Saturday, November 26, 2011

हवा भी रंग बदलती है

आजकल तो हवा भी रंग बदलती है
कभी इसके कभी उसके संग चलती है
पल भर को भरोसा कर भी लें तो क्या
संसद की गलियों से कभी गंगा निकलती है
अब हमें वातावरण में गर्मी चाहिए
भाषणों से भी कहीं बरफ पिघलती है
आश्वाशन से नहीं भरता हमारा पेट
पेट में अब तो भयंकर आग जलती है
अब हमें काफ़िर हवाओं से लड़ना है
सो चुके जग जाओ अब तो रात ढलती है
सुला दो मुझको कोई लोरियां गा कर
नींद  से बोझिल ये आँखे बहुत जलती हैं
कब छंटेंगे ये अँधेरे किसको मालूम है
बाहर आने को मेरी इच्छा मचलती है .
                                     "चरण"

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