Sunday, July 24, 2011

हर दरे दीवार पर मुर्गे बिथाये हैं

कातिलाना ढंग से वे मुस्कुराये हैं
जब कभी भी लौट कर दिल्ली से आए हैं
काला बाजारियोन कि फिर तनने लगी मूँछें
नगर कि वेश्याओं ने स्वागत गीत गाये हैं
इन झुगियोन को भी शायद पेरीस बनायेंगे
बड़े अंदाज़ से बुलदोजरोन के संग आए हैं
लब सिल लिए करने लगे आदेश का पालन
इस भीड़ में अब सब हरे चश्मे लगाए हैं
अब कोई निश्चिंत हो कर सो नहीं सकता
हर दरे दीवार पर मुर्गे बिथाये हैं
उपलब्धियों के जब कभी होने लगे चर्चे
सीना फुला आकाश के तारे गिनाये हैं
इस शहर की मानसिकता और बदलेगी
कुछ योजनाओं के नए नक्शे दिखाये हैं
                                          "चरण"

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