Saturday, October 15, 2011

हे सूर्यकांत शत शत प्रणाम

हिंदी के गर्वोंमुख शिखर 
अजर अमर अभिव्यक्ति स्वर 
पौरुष ध्वज कर्नाकांत सरल 
शिव तुमने निशिदिन पिया गरल 
आल "जुही की कलिका " है अतिशय उदास 
व्यक्ति "स्मृति है सरोज " की आतुर "तुलसी दास"
चल रहा अभी भी "भिक्षु" वही लकुटिया टिकाकर 
इलाहाबाद पथ पर / अब भी 
तोड़ रही वह बेबस पत्थर 
युग के दधिची ,पीड़ा के कवि
नव युग दृष्टा सृष्टा युग रवि 
हे तपोपूत  त्यागी अकाम 
हे सूर्यकांत तुमको प्रणाम 
हे ज्योति पुंज शत शत प्रणाम .
                                 "चरण"

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