ओ दिए दीपावली
तोड़ दे इस मौन को अब
कब तलक चुपचाप तू
इस आग में जलता रहेगा
आदमी तो हो गया
आदि अँधेरे के पथों का
और इस अंधकार में चलता है
और चलता रहेगा
कौन समझेगा तेरी इस
मौन भाषा को यहाँ पर
पाप का साया है लम्बा
और लम्बाता रहेगा
स्वार्थ और पुरुषार्थ का
अंतर समझ लेगा यह मानव
तू समझता है तेरे प्रकाश में
भूल करता है दिए तू
व्यर्थ ही जलता है
और जलता रहेगा
कौन तेरे त्याग से प्रेरित हुआ है
कौन तेरे दर्द से द्रवित हुवा है
कौन तेरी आत्मा में लींन होकर
मोड़ देगा अपने मन को
तुझमे ही गंभीर होकर .
"चरण"
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