Monday, November 21, 2011

वर्ष गांठ के शुभ अवसर पर

यह कविता उन सभी को समर्पित है जिनका आज जन्म दिन है .
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जीवन यूँ तो छण भंगुर है
किन्तु सदियों तक चलता है
जिसने अवसर को पहिचाना
जीवन उसका हो जाता है
जिसने अवसर को ठुकराया
अपनी ही किस्मत छलता है
सूर्य रोज उदय होता है
और उसी दिन ढल जाता है
कुछ ही घंटो के जीवन में
कर्तव्य अपना कर जाता है
बादल भी कहाँ रोज गरजते
पानी भी कहाँ रोज बरसता
किन्तु थोड़े से अवसर में
हर रीता घट भर जाता है
आज तुम्हारी वर्ष गांठ है
सारी सृष्टी समर्पित तुमको
मेरी भी आयु जुड़ जाये
दुनिया गले लगाये तुमको
वर्ष गांठ के इस अवसर तक
एक युग मानव जी लेता
कितने ही संघर्षों से युक्त
घूँट घूँट विष पी लेता है
फिर भी मानव तू महान
अपनी मानवता मत खोना
जीवन जीने के हेतु है
सर धर हाथ कभी मत रोना
वैसे जीवन के सुमनों में
अपने ही कांटे बनते हैं
फिर भी अपने अपने ही हैं
भले हमारा मन छलते हैं
अभी तो केवल एक अंश ही
जीवन का बलिदान किया है
अभी तो पूरा युग बाकी है
इसका भी अनुमान किया है
समस्त सृष्टी पर यूँ छा जाना
जैसे बादल छा जाते हैं
रजनी का अंधकार मिटाने
चाँद और तारे आ जाते हैं
आज मित्र इस शुभ अवसर पर
बोलो तुमको क्या दे  डालूं
कविताओं के ढेर लगा दूँ
या दिल के उदगार निकालूं
एक कवि क्या दे सकता है
देने को उसपर क्या होता
जो समाज की पीडाओं को
अपने कन्धों पर नित ढ़ोता.
                         "चरण"





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