Sunday, May 29, 2011

हम मशीने नहीं हैं

हम मशीने नहीं हैं ,
पशु पक्षी भी नहीं हैं हम ,
पेड़ , पौधे , वनस्पति भी नहीं हैं -
जो एक जगह उग कर वहीँ सुख जाते हैं .
हम मनुष्य हैं,
चलते रहना हमारा धर्म है,
हम रुकते नहीं हैं-
एक जगह पर,
हम होते हैं निराश कभी कभी -
पर खोते नहीं हैं विश्वास कभी भी ,
हम खो जाते हैं भीड़ में अक्सर -
किन्तु बिछड़ते नहीं एक दुसरे से कभी -
हो जाते हैं आँखों से ओझल ,
चले जाते हैं बहुत दूर कहीं ,
लगने लगता है -
नहीं मिलेंगे अब कभी भी कहीं भी,
किन्तु -
टकरा ही जाते हैं कहीं न कहीं -
किसी न किसी नए मोड़ पर ,
किसी न किसी नए रूप में,
फिर कभी - 
प्रस्स्नता होती है इस मिलन से -
मन में उभरने लगती हैं सारी यादें -
चल चित्र की तरह ,
किन्तु हम -
एक दुसरे को देख कर -
निकल जाते हैं चुप चाप ,
अपनी अपनी राह पर ,
बिना कुछ बोले -
बिना कुछ सुने -
क्योंकि अब -
हम हम नहीं रह जाते ,
बदल जाते हैं हमारे रिश्ते -
बदल जाता है हमारा धर्म -
बदल जाती है हमारी सोच -
बदल जाते हैं हमारे विचार -
बदल जाती है हमारी मंजिल
                                 "चरण"

2 comments:

  1. bahut khoob sir.. u have written excellent... mind blowing Sir...

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  2. Hi, Uncle this is good peotry...i know you are good poet which is filled with practical meaning----wonderful ---from tara

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