Thursday, November 3, 2011

बाहर जाना छोड़ दिया

जब से हुयी है जुदा वो हमने सारा जमाना छोड़ दिया 
घर पर ही रहता हूँ अक्सर बाहर जाना छोड़ दिया 
उसके गम में उठता हूँ मै उसके गम मे सोता हूँ 
अब तो मैंने गलती से भी हँसना हँसाना छोड़ दिया 
जब तक थी इस जीवन मे मै महका महका रहता था 
जब से गयी है मैंने भी अब इत्र लगाना छोड़ दिया 
उससे लिपटा रहता था हर बात हिर्दय की कहता था 
अब तो मैंने सपने मे भी मुस्कुराना छोड़ दिया 
उसकी देह की खुसबू से जो पक्छी खिंच खिंच आते थे 
अब उन मूक परिंदों ने भी घर पर आना छोड़ दिया 
जिस कुटिया मे रहती थी वो उसमे अब मै रहता हूँ 
मैंने उसके प्यार के खातिर महल पुराना छोड़ दिया .
                                                            "चरण"

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