
बर्फ सी जमकर 
फटी आँखे 
हजारों भावनाओं को सहेजे 
पी रही है जाम 
धुंधला हो गया है आसमान 
धडकनों का -------
चुभ रहे हैं शब्द अपनों के परायों के 
अधूरे गीत बनकर जागरण के 
आत्मा में मोह भंग उदासियों में 
और 
आदमियत की दरारों में 
ठहाके गूंजते हैं -मौन -(फिर भी)
घुप अँधेरे में 
समय भी लडखडाता है 
पारदर्शी आंसुओं में 
ब्रह्मपुत्र + गोदावरी + कावेरी =सत्य की सम्भावना पर मौन 
फटती चिलचिलाती धूप 
बरगद के तले सांवली  बेटी 
बाडामी रंग का इतिहास 
जिसपर झुक रहा है 
लिख रहा है 
ढेर सारी जिंदगी के 
ढेर सारे स्वप्न .
                     "चरण"

Friday, October 28, 2011

अनब्याहे सपने

ओ मेर शहरी प्रियतम 
मैं तुम्हे क्या दूँ 
मै तो सुबह से शाम तक 
जंगल सर पर उठाये 
दर दर घूमती हूँ 
और उसके बदले में 
चन्द सिक्के हथेली पर रखकर 
तकदीर समझ कर चूमती हूँ 
ओ मेरे शहरी प्रियतम 
मै तुम्हे क्या दूँ 
क्या मेरे तन से चिपके 
फटे पुराने 
मैले कुचैले 
चीथड़ों की दुर्गन्ध 
तुम्हारे नथुने बर्दाश्त कर सकेंगे 
ओ मेरे शहरी प्रियतम 
मै तुम्हे क्या दूँ 
कहाँ से लाऊं वह शहरी चंचलता 
कहाँ से लाऊं वह इठलाना 
रूठना रूठना 
मन्ना मनाना 
मेरे खुरदरे हाथों का स्पर्श 
मेरे सूखे होंठों का चुम्बन 
क्या तुम्हे रोमांचित कर सकेगा 
मेरे प्राण 
ओ मेरे शहरी प्रियतम 
मै तुम्हे क्या दूँ
इस कलमुही धुप ने 
मेरी रक्तवाहिनियों में 
बहते हुए रक्त को 
उल्टा बहने पर मजबूर कर दिया है 
इस निगोड़ी भूख ने 
मेरे उदर की गोलाई को 
आयताकार कर दिया है 
मुझे कब भूख लगती है 
और मै कब तृप्त होती हूँ 
मुझे कुछ एहसास नहीं होता 
ओ मेरे शहरी प्रियतम 
मै तुम्हे क्या दूँ 
तुम मुझमे यौवन ढूँढोगे
पर कहाँ है यौवन 
केवल सुना है 
माँ के मरने पर 
मेरा यौवन नीलाम हो गया था 
दो गज कफ़न के बदले 
मेरे बापू 
मेरा यौवन 
उस समय 
जब मै यौवन का अर्थ भी नहीं समझती थी 
किसी लखपति के यहाँ पर 
गिरवी रख आये थे 
क्या तुम मेरा यौवन 
उस लखपति के शिकंजे से छुड़ा पाओगे प्राण 
अब मेरी संवेदन शीलता 
समाप्त हो गयी है 
इस जंक खाए हुवे मांश के लोथड़े को 
अर्थों में न बदलो प्राण 
ओ मेरे शहरी पागल प्रियतम 
इतने भावुक न बनो 
इतने कमजोर न बनो 
मेरे सोये हुए सपनो को सोने दो 
इन कुंवारे सपनो को 
अनब्याहा ही रहने दो .
                           "चरण"

Thursday, October 27, 2011

लाटरी

जब केरल सरकार ने करी लाटरी स्टार्ट 
हमने भी कटवा लिए गिनकर टिकटें आठ 
गिनकर टिकटें आठ लक अजमाकर देखें 
फ़ोकट का पैसा है थोडा खाकर देखें 
कहे "चरण" सुन भाई जगत का ऐसा खेला 
जहाँ मुफ्त का मिले वहीँ पर ठेलम ठेला 
दूजे दिन से हो गए हम सच्चे ईशा भक्त 
घर वालों को दे दिया आर्डर ऐसा शक्त 
आर्डर ऐसा शक्त न कोई गुनाह करेगा 
बाईबल में जो लिखा उसी का मनन करेगा 
और कभी अब नहीं किसी को पिक्चर जाना 
छोड़ सिनेमा गान मसीही गीतों को गाना 
पहले पूरे वर्ष में चर्च जाते दो बार 
और अब प्रारंभ कर दिया दिन में दो दो बार 
दिन में दो दो बार समय भी खूब लगाते 
हर प्रार्थना के बीच खुदा को ये बतलाते 
गर लाटरी खुल जाये हमारे नाम अभी 
जीवन भर न भूलूं यह अहसान कभी 
माह बाद ही टपक पड़ा लाटरी का परिणाम 
किन्तु उसमे गायब था बंधु अपना नाम 
बंधु अपना नाम हाथ दूजे ने मारा 
और हो गया असफल सभी प्रयास हमारा 
तब से चर्च में कर दिया आना जाना बंद 
जब हमको नहीं लाभ तो सहें क्यों कोई प्रतिबन्ध .
                                                    "चरण"

Tuesday, October 25, 2011

जब जब पर्व दिवाली आया

धरती तेरे भाग जग गए 
खुशियों के अम्बार लग गए 
आसमान इतना झुक आया 
धरती का आँचल कहलाया 
दीपों की दुल्हन के आगे 
पति रौशनी का शरमाया 
जब जब पर्व दिवाली आया 
खुशियों का त्यौहार दिवाली 
सबने मुझसे यही कहा है 
किन्तु मैंने इस अवसर पर 
केवल कोरा कष्ट सहा है 
बाहर फुलझड़ियाँ चलती हैं 
भीतर मन पंछी घबराया 
जब जब पर्व दिवाली आया 
दीवाली से दीवाली तक 
भावों का भव्य महल बनाया 
अंतर में सोयी ज्वाला को 
फूंक फूंक कर पुनः जलाया 
होंठ बने अंगारे फिर भी 
शीतलता का संग निभाया 
जब जब पर्व दिवाली आया 
इसी वर्ष अंतिम लम्हों तक 
लगा विप्पति हार चुकी है 
अधरों पर मुस्कान खिल उठी 
आँखों में सावन भर आया 
प्रथम दीप रोशन करने को 
ज्यों ही मैंने हाथ बढाया 
कानों में वे शब्द गूँज उठे 
प्रकृति ने वज्र गिराया 
जब जब पर्व दिवाली आया .
                                "चरण"
पुनश्च --कई वर्ष पहले ठीक दिवाली के दिन मेरी 
            बड़ी बहन का देहांत हो गया था तब से लेकर 
            हर दिवाली पर दिल घबराने लगता है डर
            लगने लगता है और उसी डर से उपजी है यह कविता .

Monday, October 24, 2011

आओ हम दीपक जलायें

निज देश रूपी इस दिये में 
संघटन का तेल लेकर 
स्नेह की बाती बनाएं 
आओ हम दीपक जलायें 
बाहर माना है उजाला 
किन्तु भीतर का अँधेरा 
बढ़ रहा सर्वनाश हेतु 
आओ हम उसको मिटाएँ 
आओ हम दीपक जलायें 
कितने दीपक बुझ चुके हैं 
दीप से दीपक जलाते 
कितने अब भी जल रहे हैं 
आँधियों में मुस्कुराते 
आओ इनके साथ हम भी 
दो घडी तो मुस्कुराएं 
आओ हम दीपक जलायें 
कुर्सियों की होड़ में 
जी तोड़ मेहनत कर रहे जो 
स्वर्ग हो पृथ्वी पर ऐसा
झूठ वायदा कर रहे जो 
उनके मन से 
स्वार्थ की सीलन हटायें 
आओ हम दीपक जलायें 
अपने घर में दीप मालाएं सजाना 
और दियों संग झूम कर गाना बजाना 
किन्तु उस पल याद कर लेना उनेह भी 
नियति ने जिनके दियों को 
फोड़ डाला 
और अगर संभव लगे तो 
दो दया के दीप 
उनके द्वार पर 
निश्चय जलायें 
आओ हम दीपक जलायें .
                          "चरण"

Sunday, October 23, 2011

दीवाली

दमे से खांसती 
पेबंद लगे लिबास में 
जर्जर हड्डियों पर 
अपने आप को संभालती 
लो फिर आ गयी है 
सदियों से चली आ रही 
परम्परा ----दीवाली 
चौदह वर्ष के बनवास के पश्चात 
रामचन्द्रजी के पुनः नगर प्रवेश पर 
जिसने की थी अठखेलियाँ मनाई थी खुशियाँ 
आज वही दीवाली 
लगती है पराई सी 
खोई खोई सी 
और देश के एक कोने पर खड़े होकर 
देख रही है उसी के नाम में 
जलते हुए दीयों के प्रकाश में 
लुटते हुए लाखों करोडो रामचन्द्रों को 
लुटती हुयी सीताओं के सतीत्व को 
भर पेट भोजन 
तन भर वस्त्रों के अभाव में 
बिलखते हुवे लव कुशों को 
और देख रही है 
चन्द मुट्ठी भर रावणों को 
मय के प्यालों में 
भर भर लहू के घूंट पीते 
और तेल के स्थान पर 
लहू में भीगी हुयी बत्तियों की 
रक्तिम लौ में
अपने आप को देखकर 
सोचती है 
क्या 
मै
दीवाली 
इतनी बूढी हो चली हूँ ?
                   "चरण"

Friday, October 21, 2011

ओ दिए दीपावली के

ओ दिए दीपावली 
तोड़ दे इस मौन को अब 
कब तलक चुपचाप तू 
इस आग में जलता रहेगा 
आदमी तो हो गया 
आदि अँधेरे के पथों का 
और इस अंधकार में चलता है 
और चलता रहेगा 
 कौन समझेगा तेरी इस 
मौन भाषा को यहाँ पर 
पाप का साया है लम्बा 
और लम्बाता रहेगा 
स्वार्थ और पुरुषार्थ का 
अंतर समझ लेगा यह मानव 
तू समझता है तेरे प्रकाश में 
भूल करता है दिए तू 
व्यर्थ ही जलता है 
और जलता रहेगा 
कौन तेरे त्याग से प्रेरित हुआ है 
कौन तेरे दर्द से द्रवित हुवा है 
कौन तेरी आत्मा में लींन होकर 
मोड़ देगा अपने मन को 
तुझमे ही गंभीर होकर .
                           "चरण"

Thursday, October 20, 2011

फिर भी वोट मुझे ही देना

माना मै इस योग्य नहीं हूँ देश के खातिर प्राण गवाऊं 
माना मैं इस योग्य नहीं हूँ देश का सच्चा पूत कहाऊँ
किन्तु एक निवेदन मेरा इस पर ध्यान अवश्य देना 
फिर भी वोट मुझे ही देना 
यह सच है मैंने दीनो का रक्त पिया है 
यह सच है मैंने अपना ही भला किया 
किन्तु यही कहता हूँ तुमसे इस पर ध्यान अवश्य देना 
फिर भी वोट मुझे ही देना 
पढ़ा लिखा बेकार घूमता इसका श्रेय भी मुझको ही है 
और मेरे दो अनपढ़ बेटे चीफ मेनेजर इसका श्रेय भी मुझको ही है 
ध्यान अगर देना ही चाहो इस पर ध्यान अवश्य देना 
फिर भी वोट मुझे ही देना 
हरिजनों से नफरत करता इसमें कोई शक नहीं है 
और जहाँ मै खड़ा हुवा हूँ इस पर मेरा हक़ नहीं है 
गाली देना चाहो तो जी भर कर देना 
फिर भी वोट मुझे ही देना 
और यदि मै चुना गया तो गिन गिन कर बदला ले लूँगा 
तुम जितने बैठे हो प्यारों सबका गला घोंट डालूँगा 
मेरी बात बुरी लगी तो बुरा मानना
फिर भी वोट मुझे ही देना 
                                      "चरण"

Sunday, October 16, 2011

एक मौका तो दो

मुझको मेरे प्यार के इजहार का मौका तो दो 
आ गयी हो तो मुझे  आभार का मौका तो दो 
तुम परी हो अप्सरा हो हूर हो मन्दाकिनी 
आँख भर कर देख लेने का मुझे मौका तो दो 
मैं समझता हूँ तुम्हारे प्यार के काबिल नहीं 
फिर भी थोडा पास आने का मुझे मौका तो दो 
तुम्हारे रूप रंग हुश्न का कायल हूँ मैं 
तुम्हारी महक पाने का जरा मौका तो दो 
तुम्हारी चाह में कितने दीवाने हो गए पागल 
मुझे भी टूट जाने का जरा मौका तो दो 
दूर से ही फूल बरसाती रहोगी होंठ से 
मुझे भी मुस्कुराने का जरा मौका तो दो 
तुम्हारी आँख है या झील है या हिंदमहासागर 
मुझे भी डूब जाने का जरा मौका तो दो 
मेरे दिल को कुचल कर जा रही हो जानेमन 
बिखरे हुए टुकड़े उठाने का जरा मौका तो दो 
                                                     "चरण"

Saturday, October 15, 2011

हे सूर्यकांत शत शत प्रणाम

हिंदी के गर्वोंमुख शिखर 
अजर अमर अभिव्यक्ति स्वर 
पौरुष ध्वज कर्नाकांत सरल 
शिव तुमने निशिदिन पिया गरल 
आल "जुही की कलिका " है अतिशय उदास 
व्यक्ति "स्मृति है सरोज " की आतुर "तुलसी दास"
चल रहा अभी भी "भिक्षु" वही लकुटिया टिकाकर 
इलाहाबाद पथ पर / अब भी 
तोड़ रही वह बेबस पत्थर 
युग के दधिची ,पीड़ा के कवि
नव युग दृष्टा सृष्टा युग रवि 
हे तपोपूत  त्यागी अकाम 
हे सूर्यकांत तुमको प्रणाम 
हे ज्योति पुंज शत शत प्रणाम .
                                 "चरण"

Friday, October 14, 2011

हर रोज यही होता है

हर रोज घर से निकलता हूँ 
और सोचता हूँ 
वह दोड़ते हुवे आएगी 
मुझसे लिपट जावेगी 
अपना सर 
मेरे सीने में छुपा लेगी 
बहुत देर तक खड़े रहेंगे 
नि:शब्द
फिर मै उसका सर ऊपर उठाऊंगा 
उसकी पेशानी को चूम लूँगा 
और फिर बैठ जायेंगे 
कहीं एकांत में 
वो कैसे मुस्कुराएगी 
वो कैसे बोलेगी 
हम क्या बातें करेंगे 
कितनी खूबसूरत लगेगी 
वह बातें करते हुवे 
फिर घंटों तक 
यूँ ही बतियाते रहेंगे 
एक दूसरे से 
वह खिलखिला पड़ेगी
बीच में 
पेड़ के पत्ते हिलने लगेंगे 
ठंडी हवा का झोंका 
हमें छू कर चला जायेगा 
शाम ढलने को आ जाएगी 
हम खड़े हो जायेंगे 
लिपट जायेंगे एक दुसरे से 
फिर एक बार 

सोचते सोचते मेरा रास्ता कट जाता है 
और मै 
पहुँच जाता हूँ कहीं का कहीं 
किन्तु 
उसके पास कभी नहीं पहुँच पाता .
                                    "चरण"

Thursday, October 13, 2011

रात कैसे बीत जाती है

अब सभी बातें पुरानी याद आती हैं
कभी इनकी कभी उनकी कहानी याद आती है
उलझे रहते हैं इसी उधेड़ बुन में हम
पता नहीं कब रात कैसे बीत जाती है
कभी उनसे मिले थे उस समय हम मनचले थे
वह भोली शक्ल भी आजकल अक्सर रुलाती है
सोते थे जिस तश्वीर को सीने से लगाकर
उसकी नाराजगी भी अब सताती है
हर रोज वही हादसा हर रोज वही डर
एक आवाज़ है जो दूर से अक्सर बुलाती है
मजधार में क्यों छोड़ कर हमको चले गए
तुम्हारी याद आती है तो बस आती ही रहती है
भीड़ है लेकिन हमी गुमनाम हो गए
अब हमारे नाम की कोई भी चर्चा नहीं होती
जब तलक चलती है गाड़ी तब तलक चलती रहे
एक दिन तो धड धडाकर गिर ही जाती है .
                                              "चरण" 

Tuesday, October 11, 2011

क्यों सताती ह

मै जितना पास आता हूँ तुम उतनी दूर जाती हो 
मेरी तनहाइयों पर दूर से मरहम लगाती हो 
ज़रा नजदीक तो आओ हमारे पास में बैठो 
यूँ हमसे दूर रहकर क्यों हमें इतना सताती हो
तुम्हारे मन में क्या है और तुम्हारी सोच में क्या है 
तुम अपने दिल की हर एक बात क्यों हमसे छुपाती हो 
हमें लगता है हमको एक दिन पागल बना दोगी
जरा सा मुस्करा दो क्यों हमें इतना रुलाती हो 
तुम भी इन्सान हो आखिर परिंदा तो नहीं हो 
मेरी आहट सुनकर फुर्र से उड़ क्यों जाती हो 
तुम्हे भी चाह तो होगी हमें स्वीकार करने की 
इसी के वास्ते हर रात को सपनो में आती हो 
कहीं पर फूल झड़ते हैं कहीं मोती बरसते हैं 
बड़ी शालीनता से जब कभी भी मुस्कराती हो 
                                                  "चरण"











Thursday, October 6, 2011

जब मै मायूस होता हूँ

कभी मायूस होता हूँ या थक कर टूट जाता हूँ 
किसी एकांत में जाकर ग़ज़ल को गुनगुनाता हूँ 
मुझे आराम मिलता है मेरी हालत सुधरती है 
सभी गम दूर होते हैं सभी दुःख भूल जाता हूँ 
आज कंगाल हूँ माना कोई छप्पर नहीं सिर पर 
पुरानी याद कर करके मै खुद ही मुस्कराता हूँ 
मैं जब  जब भी गिरा हूँ इस गजल ने ही संभाला है 
प्रेयसी मान कर इसको मै सीने से लगाता हूँ 
मैं गूँगा था मैं बहरा था मै लंगड़ा और लुल्हा था 
इसी के पुण्य से मैं आजकल कुछ बोल पाता हूँ 
कभी उपहास करती है कभी खिल्ली उड़ाती है 
इस अंदाज़ में भी कुछ न कुछ गंभीर पाता हूँ
कोई न देख ले मुझको कभी रोते हुवे साथी
मैं इसकी पीठ के पीछे मेरा चेहरा छुपाता हूँ .
                                                    "चरण"

रावण का विद्रोह

मेरे देश के महानुभावों 
सावधान हो जाओ 
अब मै चुप नहीं रहूँगा 
सहन करने की भी कुछ हद होती है 
अब पानी 
सर के ऊपर से गुजर चूका है 
मै सदियों से 
पीड़ा  दायनी अग्नि के शोलों में 
छटपटाता रहा हूँ 
तड़पता रहा हूँ 
और तुमने मेरे दर्द को नहीं जाना 
उलटे 
मेरी मर्मान्तक पीड़ा पर 
तालियाँ बजा 
खिलखिला कर हँसते रहे 
और फब्तियां कस कस कर 
भोंडा सा मजाक उड़ाते रहे 
मेरे आंसुओं में अपनी 
फुझारियां जला जला कर 
मुझे असहनीय कष्ट पहुंचाते रहे 
और मैं चुपचाप खड़ा खड़ा सब कुछ सहता   रहा 
किन्तु अब 
मैं शांत नहीं रहूँगा 
माना मैंने पाप किया है 
किन्तु 
क्या सदियों से भोगा हुआ दुःख 
इस पाप का प्रायश्चित नहीं है 
जरा अपने गिरहबान में मुह डाल कर देखिये 
तुम्हारे समाज में 
कितने भयंकर रावण पैदा हो गए हैं 
और केवल रावण ही नहीं 
बल्कि 
राम भी ऐसे करिश्मे दिखा रहे हैं 
जिन्हें देखकर 
मुझे भी शर्म आती है 
मैंने तो सीता को  
केवल परेशान ही किया था 
यहाँ तक की मैंने तो स्पर्श तक नहीं किया 
ये तो तुम खुद भी जानते हो 
यदि स्पर्श किया होता 
तो क्या सीता अग्नि परीक्षा में खरी उतरती 
किन्तु आज 
आज तो तुम्हारी नाक के नीचे 
कितने ही राम और रावण 
आपस में समझोता कर 
एक रोटी का भुलावा देकर  
सिलकियन्न सीताओ को 
सरेआम 
जंघाओं पर बैठा कर 
बे रहमी से  
उनकी बोटी बोटी 
नोच खाने को उतारू हो गए हैं 
और फिर 
जब वही रावण 
और वही राम 
एक दुसरे के हाथ में हाथ डाले 
किसी बड़ी सभा में आपस में मिलते हैं 
तो आप धरती तक झुख कर 
उन्हें नमस्कार करते है
इसलिए की आपमें 
उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं है 
और अब मै 
विद्रोह करके रहूँगा  
अगर कानून है तो सबके लिए हो 
यदि मुझे 
मेरे पापों की सजा देने के लिए 
जलाया जा सकता है 
तो समाज में फैले 
इन दुसरे रावनो में भी आग लगाओ 
और न केवल रावनो में 
बल्कि उस रामचंदर में भी 
जो अभी थोड़े दिन पहले 
उस आदिवासी घसीटा की 
पत्नी सुखिया को उडा ले गया था 
और बेचारे घसीटा को अयोग्य घोषित कर 
रिजेक्ट कर दिया गया 
अगर यह नहीं कर सकते 
तो मुझे भी 
हमेशा हमेशा के लिए 
मुक्त कर दिया जाए 
और मैं जानता हूँ 
मुझे मुक्त करना तुम पसंद नहीं करोगे 
क्योंकि 
तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के मनोरजन का 
एक साधन समाप्त हो जायेगा 
किन्तु मी लोर्ड 
कुछ भी हो 
अब मैं चुप नहीं रह सकता 
मेरे अंतःकरण में 
विद्रोह की ज्वाला भड़क रही है 
इसका 
कुछ न कुछ समाधान 
तो होकर ही रहेगा 
 
                        "चरण"









  

Monday, October 3, 2011


आजकल हर रोज लुट रही सुखिया   
                                "चरण"

Thursday, September 29, 2011

कविता मेरे लिए क्या है

आज अपने मन की बात कह रहा हूँ  फिर न जाने वक्त हो न हो .
कविता मेरी रूह में बस्ती है 
कविता मेरी सांसों में चलती है 
मेरे संस्कार है कविता 
 मेरा आधार है कविता 
अनूठा प्यार है कविता 
मेरा ईमान भी कविता
मेरा भगवान भी कविता bb
मै कविता को जीता हूँ 
मैं कविता को पीता हूँ
 मैंने जो भी पाया है सब कविता से पाया है
कविता ने ही मुझे ऊपर उठाया है 
मुझे सम्मान देती है
अधरों पर मेरे मुस्कान देती है
मेरी पत्नी भी कविता है
मेरे बच्चे भी कविता है
कभी माँ बनके आती है
पिता का प्यार देती है 
मेरे संग तो मेरी कविता
सैकड़ों रिश्ते निभाती है
कभी मै टूट जाता हूँ
कभी ग़मगीन होता हूँ
कभी आँखें बरसती हैं
तो चुपके से ये आती है
गुदगुदी कर हंसाती है
कभी जब नींद में भयभीत हो
मै जाग जाता हूँ
तो मेरे पास में आकर
थपकियाँ दे कर
फिर से सुलाती है
मेरी आराधना कविता
मेरी संभावना कविता
मेरी बस एक ही इच्छा
अगर मैं प्राण त्यागूँ तो
मेरे अधरों पे कविता हो
मेरी आँखों में कविता हो
मुझे कन्धा लगाने में 
मेरी अर्थी उठाने में 
वही सहयोग दें यारों 
जो कविता को लिखते हों
जो कविता को पढ़ते हों
मेरे अंतिम संस्कार में
कोई  भी मंत्र मत पढना
बस कविता पाठ कर लेना .
                             "चरण"

















Tuesday, September 27, 2011

बचपन के दिन

बुढ़ापे में जीवन हुआ छिन्न भिन्न 
लौट क्यों नहीं आते वे बचपन के दिन 
पलभर ने बीत गए ख़ुशी भरे दिन
अब हम दिन काट रहे पल पल गिनगिन
अम्बिया की बगिया में कनपतिया खेल 
एक पल लड़ मरना और दूजे पल मेल 
फटे हुवे कुरते की पकड़ पकड़ दम  
लल्लू था कल्लू था हम थे और तुम  
भरी दोपहरी में निकल रहा तेल 
पिछवाड़े खेल रहे रेल रेल खेल 
अध् पक्की अम्बियों पर ढेलों के वार
गदराये अधरों से टपक रही लार 
जामफल और जामुन के हरे भरे बाग़
आते हैं आजकल बहुत बहुत याद
सुलग सुलग उठती है मन में एक आग
कैसे हम भूलें उन गन्नो का स्वाद
आँगन में लालड़ी और कोडियों का खेल
प्रदर्शित करता था आपस का मेल
संध्या को दादी की अगल बगल बैठ 
शत्रुओं के बच्चे भी करके घुसपैठ
बोल रहे मीठी मनमोहक बानी 
दादी सुनाईये दिलचस्प कहानी 
दादी ले जाती थी परियों के देश 
अब मित्र यादें रहीं मात्र शेष 
बाक़ी हमारा सर्वस्व गया छिन्न 
लौट क्यों नहीं आते वे बचपन के.
                                "चरण"



















Saturday, September 24, 2011

कहते हैं हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है पर किस औरत का घरवाली या बाहरवाली .
                                                                                                                                              "चरण"


Thursday, September 22, 2011

अब तो सड़कों पर उठाकर फन चला करते हैं सांप 
सारी सडकें साफ़ हैं कितना भला करते हैं सांप ,


Tuesday, September 20, 2011

बेचारी जिंदगी

फिर फिसल कर गिर पड़ी कीचड़ में जिंदगी
और धंसती जा रही कीचड़ में जिंदगी
गाँव शहर ढूड ढूंड थक गए है लोग
हमको मिली रोते हुए बीहड़ में जिंदगी
मजबूर हो हालात के हाथों में बिक गयी
हर घड़ी प्रतारणा सहती है जिंदगी
शायद इसके मुह में अब जुबां नहीं
अक्सर ही खामोश सी रहती है जिंदगी
चारों तरफ शमसान सा लगता है आजकल
कुम्भकरण की नींद में सोई है जिंदगी
हो सके इस वक्त तो इसको संभाल लो
किसी सुनहरी आँख का मोती है जिंदगी .
                                              "चरण"

बेचारी जिंदगी

Monday, September 19, 2011

और थोड़ा साथ निभालो यारों

शमसान तक तो साथ में चलो यारों
और थोड़ा साथ निभालो यारों
मरकर भी निभायेंगे दोस्ती का असूल
आज मेरे साथ कसम खा लो यारों
दूसरी दुनियां में मिलेंगे शायद
यह भ्रम मस्तिष्क से निकालो यारों
कहते हैं सुरापान से घट जाता है कुछ गम
सब मिलके दो दो बूँद मेरे हल्क में डालो यारों
वसीयत लिख दी तुम्हारे नाम जो भी था मेरा
अब इसे प्यार से संभालो यारों
वो भी मेरी कब्र पर आएगी या नहीं
एक सिक्का मेरे नाम से उछालो यारों .
                                             "चरण"
शमसान तक तो साथ में चलो यारों
और थोड़ा साथ निभालो यारों
मरकर भी निभायेंगे दोस्ती का असूल
आज मेरे साथ कसम खा लो यारों
दूसरी दुनियां में मिलेंगे शायद
यह भ्रम मस्तिष्क से निकालो यारों
कहते हैं सुरापान से घट जाता है कुछ गम
सब मिलके दो दो बूँद मेरे हल्क में डालो यारों
वसीयत लिख दी तुम्हारे नाम जो भी था मेरा
अब इसे प्यार से संभालो यारों
वो भी मेरी कब्र पर आएगी या नहीं
एक सिक्का मेरे नाम से उछालो यारों .
                                             "चरण"

Friday, September 16, 2011

इतने दिन अमेरिका में था तो महंगाई के दर्शन नहीं हुए ,यहाँ आते ही बाल खड़े हो गए .

Monday, September 5, 2011

आँखों में ग्लिसरीन लगा रहे हो ,क्या किसी शोक सभा में जा रहे हो .
                                                       "चरण"

Sunday, September 4, 2011

बोलो तुमसे क्या बातें करें ,तुम्हे तो केवल लाशें गिनने की आदत है .
                                                                                            "चरण"

Saturday, September 3, 2011

पिछले दिनों
कविता के छेत्र में
हमने कुछ ऐसे बीज बोये
कि
हमारी हास्य रस कि कविता पर
श्रोता फूट फूट रोये .
                         "चरण"
मचा हुआ है आजकल हल्ला चारों ओर
अमिताभ को सौंफिये राजनीती की डोर
राजनीती की डोर सभी को खुश कर देगा
मार मार विरोधियों का भुस भर देगा .
                                           "चरण"
पता नहीं अब ऊंट किस करवट बैठेगा
                                                "चरण"

Friday, September 2, 2011

तुम हमें खून दो ,हम तुम्हे सर्तिफिकेट देंगे .
                                                     "चरण"

Wednesday, August 31, 2011

अब हमें नपना नहीं हैं


यहाँ धधकती आग में मत कूदिये
यह शहर अपना नहीं है
कागजी फूलों की रक्षा के लिए
धूप में तपना नहीं है
सामने जो वृक्ष पर आंते तंगी हैं
सत्य है सपना नहीं है
आजकल हर रोज घटते जा रहे हैं
अब हमें नपना नहीं है .
                                "चरण"

एक मुट्ठी में सिमट कर रह गया है आसमा

एक मुट्ठी में सिमट कर रह गया है आसमा
अब बेचारे चाँद तारे पैर फैलाएं कहाँ
बिल्डिंगों के मोह में जो फूंक आये झोंपड़े
अब बताओ लौट कर जाएँ तो वे जाएँ कहाँ
बीच में चट्टान है चारों तरफ है खाइयां
रास्ता कोई नहीं अब भाग कर जाएँ कहाँ
कल तलक तो खून का इल्जाम लादे फिर रहे थे
अब बताओ आपने वे वस्त्र धुलवाए कहाँ
हर जलाशय पर बिठा रखे हैं अपने पहरुवे
शर्म लगती है मगर अब डूबने जायें कहाँ .
                                                      "चरण"
किस किस को याद कीजिये किस किस को रोईए
आराम बड़ी चीज है मुह ढांक कर सोईये .
                                                   "चरण"
लड़कियां कुछ भी लिखती हैं तो बेसुमार कमेंट्स मिलते हैं
आदमी मर के लिखते हैं तो भी चर्चे  नहीं होते .
                                                              "चरण"

Tuesday, August 30, 2011

दल बदल

दल बदल
आपसे मिलकर के हम फिर से सबल हो जायेंगे
आप घोड़े ही रहो हम अस्तबल हो जायेंगे
आज  अपना लो हमें हम आपके आधीन हैं
वर्ना ये दल छोड़कर फिर दल बदल हो जायेंगे
खोटे सिक्के ही सही किन्तु हमें उम्मीद है
आपके प्रताप से हम फिर शायद चल जायेंगे
एक अवसर और दो तो हाथ कुछ दिखलायें हम
आपके सारे विरोधी आग में जल जायेंगे
इसलिए फिर से जमीं पर थूक कर हम चाटते हैं
आपके अहसान से बच्चे मेरे पल जायेंगे .
                                               "चरण"

बिल


एक रात
जब सारी जनता सो रही थी
तब
सेठ फूलचंद
और उनके मुनीम घासीराम के बीच
व्यापार की बातें हो रहीं थीं
मोहन का बिल बन गया
जी हाँ
सोहन का बिल बन गया
जी हाँ
खच्चू का बिल बन गया
जी हाँ
बच्चू का बिल बन गया
जी हाँ
और किस किस का बिल बन गया
जी सबका बिल बन गया
उनके इस मधुर वार्तालाप को
ओट में खड़े कुछ चूहे सुन रहे थे
और अपना सर धुन रहे थे
लो अब मनुष्य के भी बिल बनने लगे
ये भी हमारी ही छाती पर दाल दलने लगे
जब आदमी ही बिल में रहने आयेंगे
तो चूहे बेचारे कहाँ जायेंगे .
                               "चरण"
मेरे आँगन में इस बरसात में बरसे हैं सांप
डरता हूँ बाहर आते ही डस लेंगे सांप .
                                               "चरण"

Monday, August 29, 2011

सूरजमुखी का फूल


सूरजमुखी का फूल बनके जी रहे हैं हम
कैसी विडम्बना है की विष पी रहे हैं हम
लो भोर हो गयी की हम जागने लगे
सूरज की ओर दोस्तों फिर ताकने लगे
अब शाम तक के वास्ते फिर जी रहे हैं हम
कैसी विडम्बना है की विष पी रहे हैं हम
न मोक्ष की चाहत हमें न त्याग भावना
मजबूरियों में कर रहे हम गम का सामना
अंधी गुफा में जिंदगी को जी रहे हैं हम
कैसी विडंबना है की विष पी रहे हैं हम
सपनो में शहंसा बने और दिन में लुट गए
सपनो के राज दोस्तों सपनो में छुट गए
सपनो के चीथड़ों को फिर से सीँ रहे हैं हम
कैसी विडम्बना है की विष पी रहे है हम
आओ की वक्त हो गया पंखुड़ी समेत लें
अब जिंदगी की रेख को हम खुद ही मेट लें
नागों की छत्रछाओं में अब जी रहे हैं हम
कैसी विडंबना है की विष पी रहे हैं हम .
                                                    "चरण"
हम हैं कितने भोले
चुपचाप बैठे देख रहे हैं शोले .
                                   "चरण"
अन्ना जी अब भूख लगी है रोटी दो .
                                             "चरण"
भयभीत हो चौराहों पर आने लगे हैं सांप
बौखलाहट में फन उठाने लगे हैं सांप .
                                               "चरण"

Sunday, August 28, 2011

कौन कहता है मेरा महबूब गंजा है
भला कहीं चाँद पर भी बाल हुआ करते हैं
                                                  "चरण"
इतना नहीं है भय "चरण "
जंगल की आग  से
जितना कि खतरा है हमें
घर के चिराग से .

Saturday, August 27, 2011

जंगल के सभी जानवरों को
मेरी हार्दिक शुभ कामना है
क्योंकि
अब उनके
मनुष्य बनने की पूरी संभावना है .
                                 "चरण"