Monday, October 24, 2011

आओ हम दीपक जलायें

निज देश रूपी इस दिये में 
संघटन का तेल लेकर 
स्नेह की बाती बनाएं 
आओ हम दीपक जलायें 
बाहर माना है उजाला 
किन्तु भीतर का अँधेरा 
बढ़ रहा सर्वनाश हेतु 
आओ हम उसको मिटाएँ 
आओ हम दीपक जलायें 
कितने दीपक बुझ चुके हैं 
दीप से दीपक जलाते 
कितने अब भी जल रहे हैं 
आँधियों में मुस्कुराते 
आओ इनके साथ हम भी 
दो घडी तो मुस्कुराएं 
आओ हम दीपक जलायें 
कुर्सियों की होड़ में 
जी तोड़ मेहनत कर रहे जो 
स्वर्ग हो पृथ्वी पर ऐसा
झूठ वायदा कर रहे जो 
उनके मन से 
स्वार्थ की सीलन हटायें 
आओ हम दीपक जलायें 
अपने घर में दीप मालाएं सजाना 
और दियों संग झूम कर गाना बजाना 
किन्तु उस पल याद कर लेना उनेह भी 
नियति ने जिनके दियों को 
फोड़ डाला 
और अगर संभव लगे तो 
दो दया के दीप 
उनके द्वार पर 
निश्चय जलायें 
आओ हम दीपक जलायें .
                          "चरण"

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