Wednesday, November 16, 2011

तुम हवा हो

तुम हवा हो
रुकोगी नहीं
तुम नदी हो
ठहरोगी नहीं
तुम
उगते हुए सूर्य का प्रकाश हो
बंधोगी नहीं
तुम समय हो
तुम गति हो
बढ़ना तुम्हारा धर्म है
बढ़ना तुम्हारा कर्त्तव्य है
बढ़ना तुम्हारी नियति है
और मै नादान
हवा को रोकना चाहता हूँ
नदी के बहाव को
ठहराना चाहता हूँ
सूर्य के प्रकाश को
बाँधना चाहता हूँ
तुम्हारे बढ़ने के धर्म
तुम्हारे बढ़ने के कर्त्तव्य
तुम्हारी बढ़ने की नियति पर
अंकुश लगाना चाहता हूँ
मै कितना मुर्ख हूँ
समय के प्रभाव से
कितना अनभिज्ञ हूँ
सचमुच मै कितना नादान हूँ
मै भूल जाता हूँ
मै बीता हुआ अतीत हूँ
मै चुका हुआ कल हूँ
तुम वर्तमान हो
तुम भविष्य हो
तुम्हारी गति तीव्र है
मै चल नहीं सकता
तुम्हारे साथ
क्योंकि मै भूत हूँ
थका हुआ कल हूँ
रुका हुआ पल हूँ .
            "चरण" 

No comments:

Post a Comment