Wednesday, July 27, 2011

आओ किस्सा सुनाउन

आज जब मै अतीत के पन्नो को खंगा हा था  तो यह लग बीस साल पुरानी रचना मेरे हाथों में गई,यह एक ऐसी घटना है जो दिल्ली में घटी किंतु पूरे भारत वर्ष को दहला कर रख दिया .
इस घटना को अंजाम दिया था उस समय कि प्रख्यात क्रिमनल जोड़ी रंगा वा बिल्ला ने यह वह समय था जब भारत में क्राइम का सूर्योदय हो रहा था .इसे आप कविता कह सकते हैं ,किंतु में इसे कविता मानने से इनकार करता हूँ  मेरी दृष्टि में यह एक घटना का चित्रण है जिसे साहित्य कि भाषा में सपाट बयानी कहते हैं . प्रस्तुत है रचना -----------
आओ किस्सा सुनाउन
एक किस्सा सुना
यह किस्सा देश का है
हमारे देश का है
सुनहरे देश का है
प्यारे देश का है ,
साँझ का झुर्मुता था
दिन ढलने लगा था
निशा का कारवाँ भी
धरती पे उतरने लगा था .
दिल्ली कि एक सड़क पर
दो बच्चे खड़े थे
खुदा का नूर थे वे
बड़े मश्हूर थे वे
माँ कि आँख के तारे
बाप के राजदुलारे
देश कि शान थे वे
हुस्न कि खान थे वे .
तभी भुडोल  आया
एक तूफान आया
कार में बैठ करके
एक शैतान आया ,
पास बच्चो के आक
कान में फुस्फुसाकर
खींच कर हाथ उनका
कार में उनको डाला .
कर फिर बढ़ने लगी
हवा सी चलने लगी
बच्चे चिल्लाते रहे
शोर मचाते रहे
आँसू बहाते रहे
ख़ुद को बचाते रहे
जिसने भी सुनी आवाजें
दिल तो दहलाए लेकिन
दर्दीली चींख सुनकर
मन तो भर आए लेकिन
कोइ कुछ कर ना सका
आह तक भर ना सका ,
पुलिस भी रही देखती
कानो में उंगली डालें
होथो पर ताला डालें
आंखों पर परदा डालें
ये हैं इस देश के रक्छक
हमारे देश के रक्छक .
आओ दर्शन कर्वऊन
रात जब बढ़ने लगी
यौवन पर चढ़ने लगी
अभागिन माता जी कि
बेचैनी बढ़ने लगी
बच्चे अब तक ना लौटे
शहर भर रहा खर्राटे
तलाश तब होने लगी
माता जी रोने लगी
आँखों से नीर ना रुकता
हृदय में शूल सा चुभता
रात भर रहे भागते
शुभ चिंतक रहे जागते
पर कोई हल ना निकला 
दिल के बोझिल आँगन से
दर्दिलापनना निकला
वक्त हा यूँ ही गुजरता
अंचल को आंशु से भरता
आशाओं के खालीपन में
निराशा का रंग भरता .
वक्त लाया संदेशा
हो गया पूरा अंदेशा
झाड़ी में लाश मिलीं है
संजय की लाश मिली है
गीता की लाश मिलीं है
हीरे की लाश मिली है
नीलम कि लाश मिली है
पन्ने कि लाश मिली है
चोपड़ा दंपती के
बन्ने- की लाश मिली है .
                          "चरण"

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