जिस डाली पर कोयल कूकती
उस पर उल्लू बोल रहा है
कौन हमारे अमृत घट में
चुपके से विष घोल रहा है
खलियानों में सांप लोटते
खेतों में शैतान उग रहे
इंसानों की भरी सड़क पर
सरे आम भगवान् लुट रहे
इन्द्रराज का इन्द्रासन भी
अदभुद भय से डोल रहा है
कौन हमारे अमृत घट में --------
कलि फूल बनने से पहले
पैरों की कुचलाहन बन गयी
वेसियालयों की शान बन गयी
कोठों की मुस्कान बन गयी
कौन हमारी माँ बहिनों का
छुपकर घूँघट खोल रहा है
कौन हमारे अमृत घट में ------------
नन्हा बदन धूप में जलता
सपनो का संसार पिघलता
नकली रोटी के टुकड़ो से
असली रोटी का मन छलता
आज एक गेहूं का दाना
सोने का बल तोल रहा है
कौन हमारे अमृत घट में
चुपके से विष घोल रहा है .
"चरण"
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