Friday, May 27, 2011

मैं उड़ जाना चाहता हूँ

मैं संसार के सारे बन्धनों को तोड़कर उड़ जाना चाहता हूँ,
मुक्त आकाश में,
जहाँ छल हो न कपट न बैर भाव, न इरसा, न द्वेस,
बस,
एक हल्का सा झोका हो पवन का,
भीनी सी महक हो फूलों की,
पक्षी गाते हों सुरीले गीत,
चांदनी बिखरी हो चारों और,
मुझे न सुख चाहिए,
न ईस्वरिया, न सामर्थ
एक हल्का सा स्पर्स चाहिए,
स्नेह मही एक शब्द चाहिए 
करुना माहि एक आंसू चाहिए,
स्वप्निल आँख से टपका हुआ,
मैं विलीन हो जाना चाहता हूँ
छितिज़ के गर्भ में,
डूब जाना चाहता हूँ,
अथाह सागर की गह्रैओं में,
मेर लिए अर्थहीन हो गए हैं सब,
मेरी कल्पनाओं से ओझल हो गए हैं सब,
भूत,
वर्तमान और
भविष्य.
                                             "चरण" 

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