चल पड़ा अंधे सफ़र में आदमी
गाँव में हो या शहर में आदमी
देखिये कब तक रहे सुख चैन से
आजकल की नई लहर में आदमी
स्पर्श भी अब जान लेवा बन गया
बुझाया गया जब से ज़हर में आदमी
फैसला तो हो चुका है अजगरों के पक्ष में
व्यर्थ ही अब तप रहा है दोपहर में आदमी
कब तलक पीते रहेंगे उस नहर का नीर हम
मुद्दतों से सड़ रहा है जिस नहर में आदमी
"चरण"
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