Thursday, June 30, 2011

दो ग़ज़ल

वक्त ने हमको कहीं का नहीं छोड़ा
हर जगह तोड़ा कहीं जियादा कहीं थोड़ा

अपनी इच्छा से चले  मंजिल तलाशने
वक्त ने जब चाहा जिधर चाहा उधर मोड़ा

अपनी ही रफ़्तार से हमको लिए चला
जिसपर सवार था ,था वह वक्त का घोड़ा

जब सफलता की कहीं संभावना जगी
वक्त ने तत्काल ही अटका दिया रोड़ा

नादान नहीं ,पागल नहीं ,मासूम थे वे लोग
वक्त के संकेत पर अपनों का सर फोड़ा .
--------------------------------------------------
(२)
दान भी देते हैं लोग कर्ज की तरह
प्यार निभाते हैं मात्र फ़र्ज़ की तरह

टपका गए आप जो अधरों से शब्द विष
बढ रहा है ला इलाज़ मर्ज़ की तरह

हमने तेरी चाह में जीवन बिता दिया
अफशोस तुम हमसे मिले खुदगर्ज की तरह

जिस तर्ज ने इंसान को बहरा बना दिया
है तुम्हारी तर्ज भी उस तर्ज की तरह .
                                                 "चरण"

Wednesday, June 29, 2011

हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने चाँद सितारों पर ग़ज़ल लिखी है
हमने तक़दीर के मारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने फूल और कलियों के कदम चूमे हैं
हमने उजड़े हुए खारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने शहर को आदर्श बनाया अपना
हमने गाँव के बेचारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने सागर के उफनते हुए यौवन को सराहा
हमने तो शांत किनारों पर ग़ज़ल लिखी है

खा रहे नोच कर इंसान की बोटी जो "चरण"
आपने उन गुनाहगारों पर ग़ज़ल लिखी है

जिनकी आदत है हँसीं जिस्म का सौदा करना   
आपने उनके इशारों पर ग़ज़ल लिखी है

आपने उगते हुए सूरज को नमस्कार किया
हमने ढलते हुए सूरज पर ग़ज़ल लिखी है

आपका ध्यान है धनवान की डोली की तरफ
हमने मजबूर कहारों पर ग़ज़ल लिखी है

मेरी गजलों में यह पैनापन क्यों
क्योंकि तलवार की धारों पर ग़ज़ल लिखी है .
                                                       "चरण" 

Tuesday, June 28, 2011

कविता

कविता है यह बाजीगर का खेल नहीं है 
बच्चों को बहलाने वाली रेल नहीं है 
इसमें जीवन का सत्य उतारा है हमने 
यह लाल किले को बढती धक्कम पेल नहीं है 

कविता अपनी मर्यादा में रहती है 
इसी लिए तो सदियों से दुःख सहती है 
मर्यादा को छोड़े भी तो कैसे छोड़े 
पूर्वजो के आदर्शों को तोड़े भी तो कैसे तोड़े 
इसी लिए चुपचाप अकेली रो लेती है 
किन्तु दोगले बीज नहीं नहीं बोती है 
कविता है गंगू तेली का तेल नहीं है .
                                      "चरण"

कविता का हर आंसू एक अंगारा है 
वक्त पडा सूरज को थप्पड़ मारा है 
कविता में सारा ही विश्व सिमटता है 
कविता से अन्धकार हिर्दय का मिटता है 
कविता ही है मूल मंत्र इस सृष्टी का 
कविता है प्रसाद ब्रह्म की दृष्टी का 
कविता है यह चौपाटी की भेल नहीं है .

कविता है दुखते घाव सहला देती है 
अच्छे अच्छों के दिल को दहला देती है 
गिरे हुओं को पुनः उठाती है कविता 
बड़बोलों को धरा सुंघाती है कविता 
कविता ही सदभाव सिखाती है हमको 
अड़े वक्त पर धैर्य दिलाती है हमको 
कविता है यह ऐय्यासों का खेल नहीं .

युग परिवर्तन करने की सामर्थ छुपी है कविता में 
साँपों का सर कुचलेगी यह शर्त छुपी है कविता में 
सदियों से सोयी कविता अब फिर जागेगी 
इस आँगन से काली आंधी भागेगी 
चमत्कार अपना दिखलाएगी  कविता 
सुख वैभव के दरख़्त  उगाएगी कविता 
कविता है कई पार्टियों का मेल नहीं है 
कविता है यह बाजीगर का खेल नहीं है .

Monday, June 27, 2011

जिंदगी (दो गीत)

 सूने आकाश में पतंग हुई जिन्दगी 
काट रही जूते सी तंग हुई जिन्दगी 

अम्बर से ऊँची है लगती है पास में 
भोला मन भ्रमित है झूठे एहसाश में 
छण भर को भांग की तरंग हुई जिन्दगी 
काट ---------

मन को भरमाती है मनभावन भावना 
झूठे आश्वासन की उथली संभावना 
कच्ची उमर की उमंग हुई जिन्दगी 
काट ----------

हमने तो चाहा था सन्नाटा तोड़ना 
जीवन के झूठे आदर्शों को छोड़ना 
किन्तु चौराहे से संग हुई जिन्दगी 
काट -----------

अन्दर भी बाहर भी इसका अधिकार है 
जाने इस जिंदगी का कितना उधार है 
मेरे सब गीतों के छंद बनी जिंदगी 
काट ----------.
______________________________
२-उड़ती चिड़ियों के परों को नोच कर देखो 
जिंदगी को फिर समझ और सोच कर देखो 

सर्फ़ घोलो और उठाओ बुलबुले 
देखने में लग रहे हैं चुलबुले 
अब किसी भी बुलबुले को फोड़कर कर देखो 
जिन्दगी को ---------------

धातुओं में चुलबुली है मरकरी 
धुप में व्याकुल हो जैसे जलपरी 
मुट्ठियों में मरकरी को भींच कर देखो 
जिंदगी को ---------------

धूप में शीतल निशा की कल्पना 
वृद्ध अवस्था ढूँढती है बचपना 
वृद्ध नयन की खाइयों में 
जिस्म की गहराइयों में झाँक कर देखो 
जिंदगी को --------------- .
                                        "चरण"

Sunday, June 26, 2011

चल पड़ा अंधे सफ़र में आदमी

चल पड़ा अंधे सफ़र में आदमी 
गाँव में हो या शहर में आदमी 

देखिये कब तक रहे सुख चैन से 
आजकल की नई लहर में आदमी 

स्पर्श भी अब जान लेवा बन गया
बुझाया गया जब से ज़हर में आदमी 

फैसला तो हो चुका है अजगरों के पक्ष में 
व्यर्थ ही अब तप रहा है दोपहर में आदमी 

कब तलक पीते रहेंगे उस नहर का नीर हम 
मुद्दतों से सड़ रहा है जिस नहर में आदमी 
                                               "चरण"

सूरज से समझौता कर बदनाम हो गए हम

सूरज से समझौता कर बदनाम हो गए हम 
अपनी इस कोशिस में भी नाकाम हो गए हम 

चेहरे पर मस्से बनकर आतंक लगे उगने 
पर्वत पर फैली बर्फीली शाम हो गए हम 

अपने पैमानों में दिन भर दर्द घुमड़ता है 
गली गली चर्चे हैं की ख़य्याम हो गए हम 

निर्णय हमारा करती हैं .अब सौतेली मायें
जंगल जंगल ठोकर खाते राम हो गए हम 

अंतस में पुण्य पापों की परते दर परतें 
बाहर से आकर्षक तीरथ धाम हो गए हम .
                                            "चरण"

Friday, June 24, 2011

जिस डाली पर कोयल कूकती uu

जिस डाली पर कोयल कूकती 
उस पर उल्लू बोल रहा है 
कौन हमारे अमृत घट में 
चुपके से विष घोल रहा है 

खलियानों में सांप लोटते 
खेतों में शैतान उग रहे 
इंसानों की भरी सड़क पर 
सरे आम भगवान् लुट रहे 
इन्द्रराज का इन्द्रासन भी 
अदभुद भय से डोल रहा है 
कौन हमारे अमृत घट  में --------

कलि फूल बनने से पहले 
पैरों की कुचलाहन बन गयी 
वेसियालयों की शान बन गयी 
कोठों की मुस्कान बन गयी 
कौन हमारी माँ बहिनों का 
छुपकर घूँघट खोल रहा है 
कौन हमारे अमृत घट में ------------

नन्हा बदन धूप में जलता 
सपनो का संसार पिघलता 
नकली रोटी के टुकड़ो से 
असली रोटी का मन छलता 
आज एक गेहूं का दाना 
सोने का बल तोल रहा है 
कौन हमारे अमृत घट में 
चुपके से विष घोल रहा है .
                           "चरण"

Thursday, June 23, 2011

आत्म बोध

चिलचिलाती धूप को 
चारों ओर से 
अन्धकार ने घेर लिया 
समय का उल्लू 
टेलीफोन के तार par
उलटा लटक गया 
चार पांव वाला आदमी 
बे-तहासा दौड़ा चला जा रहा है 
गधों के सर पर 
दो दो जोड़ी सींग उग आये हैं 
कोयल अपना सेक्स परिवर्तन कराके 
कव्वे में कन्वर्ट हो गयी है 
बनिए की दूकान पर 
मांस बिक रहा है 
खेतों में 
आदमियों के बीज बोये जा रहे हैं 
अजगर 
एयर कंडीशन बंगलों में रह रहे हैं 
गधे घोड़े इम्पाला में बैठे 
फर्राटे से चले जा रहे है 
पत्थर 
सर पर हाथ धर 
फूट फूट रो रहे हैं 
बर्फ ने 
पिघलने से इनकार कर दिया है 
नेल पोलिस की शीसियों में 
ब्लेड बैंक का 
ब्लेक किया हुआ खून 
धड़ा धड़ी से बिक रहा है 
वृक्ष 
एक दुसरे से बहुत दूर चले गए हैं 
चिड़ियों ने 
बीच बाज़ार में 
अपने कपड़े उतार दिए हैं 
हंस किसी मुर्गी को दबोच कर ले गया 
बाज़ खड़ा खड़ा देखता रहा 
जंगल में 
सियार का अभिषेक किया गया है 
शेर ने 
मुनिस्पलिटी  में नौकरी कर ली 
खरबूजों में 
आपस में मतभेद हो गया है 
इसलिए एक दुसरे को देखकर 
रंग बदलना छोड़ दिया है 
घरेलू बजट में 
अब कफन का भी बजट बनने लगा है 
घर के 
खिड़की दरवाजों ने हड़ताल कर दी 
सर्कस का शेर 
फिर गुर्राने लगा है 
हवाओं ने 
अपना अपना इलाका बाँट लिया 
बच्चों के 
लम्बी लम्बी दाढ़ियाँ उग आयी हैं 
लाट की लाट मूंछे 
उस दिन 
सब्जी मंडी में नीलाम हो गयीं 
चोर और कुत्तों ने 
आपस में समझौता कर लिया 
भिन्डी 
टमाटर को चाव से खाने लगी 
घड़ियों के दिमाग 
आसमान में चढ़ गए 
इसलिए 
समय के लाले पड़ गए .
                        "चरण"

नारी शक्त

                  
नारी चाहे तो आकाश धरा पर लादे 
नारी चाहे तो धरती को स्वर्ग बना दे 
नारी ने विपदा झेली है 
नारी शोलों से खेली है 
नारी अंगारों पर चलकर 
अंगारों की ताप मिटा दे 
नारी चाहे तो पत्थर को पानी कर दे 
और पानी में आग लगादे 
नारी चाहे तो आकाश धरा पर लादे 
नारी चाहे तो धरती को स्वर्ग बना दे 
नारी नर की निर्माता है 
नारी देवों की माता है 
नारी नर को शक्ति देती 
नारी से नर सुख पाता है 
नारी जो चाहे सो करदे 
गागर में सागर को भर दे 
तूफानों से टक्कर लेले 
मरुभूमि में पुष्प खिला दे 
नारी चाहे तो आकाश धरा पर लादे 
नारी चाहे तो धरती को स्वर्ग बना दे 
यूं तो नारी अबला बनकर 
पत्थर का भी दिल हर लेती 
मानवता की रक्षा हेतु 
कभी भयंकर नागिन बनकर 
बड़े विषधरों को डस लेती 
और पुरुष जब टेढा चलकर 
अपने घर को छत्ती पहुंचाए 
इस संकट में नारी बुद्धि 
नर के पथ को सीधा कर दे 
नारी चाहे तो आकाश धरा पर ला दे 
नारी चाहे तो धरती को स्वर्ग बना दे .
                                      "चरण"

Wednesday, June 22, 2011

आदमी पर गिद्ध मडराने लगे हैं

आदमी पर गिद्ध मडराने लगे हैं 
दुर्दिनो के काफिले आने लगे हैं 

देखिये क्या वक्त ने बदले हैं तेवर 
जन्म दिन पर मर्सिया गाने लगे हैं 

इस निगोड़ी भूख की पराकाष्टा तो देखिये 
कल्पनाएँ भूनकर खाने लगे हैं 

हादसे जिनको समझ दफना चुके थे 
आजकल फिर ज़हन पर छाने लगे हैं 

जिनके कंधो पर भरोसा करके बैठे 
अब वही संबल कहर ढाने लगे हैं 

बांध ले बिस्तर चलें कहीं और हंसा 
अब यहाँ पर साये लम्बाने लगे हैं .
                                  "चरण"

Tuesday, June 21, 2011

प्यार कर सको तो करो प्यार दोस्तों

प्यार कर सको तो करो प्यार दोस्तों 
आज वक्त की यही पुकार दोस्तों 
जागते रहो सब ओर देखते रहो
हो न तेज चाकुओं की धार दोस्तों

खून बहा कर भी जब अशांत हो गए 
ऐसी जीत से भली है हार दोस्तों 

गुनाह के बोझ से हमारे दब रही धरा 
और न बढाओ इसका भार दोस्तों 

बेसुरा हो जायेगा वीणा का स्वर यदि 
टूट गया इसका कोई तार दोस्तों 

कठिन समय कठिन सफ़र आसान हो गया 
मिलके जब चले हैं तीन चार दोस्तों 

डोली चाहे सलमा की हो मीरा की और की 
हम सब बनेंगे शान से कहार दोस्तों 

जब से प्रीत बाँटने लगे हो देश में 
आ गया है आप पर निखार दोस्तों 

जिन्दगी का कर्ज चुकाना है यहीं पर 
रह न जाए एक भी उधार दोस्तों 
प्यार कर सको--------------------.
                                     "चरण"

Monday, June 20, 2011

तुम्हारे रूप की चर्चा जहाँ भी होती है

तुम्हारे रूप की तुलना बता मैं किससे करूँ 
तुम्हारे रूप का शानी इस ज़माने में नहीं 

तुम्हारा रूप किसी दुधमुहे की तुतलाहट 
दूर से आते हुए रूठे पिया की आहट
तुम्हारे रूप के चर्चे तो बहुत होते हैं 
किन्तु यह रूप रहा मुद्दतों से बंद घूँघट 
तुम्हारे रूप के साये में दिन गुजार सके 
आज ये हौसला नाचीज दीवाने में नहीं 

तुम्हारा रूप कभी आसमान की बिजली है
तुम्हारा रूप कभी अनछुई सी तितली है 
हवाएं भूलकर रस्ता वहीँ पर ठहर गयीं 
तुम्हारे रूप की चर्चा जहाँ भी निकली है 
तुम्हारे रूप को शब्दों में जो बयान करे 
उसे इस रूप के अंदाज की पहचान नहीं 

तुम्हारा रूप कभी लहलहाती फसलें हैं 
तुम्हारा रूप कभी ग्रामीणों की आशा है
जमाने भर को एक सूत्र में जो बाँध सके 
तुम्हारा रूप शांत प्यार की वह भाषा है 
तुम्हारे रूप को इतिहास में जो कैद करे 
उसे इस रूप के विस्तार का अंदाज नहीं .
तुम्हारे रूप -----------
                                           "चरण"  

Sunday, June 19, 2011

केसर हैं किन्तु एक कड़वे पान पर हैं

कल मचान पर थे अब ढलान पर हैं हम 
जिंदगी के आखरी मुकाम पर हैं हम 

बचने की अब कहीं कोई संभावना नहीं 
इस समय तो खतरे के निशान पर हैं हम 

कब कोई हमको चबा नाली में थूक दे 
केसर हैं किन्तु एक कडवे पान पर हैं हम 

रंगों से तालमेल बिठाना ही पड़ेगा 
आजकल रंगरेज की दुकान पर हैं हम 

चुभने लगी है बात कलेजे में तीर सी 
झल्ला रहे हैं बेकसूर कान पर हैं हम 

कहाँ पड़े "चरण" हमें इसका नहीं पता 
तीर हैं तनी हुई कमान पर हैं हम .  

Saturday, June 18, 2011

आला पुलिस अफसर

एक रूपसी ,कमसिन कुंवारी कन्या के साथ 
पुलिस के संराक्षण में पले हुए 
कुछ गुंडे 
जोर आजमईस कर रहे थे 
और पास ही किसी दूसरे खेत में 
सरकार के वफादार कुछ सिपाही 
हरी हरी घास चर रहे थे 
तभी अचानक 
स्वछ वर्दीधारी 
एक पुलिस अफसर 
बीच में टपक पड़ा 
और बिन मौसम बरसात सा 
गुंडों पर बरस पड़ा 
गुंडे इशारा पाते ही 
दुम दबाकर  भाग खड़े हुए 
तब वह पुलिस अफसर 
कन्या के निकट आया 
उसकी ठुड्डी पकड़ कर 
चेहरे को ऊपर उठाया 
बोला 
बेटी 
अब रात में कहाँ जाओगी
फिर कहीं गुंडों से घिर जाओगी 
मेरे साथ चलो 
रात में 
गुंडों से बचने का गुर सिखा दूंगा 
सुबह होते ही तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा 
लड़की थी भोली नादान 
दीन दुनिया से अनजान 
जी अंकल कहकर 
उसके पीछे हो ली 
रास्तेभर कुछ न बोली 
कमरे में पहुंचकर 
उस आला अफसर ने 
भीतर से कुण्डी लगाई
और ललचाई आँखों से 
उस गुडिया को निहारने लगा 
धीरे धीरे अपने और उसके 
कपडे उतारने लगा 
लड़की भोली थी 
नादान थी 
किन्तु बेवकूफ नहीं थी 
जो इस हरकत का अर्थ न समझ पाती
उसकी आँखें डबडबा आई 
शारीर शिथिल पड़ गया 
रुंधे हुए गले से स्वर फूटे 
अंकल 
यदि मेरे साथ यही होना था 
तो मुझे गुंडों से क्यों बचाया 
और मेरी दृष्टी में 
अपने आपको 
इतना ऊँचा क्यों चढ़ाया 
वह आला अफसर 
ठहाका मार कर हंसा 
और बोला 
नादान लड़की 
यदि -
मैं तुझे गुंडों से नहीं बचाता 
तो 
मेरी वर्दी में दाग नहीं लग जाता .
                                     "चरण"                                                       r  

Friday, June 17, 2011

तोता

मैंने 
एक तोते को 
पिंजरे में कैद कर लिया है 
अपने 
व /अपने बच्चों के मनोरंजन के लिए 
मैं उसे बोलना भी सिखाता हूँ 
किन्तु वही बुलवाता हूँ 
जो मैं चाहता हूँ 
अब वह 
मेरे सिखाये शब्द बोलने लगा है 
तोतली वाणी से 
हमारे कानो में 
रस घोलने लगा है 
आचरण में 
अब वह 
मनुष्य सा होता जा रहा है 
अपनी स्वाभाविकता खोता जा रहा है 
कभी कभी मैं 
उसे पिजरे के बाहर निकालता हूँ 
किन्तु / बाहर का वातावरण 
अब उसे नहीं सुहाता है 
इसलिए /लौट कर 
पिंजरे में आ जाता है 
जो कुछ खिलाते हैं 
निर्विरोध खाता है 
आजकल /हर सुबह 
एक लाल कंठी वाला 
खुबसूरत तोता 
उसके पास आता है 
पिंजरे के चारों और मडराता है 
पिंजरे की झिरियों में 
चोंच डालकर 
चोंच से चोंच मिलाता है 
अपनी भाषा में खूब बतियाता है 
तनिक आहट पाकर उड़ जाता है 
फिर वापस लौट आता है 
बार बार चेष्टा करता है 
मेरे तोते को बाहर निकालने की 
उसका बचा हुआ जीवन सँभालने की 
किन्तु 
कठिन प्रयास के बावजूद 
लोहे की ठोस सलाख़ों को 
तोड़ नहीं पाता है 
फिर भी /निराश नहीं होता है 
कल /पुनः आने की चेतावनी देकर 
फुर्र से उड़ जाता है 
किन्तु जाते जाते 
मेरे मुहु पर 
एक तमाचा सा जड़ जाता है .
                             "चरण"

Thursday, June 16, 2011

हो रहे आयात हर मौसम में बादल

जगमगाती सर्च लाईट के शहर में 
टिमटिमाते छुद्र तारे क्या करेंगे 

चींखती चिन्घारती आवाज के घर 
कुलबुलाते मौन इशारे क्या करेंगे 

बांध दी मझधार में लहरों की मुश्कें 
दूर तक फैले किनारे क्या करेंगे 

हो रहे आयात हर मौसम में बादल 
मौसमी बादल बेचारे क्या करेंगे 

रिश्वतें ले चल रही हैं अब हवाएं 
वक्त के खिड़की द्वारे क्या करेंगे 

दिन बबूली रात तपती रेत की सी 
गुलमोहरी स्वप्न कुंवारे क्या करेंगे .
                                      "चरण" 

Wednesday, June 15, 2011

रहनुमा अपने बेरहम निकले

रहनुमा अपने बेरहम निकले 
अपने अंदाज सब वहम निकले 

हमने ढूंढे पतन के कारण जब 
उनकी बुनियाद में अहम् निकले 

बाटजोहते थे आपके ख़त की 
ख़त में कुछ और नए गम निकले 

जितने फुटपाथ पर उगे थे कभी 
उनके फुटपाथ पर ही दम निकले 

मेरी गजलों का दुःख समझ लेते 
मेरी किस्मत में यार कम निकले 
                               "चरण"                           n

Tuesday, June 14, 2011

हिन्दू का दुश्मन दहेज़

भारत में हिन्दू का दुश्मन दहेज़ 
सीने पर रखा जो खंजर से तेज ,

पलकों पर जिसको बिठाया गया 
चन्दन का झूला झुलाया गया 
खुद भूखे रह कर खिलाया गया 
जिसको पढाया लिखाया गया 
आज उससे नफरत का कारण दहेज़ 
सिने पर रखा जो खंजर से तेज.

बचपन के सपने बने आज धूल
बाबुल के आँगन में बिखरे हैं शूल 
अपनों को अपने रहे आज भूल 
आंसू बहाते हैं बगिया के फूल 
इन सबका बुनियादी कारण दहेज़ 
सीने पर रखा जो खंजर से तेज .

कुछ डोली खाली रही लौट आज 
कुछ मेरी बहिनों के फूटें है भाग 
कुछ की पड़ी आज मंडप पर लाश 
रूठा है उनसे उन्हीं का सुहाग 
इन सबका कातिल है केवल दहेज़ 
सीने पर रखा जो खंजर से तेज .

कितनी चौराहों  पर उलझी खड़ीं 
कितनो के पैरों में बेडी पड़ी 
कितनी कलि आज कोठे चढ़ी 
कितनी बनी रात की फुलझड़ी 
इन सबकी किस्मत का सौदा दहेज़ 
सीने पर रखा जो खंजर से तेज .

अब देश में है नई चेतना 
आशा सुशोभित हुई भावना 
पूरी हुई सब परिकल्पना 
अब दुम दबा कर हटा राह से 
युवकों के भय से परेशां दहेज़ 
सीने पर रखा जो खंजर से तेज .
                                "चरण" 

Monday, June 13, 2011

खूंटे से बंधी हुई गाय है यह जिन्दगी

खूंटे से बंधी हुई गाय है यह जिन्दगी 
प्रताड़ित विधवा की हाय है यह जिंदगी 

ललचाई आँखों से टुकुर टुकुर देखती 
प्यालों में बची हुई चाय है यह जिन्दगी 

धोके में फंसे हुए मुजरिम के बारे में 
शंकालु जूरी की राय है यह जिन्दगी 

गंगाजल जिसको न प्रभावित कर पाए 
सधी हुई वेश्या की आय है यह जिन्दगी 

छत की तलाश में भटक रहा कारवां
भूतपूर्व उजड़ी सराय है यह जिन्दगी 

बस्ती से दूर कहीं नाले पर बसा हुआ 
अस्पृश्य पिछड़ा समुदाय है यह जिन्दगी 

नोक पर त्रिशूलों की उगते हैं रात दिन 
आजकल मंदा व्यवसाय है यह जिन्दगी 

सामने कसाई के गर्दन झुकाए हुए 
हाय हाय कितनी असहाय है यह जिन्दगी .
                                                "चरण

Sunday, June 12, 2011

उलझे इस जीवन को सुलझाये कौन

उलझे  इस जीवन को सुलझाये कौन 
प्रश्नों की बौछारें झेल रहा मौन 


पीपल के वृक्छों पर नीम चढ़े आते हैं 
बरगद की दाढ़ी में शूल मुस्कराते हैं 
मेरी इस गुत्थी को सुल्छाये कौन 
प्रश्नों की बौछारें झेल रहा मौन .

राइ के दाने में वृक्ष छुपा क्यों 
तिल के पिछवाड़े यह कोलाहल क्यों 
चींटी के सीने को चीर रहा कौन 
प्रश्नों की बौछारें झेल रहा कौन .

सपनो के आँगन में मुठीभर धूल
छोड़ गया कौन यह किसकी है भूल 
कण कण को पल पल निहार रहा कौन 
प्रश्नों की बौछारें झेल रहा मौन 

खिड़की में कांच जड़े मजबूरी क्या 
दरवाजे मौन खड़े सोच रहे क्या 
युग युग का सत्य अब नकार रहा कौन 
प्रश्नों की बौछारे झेल रहा मौन .

गीतों पर खून का इल्जाम लगा आज 
ड़ेंलूपी तकियों में छुपा हुआ राज 
कविता के माध्यम से खोल रहा कौन 
प्रश्नों की बौछारें झेल रहा मौन 
उलझे इस जीवन को सुलझाये कौन .
                                       "चरण"

Saturday, June 11, 2011

खूंखार भेड़िये

गुलाब की बेटी है यह इसको न छेडिये 
सर्कस में इसकी पल रहे खूंखार भेड़िये 

आँख अपनी मूँद कर सुनते रहो कथा 
अन्यथा कच्चा चबा जायेंगे भेड़िये 

मिमिया रही हैं देखिये मासूम बकरियां 
इज्जत की खाल नोचने लगे हैं भेड़िये 

कैसे मिलेगा न्याय अब अन्याय के खिलाफ 
जब शहनशा के तख़्त पर बैठे हैं भेड़िये 

खून पसीना तो रामधन ने बहाया 
पकी फसल तो खेत में पहुंचे हैं भेड़िये 

घर में भी मौन व्रत का पालन किया करो 
दीवार से सटे हुए खड़े हैं भेड़िये 

पिछले चुनाओं में तो ये इन्सान से लगे 
बाद में पता चला सभी थे भेड़िये 

यह सच है की जंगल में अब नामोनिशान नहीं 
अब राजधानियों में जा बसे हैं भेड़िये 

उतरेंगे जब विमान से सम्मान कीजिये 
कटवा के नाक देश की लौटे हैं भेड़िये 

दोस्तों दिन में भी संभल कर चला करो 
आजकल हर मोड़ पर मिलेंगे भेड़िये 
                                         "चरण" 

Friday, June 10, 2011

तन स्वीकार नहीं करता मै

मन देना चाहो तो दे दो 
तन स्वीकार नहीं करता मैं 
एक विवशता और आड़े है 
सबको प्यार नहीं करता मैं .

कुंदन सा है बदन तुम्हारा 
कंचन सा है मन 
देह गंध से महक रहा है 
यह सारा उपवन 
रूप राशी की खान हो तुम 
इससे इंकार नहीं करता मैं 
किन्तु विवशता एक आड़े है 
सबको प्यार नहीं करता मैं .

मुस्काओ तो कुंद कलि की 
पाँखुरियाँ खिलती हैं 
सर्माओ तो झील किनारे 
सान्धिया निशा मिलती है 
वीणा की झंकार हो तुम 
इस से इंकार नहीं करता मैं 
किन्तु विवशता एक आड़े है 
सबको प्यार नहीं करता मैं .

शब्द तुम्हारे मुख से 
हीरे मोती बन झरते हैं 
कर्ण पटल को पल प्रतिपल जो -
उद्वेलित करते हैं 
चंचल मस्त बहार हो तुम 
इससे इंकार नहीं करता मैं 
किन्तु विवशता एक आड़े है 
सबको प्यार नहीं करता मैं .
                               "चरण"

Thursday, June 9, 2011

छितिज़ तक तेरी बात होती है

तुम्हारे जगने पर प्रात होती है 
तुम्हारे सोने पर रात होती है 
मुस्कराती हो जब उर्वशी की तरह 
तब छितिज़ तक तेरी बात होती है 

शरद झोके पवन के भले ही चले 
चाहे बागों में सावन के झूले डले
डाल पर चाहे चातक तडफता रहे 
मस्त हो चाहे बादल गरजता रहे 
तेरी आंखे अगर झिलमिलाने लगें 
अपने अश्कों से आँचल भिगाने लगें 
तभी समझो की बरसात होती है 

कलिया चाहे खिले फूल महका करे 
हर झुकी डाल पर चिड़ियाँ चहका करे 
तितलियाँ सप्तरंगी छटा ओड़ लें 
भवरें चाहे ग़ज़ल गुनगुनाते रहें 
तेरे चेहरे का रंग जब निखरने लगे 
तेरे अधरों पर लाली मचलने लगे 
हर ऋतू तब मधुमास होती है .

Tuesday, June 7, 2011

झील सी गहरी नीली आंखे


हास्य का कवी हूँ 
हँसना चाहता ,हँसाना चाहता हूँ 
थोड़ी देर के लिए 
दिल पर छाये हुए 
दुखों के बादलों को हटाना चाहता हूँ  
कैसी विडम्बना है 
यथार्थ के शीशे में 
सत्य को नकारते हैं 
झूठ को स्वीकारते हैं 
हम कितने कायर हो गए हैं 
हम कितने कमजोर हो गए हैं 
यहाँ तक 
की अपने आपको भी समझ नहीं पाते हैं 
या 
जानबूझकर 
दर्द की लाश पर बैठकर 
झूठ से चिकने चुपड़े गीत गाते हैं 
आज मानव 
यानि की मैं 
यानि की तूम 
यानि की वह 
कितना दम्म भरता है 
आकाश व्यर्थ है 
सूर्य व्यर्थ है 
चन्द्रमा व्यर्थ है 
पृथ्वी व्यर्थ है 
जो कुछ है 
वह मैं हूँ 
सत्यम मैं हूँ 
शिवम् मैं हूँ 
सुन्दरम मैं हूँ 
मै भगवान हूँ 
मै प्रकृति हूँ 
मैं आकार हूँ 
मैं साकार हूँ 
मैं कण कण में व्याप्त हूँ ,
किन्तु उस दिन 
मैंने मानव के दम्म को टूटते देखा है 
एक ही झटके में 
उसके अस्तित्व को फूटते देखा है 
वह लड़की -
वह नीली आँखों वाली लड़की 
वह परी देश की राजकुमारी सी लड़की 
वह धवल चांदनी सी लड़की 
वह मधुर रागिनी सी लड़की 
बेड नंबर ४ पर अंतिम साँसे गिन रही थी 
और इर्द गिर्द 
प्रिय ईस्ट मित्रों का समूह 
अटेन्सन की दशा में हाथ नीचे कर 
मन की आँखों से 
अपनी अपनी 
हथेलिओ की रेखाओं को निहार रहे थे 
की 
किसकी रेखा कितनी कितनी लम्बी है 
और डॉक्टर -
अभी भी दम्म भर रहे थे 
पेड़ों में जीवन है 
पत्तियों में जीवन है 
फूलों में जीवन है 
काँटों में जीवन है 
हाँ --हाँ --कांटो में जीवन है 
जीवन भगवान का प्रतिरूप है 
भगवान हम हैं 
जीवन हम हैं 
बिंदु हम हैं 
परिधि हम हैं 
और मैं -
बहुत दूर ---सुनसान में खड़ा 
छितिज की और देख रहा था 
और सोच रहा था 
आकाश और पृथ्वी का यह मिलन क्या सत्य है 
मै थोडा और आगे बढा
थोडा और आगे 
पर न जाने क्यों 
एक पल ठिटका
मन में आया 
आज उस लड़की को 
जो जीवन दान देदे उसे भगवान मान लूँगा 
और फिर 
आगे चलने लगा छितिज की और 
पांव दर्द करने लगे 
लगा -
मैं यह यात्रा तय नहीं कर पाउँगा 
तभी ---
कुत्तों के रोने की आवाज़ ने चौंका दिया 
शायद -
शहर में कोई चोर घुस आया है 
पीछे मुड़कर कर देखा --
राम राम सत्य है 
सत्य बोलो गत है 
वे झील सी गहरी नीली आंखे 
किस अथाह सागर में विलीन हो गयी 
मैं देखता रहा 
केवल देखता रहा 
वह स्वेत हंसिनी 
छितिज में समां गयी 
जहाँ आकाश 
पृथ्वी को आलिंगनबध किये 
उसके मधुमय 
अधरों का रसपान कर रहा था .
                                  "चरण"

Monday, June 6, 2011

दोस्तों मैं ही नहीं बिका वर्ना


दोस्तों मैं ही नहीं बिका वर्ना 
इस बाजार में मेरे भी खरीदार बहुत हैं 

जाना है मुझको दूर बहुत दूर कहीं दूर 
मुझपर यहाँ बेवजह के उधार बहुत हैं 

करता रहा मैं एक ही ढर्रे की भूमिका 
जीने के लिए वर्ना यहाँ किरदार बहुत हैं 

मैं अकेला ही नहीं इस भीड़ में तनहा 
मेरी तरह के और भी खुद्दार बहुत हैं 

चुधिया रही हैं आँख मेरी दूर कीजिये 
आपके दर्पण ये चमकदार बहुत हैं 

साथियों ये जंग तो हारेंगे हम जरूर 
सैनिक हैं इसमें कम मगर सरदार बहुत हैं .
                                                 "चरण"

दोस्त से दुश्मन भला है

दोस्त से दुश्मन भला है दोस्तों 
ये पुराना सिलसिला है दोस्तों 

दुश्मनों से न कोई शिकवा रहा 
दोस्तों से ही गिला है दोस्तों 

हमसे कतराने लगे हैं आजकल 
दुश्मनों से दिल मिला है दोस्तों 

हमपर जब भी वक्त का थप्पड़ पड़ा 
दोस्त का चेहरा खिला है दोस्तों 

जो छुरा घोंपा हमारी पीठ में 
दोस्त के घर में मिला है दोस्तों 

जख्म मेरा और मत उधेडिये 
बहुत मुश्किल से सिला है दोस्तों .
                                     "चरण"



Sunday, June 5, 2011

मौसम भरी बरसात का है

दोस्तों मौसम भरी बरसात का सा है,
देखकर चलना घनेरी रात का सा है.

जिसके क़दमों में पड़े मिमिया रहे हो,
स्वभाव उसका एक चिकने पात  का सा है.

गुमसुम खड़े चारो तरफ हम देख रहे है,
दृश्य कुछ जादुई करामात का सा है.

पूछिये मत इस निराश जिन्दगी का स्वाद,
पत्तलों पर शेष बासी भात का सा है.

दोस्तों इस शख्स का क्या हस्र होगा कल,
शहर में रहता है पर देहात का सा है.

बे वक्त अगर टूट गया तो मेरी किस्मत,
वैसे तो इरादा मेरा इस्पात का सा है.

शीघ्र मुक्त कीजिये घुटने लगा है दम,
आपका मकान हवालात का सा है.

सुख चैन से नौ माह गुजर जाये तो अच्छा,
माहौल तो बेवक्त गर्भपात का सा है.

किसको कहूँ शुभ दिन, किसको कहू अशुभ,
मेरे लिए हर दिन ही जुमेरात का सा है.
                                         "चरण" 

Friday, June 3, 2011

रोटी खरीद ली

आन बान बेचकर रोटी खरीद ली ,
सारा सामान बेचकर रोटी खरीद ली .

फुटपाथ पर बैठे है फटेहाल दोस्तों ,
अपना मकान बेचकर रोटी खरीद ली .

देखिये कितना बड़ा कदम उठा लिया ,
खुशियाँ तमाम बेचकर रोटी खरीद ली .

बेईमान हो गए सच कह रहे हैं आप ,
हमने इमान बेच कर रोटी खरीद ली .

धर्म की भगवान की बातें न मुझ से कर ,
गीता कुरान बेचकर रोटी खरीद ली .

इक्कीसवीं सदी की तरफ बड़ रहे हम ,
विज्ञानं ज्ञान बेचकर रो
टी खरीद ली .

सूरत को छोड़िये मेरी सीरत को देखिये ,
नाक कान बेचकर रोटी खरीद ली 

लाजो शर्म गैरत हया मिलती रही जहाँ ,
अब वो दुकान बेचकर रोटी खरीद ली .
                                              "चरण"

Thursday, June 2, 2011

वक़्त मुझपर रहम क्यों करता भला

वक़्त मुझपर रहम क्यों करता भला,
मैं हमेशा वक़्त से आगे चला.

गरल पीने का मुझे अभ्यास है,
मैं जनम से ही अभाओ में पला.

आजकल घर छोड़कर जाता नहीं,
द्वार पर है दुर्दिनो का काफिला.

भटक रहा हु आजकल उसकी तलाश मे,
जो सिखदे मुझको जीने की कला.

मोम के इस फूल पर क्या क्या गुजरी,
सर छुपाने के लिए धुप का आँचल मिला.

ईस्ट मित्र पीठ दिखा कर चले गए,
खूब मिला मुझको मेरे प्यार का सिला.

डूब जाऊ घोर गहरी नींद मे,
दोस्त कुछ इस तरह की चीज पिला.

इसका निर्णय किस तरह होगा "चरण",
वक़्त को मैने छला या वक़्त ने मुझको छला.

                                          "चरण" 

हो गए जबसे बड़े बच्चे


बाप के सर पर खड़े बच्चे ,
हो गए जबसे बड़े बच्चे .

बाप झुक कर हो गया कमान ,
अपनी जिद पर ही अड़े बच्चे .

खूंटियो पर टांग दी बाप की शिक्षा ,
जब चाहा जिससे लड़े बच्चे .

बाप तो टकरा गया चट्टान से ,
ठोकर लगी और गिर पड़े बच्चे .

आंसुओं में ढल रहे हैं आजकल ,
हर पिता के नख चढ़े बच्चे .

कितने सुंदर लग रहे हैं बाप को ,
दिल के शीशे में जड़े बच्चे .

गिड़गिड़अहट बाप की सुनकर भी पिघले ,
हो गए देखिये कितने कड़े बच्चे .

जो कहा अक्सर फिसल कर गिर गया
हो गए चिकने घड़े बच्चे .
                             "चरण"