Thursday, November 10, 2011

अवसर

उस दिन 
जब सत्य ने
असत्य के आगे
अपने हथियार डाल दिए
और गिड गिडा कर
छमा याचना करने लगा
तब
पहली बार
मुझे बोध हुआ
की --मै
वर्तमान के दर्पण के सामने
भूत का लबादा पहने
इतिहास के पन्नो को
चाटता रहा हूँ
और
कोलाहल से दूर
धरती के नीचे
दूर तक
पुरानी शीलंन की तलाश में
केंचुवे सा
रेंगता रहा हूँ
उस दिन
पहली बार
मैंने
असत्य की प्रतिष्ठा को जाना
और
प्रगतिवाद के झुण्ड के साथ
सत्य पर
असत्य की विजय का
लोहा माना
देर से ही सही
पर
अब मैंने
वर्तमान को पहचान लिया है
सत्य और असत्य के
अंतर को जान लिया है
अब मुझे
कोई
बेवकूफ नहीं बना सकता
और न ही
रूढ़िवादी
दकियानूसी
जैसे शब्द कहकर
सभ्य सभाओं से
मेरा वहिष्कार कर सकता है
अब मैंने
अवसर को पहचान लिया है
अवसर को ओढ़ लिया है
अवसर पर जीता हूँ
अवसर पर मरता हूँ
अवसर जो कहता है
अवसर पर करता हूँ .
                       "चरण"

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