आदमी पर गिद्ध मडराने लगे हैं
दुर्दिनो के काफिले आने लगे हैं
देखिये क्या वक्त ने बदले हैं तेवर
जन्म दिन पर मर्सिया गाने लगे हैं
इस निगोड़ी भूख की पराकाष्टा तो देखिये
कल्पनाएँ भूनकर खाने लगे हैं
हादसे जिनको समझ दफना चुके थे
आजकल फिर ज़हन पर छाने लगे हैं
जिनके कंधो पर भरोसा करके बैठे
अब वही संबल कहर ढाने लगे हैं
बांध ले बिस्तर चलें कहीं और हंसा
अब यहाँ पर साये लम्बाने लगे हैं .
"चरण"
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