Monday, July 11, 2011

संसद में जूता चल गया

दिल्ली के इंडिया गेट पर 
भारत कि जनता के पेट पर 
एक आदमी 
हाथ में भोम्पु ले चिल्ला रहा था 
चिल्ला चिल्ला कर ने चारों ओर 
जमा लगा रहा था 
हमारे कान में भी पड़े उसके मधुर स्वर 
चल गया चल गया चल गया 
हम ठहर गए लगे सोचने 
यह क्या चल गया 
दश हजार का नोट चल गया 
या नाबालिग का वोट चल गया 
या नए फैशन का कोट चल गया 
इससे तसल्ली नही हुयी 
नजदीक जाकर उसी से पूछा 
अरे भाई क्या चल गया 
उसने 
हमारे कान के पास 
मुँह लाकर कहा 
धीरे बोलो शोर मत करो 
संसद में जूता चल गया 
यह सुनना था
कि हमारा भी कलेजा हिल गया 
ना जाने कितनी देर तक 
खड़े रहे  जड़ 
फिर उसी ने झिंझोदा 
हुजुर कहाँ खो गए 
या हमारी बात सुनकर सो गए 
हम फिर चोंके 
उन्होंने कहा चोंकिये मत 
यह तो एक दिन होना ही था 
हम कुछ  सम्भ्ले 
सम्भल्कर पूछा 
किंतु इससे आपको क्या लाभ  हुआ
उसने कहा 
मेरी किस्मत का फाटक खुल गया है 
मैं  बेरोजगार था 
अब रोजगार मिल गया है 
संसद से सारे जूते  बटोर  लाया  हूँ 
सन्‌  78 का इतिहास संभाल लाया हूँ 
अब धूम   धाम से ये जूते बेचुंगा    
सेटों कि जेबों से काला धन खेंचुंगा
हमने पूछा
एक जूते कि कीमत कितनी है
उसने कहा
सबसे सस्ता जूता पाँच हजार एक का है
 पाँच हजार एक का
बड़ा महँगा है हमारे मुँह से निकला
जनाब इसे आप महँगा कहते हैं
अरे
ये कोइ ऐरे गैरे नथु खैरे के जूते नहीं है
बड़े बड़े मिनेस्तरॉन के जूते हैं
जितना बड़ा मिनिस्स्तर
उतना बड़ा जूता
जितना बड़ा जूता
उतनी बड़ी कीमत
भीतर आकर देखिये
यह जूता गुजरात का है
यह जूता महारस्ता का है
यह जूता उत्तर प्रदेश का है
यह जूता मद्रास का है
यह केरल का है
यह बंगाल का है
यह उड़ीसा का है
यह बिहार का है
यह पंजाब का है
यह राजस्थान का है
और यह रहा हरियाणा का
साहेबान
एक से बाड़कर एक जूता है
इन्हीं जूतों ने जनता का दिल जीता है
अब बताइये
आपको कौनसा जूता पसंद है 
वही बंधवा देता हूँ
आपकी गाड़ी में रखवा देता हूँ
या आपके सिर पर लदवा देता हूँ
हमने कहा
सो तो ठीक है
किंतु
क्या दाम कुछ कम  नहीं हो सकते
यह सुनना था
वे हम पर बिगाड़ने  लगे
गुर्राने लगे
गुर्राहट के साथ चिल्लाने लगे
मिस्तेर
लगता है जीवन में कभी
जूतों से वास्ता नहीं पड़ा
इसलिए जूतों कि पहचान नही है
अरे
यह तो हम
देश कि मर्यादा निभा रहे हैं
जो देश के जूते देश में ही चला रहे हैं
वरना विदेशों में
एक एक जूता
एक एक करोड़ का बिक सकता है
उसकी बात सुनकर हमें बड़ी शर्म लगी
हमारी सोई हुई मर्यादा जगी
फिर भी पूछ बैठे
किंतु
यह तो केवल एक  पा का जूता है
इसे लेकर क्या करेंगे
जोड़ा कहाँ से लायेंगे
उसने कहा
अभी एक जूता ले जाइए
फ्रेम करके घर में लगाइये
जब दुबारा संसद में जूते चलेंगे
तब अविलंब
वपिस हमारे पास आइए
और अपने जूते का जोड़ा मिलाइये .
                                             "चरण"

Sunday, July 10, 2011

जिंदगी--एक अंतहीन बहस

जिंदगी  हमको कभी हलकी कभी भारी लगी 
जिंदगी हमको कभी जीती  कभी हारी लगी 
दूर से हमको लगी यह सुरमई आकाश सी 
और देखा पास से तो बहुत बेचारी लगी 
चिलचिलाती धूप में दिन खड़ी तपती रही 
और धल्ती शाम के संग बहुत ही प्यारी लगी 
हर कथा में जिंदगी मौजूद है साथी मेरे 
इस कथा से उस कथा में जिंदगी नियारी लगी 
संत कहते हैं कि यह तो मात्र एक एहसास है 
किंतु मुझको जिंदगी अक्सर ही देह्धारि लगी 
इसके असली स्वाद का अब तक नही पता 
जिंदगी हमको कभी मीठी कभी खारी लगी 
इंसानियत के कत्घरे में जब इसे हाजिर किया 
यह अनोखी अन्हीन बहस सी जारी जारी लगी .
                                                               "चरण"

                                   {2}
सबके श्मे बदल जायेंगे धीरे धीरे 
सब उसी राह पर जायेंगे धीरे धीरे 
कुछ विनाश कर गए पहले वाले 
शे ये कर जायेंगे धीरे धीरे 
साम्प के काटे को हम बचा लेंगे 
इनके काटे हुए मर जायेंगे धीरे धीरे 
इनसे कुछ दूर से ही बात करना 
आपके आँगन में पसर जायेंगे धीरे धीरे 
मत उदास हो मन हौसला रख 
ये दिन भी गुजर जायेंगे धीरे धीरे .
                                           "चरण"      

Saturday, July 9, 2011

मिनिस्टर का लेटर

आजकल हर छेत्र में
उनकी कन्डीशन बेटेर है
जिनकी जेब में मिनिस्टर का लेटर है
इंटेरविउ में जाइए
भीड़ को इधर उधर हटाइए
बीच में रास्ता बनाइए
झटपट अंदर घुस जाइए
मिनिस्टर का लेटर दिखाइए
चेयरमेन कुर्सी से उछाल पड़ेगा
आपके चरण कमलों में आकर गिरेगा
सम्मान पूर्वक बैठाएगा
मौसम के अनुसार
ठंडा या गर्म पिलाएगा
हज़ारों योग्य व्यक्तियों के होते हुए भी
आपका चयन कर
अपने भाग्या को सराहेगा.

आप शहर में रहते हैं
जनता सौचालये के सामने
लंबी लाइन लगी है
आप
लाइन को चीरते हुए
आगे निकल जाइए
जेब से लेटर निकालकर
आसपास वालों को दिखाइए
मुस्कुराकर भीतर घुस जाइए
जितनी देर चाहे लगाइए
इतमीनान से बाहर आइए 
आपसे कोई कुछ नही पूछेगा
मिसटर यह क्या मेटर है
क्योकि
आपके पास
मिनिस्टर का लेटर है.

आप आशिक मिज़ाज़ हैं
राह चलती
किसी सभ्या महिला को च्छेड़िए
पोलीस में आपकी रिपोर्ट दर्ज होगी
आप धीरे से लेटर का कोना ऊपर उठाइए
थानेदार का ध्यान उधर दिलाइए
वे तत्काल ही चौंकने लगेंगे
आसपास वालों पर भोंकने लगेंगे
बेवकुफों
यह जो चाहें कर सकते हैं
यह इनका पर्सनल मेटर है
देखते नहीं इनके पास मिनिस्टर का लेटर है.

आप बस में जाइए या ट्रेन में जाइए
बैठे हुए आदमी को ज़बरदस्ती उठाइए
उसके स्थान पर स्वयं ज़म जाइए
आसपास वालों की ओर देख कर
अपनी विजय पर मंद मंद मुस्काई ये
कंडेक्टर कुछ कहे तो रोब जमाइए
एहसास दिलाइए
की आपकी कन्डीशन उससे बेटेर है
क्योकि आपके पास मिनिस्टर का लेटर है.
                                                         "चरण"

Wednesday, July 6, 2011

अधरों पर जड़ दिए विराम

अधरों पर जड़ दिए विराम
देखें क्या होगा अंजाम

दिल की हर एक धड़कन पर
दरबारी पहरे लगे
भावों को कर दिया शिथिल
घाव कुछ गहरे दिए
स्वांसों को कर लिया गुलाम
देखें क्या होगा अंजाम

हाथों में अब हथकड़ी
पैरों में बेडी पड़ी
थोप रहे झूठे इल्जाम
देखें क्या होगा अंजाम

शब्दों को काट छांट कर
परिचय संछिपत कर दिए
इंसानी आत्म बोध के
सारे चिन्ह लुप्त कर दिए
लेखनी को दे दिया विश्राम
देखें क्या होगा अंजाम
अधरों पर -----------.
                           "चरण"

Tuesday, July 5, 2011

गाँव के दो चित्र

                सुबह
           ________
बहुत याद आती है
मुंडेरों से उतरती हुयी
धुधिया सी धूप
आँगन में बुझा हुआ
रात का अलाव
अधनंगे बच्चों का
पास में जमाव

बहुत याद आते हैं
कुहराए खेत
खेतों में रुका हुआ
ओस कण काफिला
अनिश्चित जीवन का
तय करता फासला

बहुत याद आती है
उपलों पे सिकी हुयी
कुर्राती
बाजरे की रोटियां
रोटियों पर घुटा हुआ
सरसों का साग
यादों का मृगछोना
गया दूर भाग .
-------------------------
             शाम
        __________
बहुत याद आती है
सरसों के खेतों में
चहक रही शाम
जैसे की मधुवन में
बांसुरी की तान छेड़े
मडराते फिरते हों
राधा के श्याम

बहुत याद आते हैं
जंगल से लौट रहे
पशुओं के झुण्ड
शायद विधाता ने
यहीं कहीं
गाड़ दिया
अमृत का कुण्ड.
-------------------
        शर्दियों का गीत
     ________________
आशिकों की महफिलों में
ज्यों प्रसंशा रूप की
गाँव की चोपाल में
यूँ सर्दियों की धूप की

खिड़कियाँ खुलने लगी 
सब द्वारपट खुलने लगे
सुन सुरीली बांसुरी
इन शर्दियों की धूप की
ओसकण भयभीत हो
आकाश पर चढ़ने लगे
देख कर जादूगरी
इन शर्दियों की धूप की .
                           "चरण"

Sunday, July 3, 2011

एक गीत (दीपावली के नाम)

आँचल की ओट किये
अंजुरी में दीप लिए
मेरे गांवन की गोरी
मन में उल्लास भरे ,

कुछ ऐसा लगता है 
आकाश धरा पर है
नव चेतन नव जीवन
विश्वास धरा पर है
गदराये अधरों पर
चंचल मधुमास लिए
मेरे गांवन की गोरी
मन में उल्लास भरे ,आँचल की -----------

संध्या मतवारी ने
दीपक आलोकित कर
फैलादी है जग में
उजियारे की चादर
कजरारे नयनों में
सारा इतिहास लिए
मेरे गांवन की गोरी
मन में उल्लास भरे ,आँचल की -----------

छज्जे मुंडेरों पर
संदीपों की पांति
लौ बढ़ती जाती है
मीनारों की भांति
परदेसी प्रीतम से
मिलने की आस लिए
मेरे गांवन की गोरी
मन में उल्लास भरे. आँचल की ------------.
                                "चरण"

Friday, July 1, 2011

आदमी

सूर्य को निगल रहा है आदमी
चाँद को भी पी रहा है आदमी
मौत को रुला रहा है आदमी
जिन्दगी का नाम भी है आदमी
हर कठोर सत्य है यह आदमी
हर सवाल का जवाब आदमी
हर मुकाम पर खडा है आदमी
हर घडी बदल रहा है आदमी
आग है तूफ़ान है यह आदमी
खतरे का निशान  है यह आदमी
विश्व का समस्त ज्ञान आदमी
सृष्टी में महान नाम आदमी
आज क्यों मचल रहा है आदमी
भीड़ में फिसल रहा है आदमी
गिर के फिर संभल रहा है आदमी
किस दिशा में चल रहा है आदमी
टूट कर बिखर रहा है आदमी
अपनी ही तलाश में है आदमी
आज क्यों पिघल रहा है आदमी
क्या कहूँ ,यह बर्फ है या आदमी .
                                         "चरण"