Thursday, October 13, 2011

रात कैसे बीत जाती है

अब सभी बातें पुरानी याद आती हैं
कभी इनकी कभी उनकी कहानी याद आती है
उलझे रहते हैं इसी उधेड़ बुन में हम
पता नहीं कब रात कैसे बीत जाती है
कभी उनसे मिले थे उस समय हम मनचले थे
वह भोली शक्ल भी आजकल अक्सर रुलाती है
सोते थे जिस तश्वीर को सीने से लगाकर
उसकी नाराजगी भी अब सताती है
हर रोज वही हादसा हर रोज वही डर
एक आवाज़ है जो दूर से अक्सर बुलाती है
मजधार में क्यों छोड़ कर हमको चले गए
तुम्हारी याद आती है तो बस आती ही रहती है
भीड़ है लेकिन हमी गुमनाम हो गए
अब हमारे नाम की कोई भी चर्चा नहीं होती
जब तलक चलती है गाड़ी तब तलक चलती रहे
एक दिन तो धड धडाकर गिर ही जाती है .
                                              "चरण" 

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