मै भावनाओं में बहकर
कविता नहीं लिखता
और न ही खड़ा करता हूँ
शब्दों का ताजमहल
मै कविता लिखने से पहले
संदर्भों की सच्चाई को
ठोक पीट कर जांचता हूँ
और
पूरी तरह आश्वस्त हो जाने के बाद
खून से रंगता हूँ कागजों को
पसीने से खींचता हूँ
शब्दों की लकीरें
और फिर
अन्सुआई आँखों से निहारकर
फेंक देता हूँ
साहित्यिक दरिंदों के बीच
अंतिम संस्कार के लिए
"चरण"
कविता नहीं लिखता
और न ही खड़ा करता हूँ
शब्दों का ताजमहल
मै कविता लिखने से पहले
संदर्भों की सच्चाई को
ठोक पीट कर जांचता हूँ
और
पूरी तरह आश्वस्त हो जाने के बाद
खून से रंगता हूँ कागजों को
पसीने से खींचता हूँ
शब्दों की लकीरें
और फिर
अन्सुआई आँखों से निहारकर
फेंक देता हूँ
साहित्यिक दरिंदों के बीच
अंतिम संस्कार के लिए
"चरण"
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