Friday, December 2, 2011

मैं दोस्ती करता हूँ निभाने के वास्ते

मैं  दोस्ती  करता  हूँ निभाने के वास्ते
खोया हुआ विश्वाश जगाने के वास्ते
दिल से तुम्हारे दूर मै जाता नहीं कभी
जाता भी हूँ तो लौट कर आने के वास्ते
शायद तुम्हारे प्यार में पगला गया हूँ मै
खोना तो पड़ता है मगर पाने के वास्ते
आदत नहीं है मुझको कडवे बीज बोने की
मै फल उगाता हूँ तेरे खाने के वास्ते
तुम्हारे प्रेम से प्रेरित मै सुंदर गीत लिखता हूँ
कभी एकांत में तुमको ही सुनाने के वास्ते
सवाल मेरी दोस्ती पर मत खड़ा  करना
पैदा हुआ हूँ साथ निभाने के वास्ते
                                   "चरण"

1 comment:

  1. very sweet poem sir....excellent as always.
    my regards.

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