खूंटे से बंधी हुई गाय है यह जिन्दगी
प्रताड़ित विधवा की हाय है यह जिंदगी
ललचाई आँखों से टुकुर टुकुर देखती
प्यालों में बची हुई चाय है यह जिन्दगी
धोके में फंसे हुए मुजरिम के बारे में
शंकालु जूरी की राय है यह जिन्दगी
गंगाजल जिसको न प्रभावित कर पाए
सधी हुई वेश्या की आय है यह जिन्दगी
छत की तलाश में भटक रहा कारवां
भूतपूर्व उजड़ी सराय है यह जिन्दगी
बस्ती से दूर कहीं नाले पर बसा हुआ
अस्पृश्य पिछड़ा समुदाय है यह जिन्दगी
नोक पर त्रिशूलों की उगते हैं रात दिन
आजकल मंदा व्यवसाय है यह जिन्दगी
सामने कसाई के गर्दन झुकाए हुए
हाय हाय कितनी असहाय है यह जिन्दगी .
"चरण
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