आजकल तो हवा भी रंग बदलती है
कभी इसके कभी उसके संग चलती है
पल भर को भरोसा कर भी लें तो क्या
संसद की गलियों से कभी गंगा निकलती है
अब हमें वातावरण में गर्मी चाहिए
भाषणों से भी कहीं बरफ पिघलती है
आश्वाशन से नहीं भरता हमारा पेट
पेट में अब तो भयंकर आग जलती है
अब हमें काफ़िर हवाओं से लड़ना है
सो चुके जग जाओ अब तो रात ढलती है
सुला दो मुझको कोई लोरियां गा कर
नींद से बोझिल ये आँखे बहुत जलती हैं
कब छंटेंगे ये अँधेरे किसको मालूम है
बाहर आने को मेरी इच्छा मचलती है .
"चरण"
कभी इसके कभी उसके संग चलती है
पल भर को भरोसा कर भी लें तो क्या
संसद की गलियों से कभी गंगा निकलती है
अब हमें वातावरण में गर्मी चाहिए
भाषणों से भी कहीं बरफ पिघलती है
आश्वाशन से नहीं भरता हमारा पेट
पेट में अब तो भयंकर आग जलती है
अब हमें काफ़िर हवाओं से लड़ना है
सो चुके जग जाओ अब तो रात ढलती है
सुला दो मुझको कोई लोरियां गा कर
नींद से बोझिल ये आँखे बहुत जलती हैं
कब छंटेंगे ये अँधेरे किसको मालूम है
बाहर आने को मेरी इच्छा मचलती है .
"चरण"
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