ढेर सारी जिंदगी के ढेर सारे स्वप्न
नंगे हो पहाड़ों से फिसलकर
धूप सेवन कर रहे हैं
और
बर्फ सी जमकर
फटी आँखे
हजारों भावनाओं को सहेजे
पी रही है जाम
धुंधला हो गया है आसमान
धडकनों का -------
चुभ रहे हैं शब्द अपनों के परायों के
अधूरे गीत बनकर जागरण के
आत्मा में मोह भंग उदासियों में
और
आदमियत की दरारों में
ठहाके गूंजते हैं -मौन -(फिर भी)
घुप अँधेरे में
समय भी लडखडाता है
पारदर्शी आंसुओं में
ब्रह्मपुत्र + गोदावरी + कावेरी =सत्य की सम्भावना पर मौन
फटती चिलचिलाती धूप
बरगद के तले सांवली बेटी
बाडामी रंग का इतिहास
जिसपर झुक रहा है
लिख रहा है
ढेर सारी जिंदगी के
ढेर सारे स्वप्न .
"चरण"
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