Tuesday, June 7, 2011

झील सी गहरी नीली आंखे


हास्य का कवी हूँ 
हँसना चाहता ,हँसाना चाहता हूँ 
थोड़ी देर के लिए 
दिल पर छाये हुए 
दुखों के बादलों को हटाना चाहता हूँ  
कैसी विडम्बना है 
यथार्थ के शीशे में 
सत्य को नकारते हैं 
झूठ को स्वीकारते हैं 
हम कितने कायर हो गए हैं 
हम कितने कमजोर हो गए हैं 
यहाँ तक 
की अपने आपको भी समझ नहीं पाते हैं 
या 
जानबूझकर 
दर्द की लाश पर बैठकर 
झूठ से चिकने चुपड़े गीत गाते हैं 
आज मानव 
यानि की मैं 
यानि की तूम 
यानि की वह 
कितना दम्म भरता है 
आकाश व्यर्थ है 
सूर्य व्यर्थ है 
चन्द्रमा व्यर्थ है 
पृथ्वी व्यर्थ है 
जो कुछ है 
वह मैं हूँ 
सत्यम मैं हूँ 
शिवम् मैं हूँ 
सुन्दरम मैं हूँ 
मै भगवान हूँ 
मै प्रकृति हूँ 
मैं आकार हूँ 
मैं साकार हूँ 
मैं कण कण में व्याप्त हूँ ,
किन्तु उस दिन 
मैंने मानव के दम्म को टूटते देखा है 
एक ही झटके में 
उसके अस्तित्व को फूटते देखा है 
वह लड़की -
वह नीली आँखों वाली लड़की 
वह परी देश की राजकुमारी सी लड़की 
वह धवल चांदनी सी लड़की 
वह मधुर रागिनी सी लड़की 
बेड नंबर ४ पर अंतिम साँसे गिन रही थी 
और इर्द गिर्द 
प्रिय ईस्ट मित्रों का समूह 
अटेन्सन की दशा में हाथ नीचे कर 
मन की आँखों से 
अपनी अपनी 
हथेलिओ की रेखाओं को निहार रहे थे 
की 
किसकी रेखा कितनी कितनी लम्बी है 
और डॉक्टर -
अभी भी दम्म भर रहे थे 
पेड़ों में जीवन है 
पत्तियों में जीवन है 
फूलों में जीवन है 
काँटों में जीवन है 
हाँ --हाँ --कांटो में जीवन है 
जीवन भगवान का प्रतिरूप है 
भगवान हम हैं 
जीवन हम हैं 
बिंदु हम हैं 
परिधि हम हैं 
और मैं -
बहुत दूर ---सुनसान में खड़ा 
छितिज की और देख रहा था 
और सोच रहा था 
आकाश और पृथ्वी का यह मिलन क्या सत्य है 
मै थोडा और आगे बढा
थोडा और आगे 
पर न जाने क्यों 
एक पल ठिटका
मन में आया 
आज उस लड़की को 
जो जीवन दान देदे उसे भगवान मान लूँगा 
और फिर 
आगे चलने लगा छितिज की और 
पांव दर्द करने लगे 
लगा -
मैं यह यात्रा तय नहीं कर पाउँगा 
तभी ---
कुत्तों के रोने की आवाज़ ने चौंका दिया 
शायद -
शहर में कोई चोर घुस आया है 
पीछे मुड़कर कर देखा --
राम राम सत्य है 
सत्य बोलो गत है 
वे झील सी गहरी नीली आंखे 
किस अथाह सागर में विलीन हो गयी 
मैं देखता रहा 
केवल देखता रहा 
वह स्वेत हंसिनी 
छितिज में समां गयी 
जहाँ आकाश 
पृथ्वी को आलिंगनबध किये 
उसके मधुमय 
अधरों का रसपान कर रहा था .
                                  "चरण"

Monday, June 6, 2011

दोस्तों मैं ही नहीं बिका वर्ना


दोस्तों मैं ही नहीं बिका वर्ना 
इस बाजार में मेरे भी खरीदार बहुत हैं 

जाना है मुझको दूर बहुत दूर कहीं दूर 
मुझपर यहाँ बेवजह के उधार बहुत हैं 

करता रहा मैं एक ही ढर्रे की भूमिका 
जीने के लिए वर्ना यहाँ किरदार बहुत हैं 

मैं अकेला ही नहीं इस भीड़ में तनहा 
मेरी तरह के और भी खुद्दार बहुत हैं 

चुधिया रही हैं आँख मेरी दूर कीजिये 
आपके दर्पण ये चमकदार बहुत हैं 

साथियों ये जंग तो हारेंगे हम जरूर 
सैनिक हैं इसमें कम मगर सरदार बहुत हैं .
                                                 "चरण"

दोस्त से दुश्मन भला है

दोस्त से दुश्मन भला है दोस्तों 
ये पुराना सिलसिला है दोस्तों 

दुश्मनों से न कोई शिकवा रहा 
दोस्तों से ही गिला है दोस्तों 

हमसे कतराने लगे हैं आजकल 
दुश्मनों से दिल मिला है दोस्तों 

हमपर जब भी वक्त का थप्पड़ पड़ा 
दोस्त का चेहरा खिला है दोस्तों 

जो छुरा घोंपा हमारी पीठ में 
दोस्त के घर में मिला है दोस्तों 

जख्म मेरा और मत उधेडिये 
बहुत मुश्किल से सिला है दोस्तों .
                                     "चरण"



Sunday, June 5, 2011

मौसम भरी बरसात का है

दोस्तों मौसम भरी बरसात का सा है,
देखकर चलना घनेरी रात का सा है.

जिसके क़दमों में पड़े मिमिया रहे हो,
स्वभाव उसका एक चिकने पात  का सा है.

गुमसुम खड़े चारो तरफ हम देख रहे है,
दृश्य कुछ जादुई करामात का सा है.

पूछिये मत इस निराश जिन्दगी का स्वाद,
पत्तलों पर शेष बासी भात का सा है.

दोस्तों इस शख्स का क्या हस्र होगा कल,
शहर में रहता है पर देहात का सा है.

बे वक्त अगर टूट गया तो मेरी किस्मत,
वैसे तो इरादा मेरा इस्पात का सा है.

शीघ्र मुक्त कीजिये घुटने लगा है दम,
आपका मकान हवालात का सा है.

सुख चैन से नौ माह गुजर जाये तो अच्छा,
माहौल तो बेवक्त गर्भपात का सा है.

किसको कहूँ शुभ दिन, किसको कहू अशुभ,
मेरे लिए हर दिन ही जुमेरात का सा है.
                                         "चरण" 

Friday, June 3, 2011

रोटी खरीद ली

आन बान बेचकर रोटी खरीद ली ,
सारा सामान बेचकर रोटी खरीद ली .

फुटपाथ पर बैठे है फटेहाल दोस्तों ,
अपना मकान बेचकर रोटी खरीद ली .

देखिये कितना बड़ा कदम उठा लिया ,
खुशियाँ तमाम बेचकर रोटी खरीद ली .

बेईमान हो गए सच कह रहे हैं आप ,
हमने इमान बेच कर रोटी खरीद ली .

धर्म की भगवान की बातें न मुझ से कर ,
गीता कुरान बेचकर रोटी खरीद ली .

इक्कीसवीं सदी की तरफ बड़ रहे हम ,
विज्ञानं ज्ञान बेचकर रो
टी खरीद ली .

सूरत को छोड़िये मेरी सीरत को देखिये ,
नाक कान बेचकर रोटी खरीद ली 

लाजो शर्म गैरत हया मिलती रही जहाँ ,
अब वो दुकान बेचकर रोटी खरीद ली .
                                              "चरण"

Thursday, June 2, 2011

वक़्त मुझपर रहम क्यों करता भला

वक़्त मुझपर रहम क्यों करता भला,
मैं हमेशा वक़्त से आगे चला.

गरल पीने का मुझे अभ्यास है,
मैं जनम से ही अभाओ में पला.

आजकल घर छोड़कर जाता नहीं,
द्वार पर है दुर्दिनो का काफिला.

भटक रहा हु आजकल उसकी तलाश मे,
जो सिखदे मुझको जीने की कला.

मोम के इस फूल पर क्या क्या गुजरी,
सर छुपाने के लिए धुप का आँचल मिला.

ईस्ट मित्र पीठ दिखा कर चले गए,
खूब मिला मुझको मेरे प्यार का सिला.

डूब जाऊ घोर गहरी नींद मे,
दोस्त कुछ इस तरह की चीज पिला.

इसका निर्णय किस तरह होगा "चरण",
वक़्त को मैने छला या वक़्त ने मुझको छला.

                                          "चरण" 

हो गए जबसे बड़े बच्चे


बाप के सर पर खड़े बच्चे ,
हो गए जबसे बड़े बच्चे .

बाप झुक कर हो गया कमान ,
अपनी जिद पर ही अड़े बच्चे .

खूंटियो पर टांग दी बाप की शिक्षा ,
जब चाहा जिससे लड़े बच्चे .

बाप तो टकरा गया चट्टान से ,
ठोकर लगी और गिर पड़े बच्चे .

आंसुओं में ढल रहे हैं आजकल ,
हर पिता के नख चढ़े बच्चे .

कितने सुंदर लग रहे हैं बाप को ,
दिल के शीशे में जड़े बच्चे .

गिड़गिड़अहट बाप की सुनकर भी पिघले ,
हो गए देखिये कितने कड़े बच्चे .

जो कहा अक्सर फिसल कर गिर गया
हो गए चिकने घड़े बच्चे .
                             "चरण"