हाँ जीवन का सूरज
डूब गया भरी दुपहरी में
साँझ घिर आयी है
अँधेरा होने तक
भटक गया है कारवां गंतव्य से
निराशा की गहरी खाइयाँ
उलझनों के ऊँचे ऊँचे पर्वत
पाप के कंटीले वन
सभी कुछ सामने हैं
अविश्वाश की गांठ अभी भी
सुलझी नहीं
आज फिर पनप रहा है एक नया बीमार
गुटबंदी का जामा पहने
किन्तु अब भी शेष है
प्रभु की ज्योति एकता सूत्र में
बाँधने को
हाँ धर्म की ज्योति दिखाने को
ताकि हम भी देख सकें
अनंत जीवन का स्वर्ग
यही हमारा कर्तव्य है .
"चरण"
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