Monday, January 30, 2012

मैं उदास हूँ

आज मैं बहुत उदास हूँ 
एक एहसास मुझे बार बार डरा रहा है 
अपने वतन को छोड़ने का एहसास 
अपने अपनों को छोड़ने का एहसास 
दोस्तों से बिछुड़ने का एहसास 
वैसे भी पश्चिम की हवा मुझे कभी मुहाफिक नहीं आई 
मुझे नर्म गद्दों पर नींद नहीं आती 
चटाई पर सोना अच्छा लगता है
पीजा बर्गेर से मेरा पेट नहीं भरता
अचार से रोटी खाना अच्छा लगता है
बड़े बड़े रेस्टोरेंट में बैठने से मुझे
बौनेपन का एहसास होता है
यारों मुझे वह क्यों नहीं रहने दिया जाता
जो मैं हूँ
मै असलियत में जीना चाहता हूँ
आडम्बर ओढ़कर जीना मेरी नियति नहीं है
आकाश में उड़ना मेरा शौक नहीं हैं
मै एक बूढ़ा वृक्छ
मै एक खंडहर हो गयी ईमारत
क्यों मुझे विदेश की धरती पर दफनाना चाहते हो
मै तो  चाहता था बेटे
तुम वापिस लौट आओ
तुम्हारा देश
तुम्हारा वतन
तुम्हारी धरती
बेसब्री से तुम्हारा इन्तेजार कर रही है
मान जाओ मेरे बेटे
मुझे तो कम से कम
मेरी जड़ों पर खड़ा रहने दो
मत उखाड़ो मुझे
मै जी नहीं पाउँगा
मुझे डर लगता है विदेश की सड़कों से 
मुझे डर लगता है विदेश की सुविधाओं से
कितने मजबूर हो जाते हैं बूढ़े माँ बाप
एक तरफ जन्म भूमि का मोह
दूसरी तरफ बच्चों की ममता
किसको छोडें किसको पकडें
ए तनहा जिंदगी
और क्या क्या गुल खिलाएगी
जहाँ पर पानी नहीं होगा
क्या वहीँ पर डुबाएगी .
                       "चरण"

Friday, January 20, 2012

एक आशा

हम अबोलों को कोई तो बोल देगा 
आंसुओं का भी कोई तो मोल देगा 
हंस कर अँधेरी घाटियाँ जो पार कर ली 
सूरज उजालों का खजाना खोल देगा 
अंतिम छनो तक टूटने से बच सके तो 
यह वक्त हीरे मोतियों से तोल देगा 
एक दिन मीठे स्वरों का आगमन होगा 
और इन कानों में अमृत घोल देगा .
                                 "चरण"

Tuesday, January 17, 2012

भीख दे रहे हो या कि दान
स्पष्ट कीजिये प्रभु महान
झाड पर खजूर के चढ़ाकर हमें
अपमान कर रहे हो या सम्मान
पीठ थपथपाई है पर यह तो बताइए
कब मिटेंगे आपकी ख़रोंच के निशान
अर्जित किया है हमने जमीं आसमान का ज्ञान
खेद है समझे नहीं हम आपका विज्ञानं .
                                    "चरण"

Monday, January 16, 2012

गगन दिखने लगा ह

चोट खाया हुआ मन दिखने लगा है
आदमी घायल बदन दिखने लगा है
जहाँ पर गूंजी कभी वैदिक ऋचाएं
अब सिनेमा का सदन दिखने लगा है
रोकते कब तक हँसी के ढक्कनों से
आँख से रिसता रूदन दिखने लगा है
झांकना क्या जिंदगी की झोंपड़ी से
कहीं से देखो गगन दिखने लगा है .
                                "चरण"

Friday, January 13, 2012

वक्त के सांचे में हम ढले नहीं

वक्त के सांचे में हम ढले नहीं
इसलिए दूर तक चले नहीं
दोस्तों को हमसे शिकायत रही
धूप में क्यों बर्फ से गले नहीं
क्या लाजवाब है हमारी हठधर्मी
उम्रभर सुलगे मगर जले नहीं
खींच लाये क्यों हमें इस दल दल में
शायद इरादे आपके भले नहीं
बहुत कोशिस की फिर भी
दुर्दिनो के काफिले टले नहीं
खाद दी सींचा संवारा जातां से
फूल महके वृक्छ हरियाये पर फले नहीं .
                                  "चरण"

Thursday, January 5, 2012

मै जानता हूँ

सोने व चाँदी से मढ़े हुवे हाथों वाले तुम
गारे व कीचड से सने हुवे हाथों वाले हम से
क्यों दोस्ती बढा रहे हो
मैं अच्छी तरह जानता हूँ
और तुम्हारी इस बुध्धिमत्ता का
लोहा भी मानता हूँ
फलों के टोकरे
मिठाइयों के डिब्बे
जो तुम मेरे बच्चों के लिए लाते हो
शायद उनसे
मेरे घर के मासूम पहरेदारों को फुसलाते हो
तुम्हारे इस कर्म को
मै लम्बे अरसे से देख रहा हूँ
और अपनी दृष्टि
तुम्हारे अंतर के
उस पार तक फेंक रहा हूँ
मैंने हर बार देखा है
जब मेरी पत्नी की गोद में
मेरी मासूम बच्ची रोंती है
तो उसे बहलाने के बहाने
तुम आगे बढ़ते हो
किन्तु तुम्हारी द्रष्टि
मेरी पत्नी पर होती है .
               "चरण"

Monday, January 2, 2012



 सत्य कहाँ खो गया है

हमको नहीं मालूम सत्य कहाँ खो गया
ठण्ड का मौसम है शायद सो गया
सत्य के बगैर ही जगना पड़ेगा
उठ जाओ यार अब सवेरा हो गया
खेत में उगने लगी हैं नागफनियाँ
कौन कैसे बीज ऐसे बो गया
हम तो बैठे थे हंसीं उम्मीद में
कौन मेरे स्वप्न सारे धो गया
कल तलक जो साथ चलते थे मेरे
आज यह अलगाव कैसे हो गया
एक भला सा आदमी जिसने संभाला था मुझे
आज वही आदमी मारने को आ गया
सारी जमात आज भूखी है यहाँ
एक नेता सबके हिस्से का अनाज खा गया
कल देख कर जलती हुयी कुटिया गरीब की
मेरी आँखों में घुप अँधेरा छा गया
एक बूढ़े ने संभाला बात को
कौम का मसीहा बन के आ गया .
                                 "चरण"