आसमान छूकर भी बौने
कितने हैं मजबूर खिलौने
देह से काम निकल जाने पर
प्राण उड़े जैसे मृग छौने
अक्सर हम ऐसे फिंक जाते
ज्यों शादी में पत्तल दौने
आगे बढ़ पथ रोक रहे हैं
उनके कुछ संकल्प घिनौने
अभी अभी दफना कर आये
कुछ आशा कुछ स्वप्न सलोने
बतलाने की बात नहीं है
घर फूँका है घर की लौ ने .
"चरण"
कितने हैं मजबूर खिलौने
देह से काम निकल जाने पर
प्राण उड़े जैसे मृग छौने
अक्सर हम ऐसे फिंक जाते
ज्यों शादी में पत्तल दौने
आगे बढ़ पथ रोक रहे हैं
उनके कुछ संकल्प घिनौने
अभी अभी दफना कर आये
कुछ आशा कुछ स्वप्न सलोने
बतलाने की बात नहीं है
घर फूँका है घर की लौ ने .
"चरण"
आसमान छूकर भी बौने..............beautiful concept
ReplyDeletebahut ache
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