निज देश रूपी इस दिये में
संघटन का तेल लेकर
स्नेह की बाती बनाएं
आओ हम दीपक जलायें
बाहर माना है उजाला
किन्तु भीतर का अँधेरा
बढ़ रहा सर्वनाश हेतु
आओ हम उसको मिटाएँ
आओ हम दीपक जलायें
कितने दीपक बुझ चुके हैं
दीप से दीपक जलाते
कितने अब भी जल रहे हैं
आँधियों में मुस्कुराते
आओ इनके साथ हम भी
दो घडी तो मुस्कुराएं
आओ हम दीपक जलायें
कुर्सियों की होड़ में
जी तोड़ मेहनत कर रहे जो
स्वर्ग हो पृथ्वी पर ऐसा
झूठ वायदा कर रहे जो
उनके मन से
स्वार्थ की सीलन हटायें
आओ हम दीपक जलायें
अपने घर में दीप मालाएं सजाना
और दियों संग झूम कर गाना बजाना
किन्तु उस पल याद कर लेना उनेह भी
नियति ने जिनके दियों को
फोड़ डाला
और अगर संभव लगे तो
दो दया के दीप
उनके द्वार पर
निश्चय जलायें
आओ हम दीपक जलायें .
"चरण"
No comments:
Post a Comment