हिंदी के गर्वोंमुख शिखर
अजर अमर अभिव्यक्ति स्वर
पौरुष ध्वज कर्नाकांत सरल
शिव तुमने निशिदिन पिया गरल
आल "जुही की कलिका " है अतिशय उदास
व्यक्ति "स्मृति है सरोज " की आतुर "तुलसी दास"
चल रहा अभी भी "भिक्षु" वही लकुटिया टिकाकर
इलाहाबाद पथ पर / अब भी
तोड़ रही वह बेबस पत्थर
युग के दधिची ,पीड़ा के कवि
नव युग दृष्टा सृष्टा युग रवि
हे तपोपूत त्यागी अकाम
हे सूर्यकांत तुमको प्रणाम
हे ज्योति पुंज शत शत प्रणाम .
"चरण"
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