Sunday, July 31, 2011

समाजवाद

यदि समाजवाद का अर्थ है
सबको समान दृष्टि से देखना
तो हमारी सरकार
वास्तव में प्रशंसा कि पात्र है
क्योंकि
उसने
बड़े से बड़े मानव

छोटे से छोटे जानवर को
एक ही आँख से देखा है
अर्थात
जो घास का पूला
जानवर को खिलाया
वही
मनुष्य के सामने
बड़ी श्रधा से फेंका है .
                           "चरण"

समय से पहले

समय से पहले और जरूरत से ज्यादा प्राप्त करने की लालसा राज नेताओं में अधिक होती है ,क्यों कि उनका जीवन केवल पाँच वर्ष का होता है .
                                                                "चरण"

Friday, July 29, 2011

बसंत

बसंत
शोर है गली गली
खिल उठी कलि कलि
पुकारति पवन चली
बसंत गया -बसंत गया
धूल यूँ उड़ी कि ज्यों
अबीर हो गुलाल हो
बदन को चुम ले अगर
तो जिंदगी निहाल हो
एकता के राग को अलापता
बसंत गया बसंत गया

खेत लहलहा उठे
किसान मुस्कुरा उठे
पलास झूम्ने लगे
गगन को चुमने लगे
वसुंधरा के रूप को निखाता
बसंत गया बसंत गया

पुरानी पत्तियाँ  झड़ी 
शा पर नई  छड़ी
विरिक्छ तन बदल रहे 
मस्त हो मचल  रहे 
कहीं पे पीत रंग है कहीं हरा हरा 
बसंत गया बसंत गया

पीया के इंतज़ार में
जो रात काटती रही
आत्मा के दर्द को
निशा से बाँटति रही
पिया  का रुप धाकर
बसंत गया बसंत गया
                                       "चरण"
बसंत
शोर है गली गली
खिल उठी कलि कलि
पुकारति पवन चली
बसंत गया -बसंत गया
धूल यूँ उड़ी कि ज्यों
अबीर हो गुलाल हो
बदन को चुम ले अगर
तो जिंदगी निहाल हो
एकता के राग को अलापता
बसंत गया बसंत गया

खेत लहलहा उठे
किसान मुस्कुरा उठे
पलास झूम्ने लगे
गगन को चुमने लगे
वसुंधरा के रूप को निखाता
बसंत गया बसंत गया

पुरानी पत्तियाँ  झड़ी 
शा पर नई  छड़ी
विरिक्छ तन बदल रहे 
मस्त हो मचल  रहे 
कहीं पे पीत रंग है कहीं हरा हरा 
बसंत गया बसंत गया

पीया के इंतज़ार में
जो रात काटती रही
आत्मा के दर्द को
निशा से बाँटति रही
पिया  का रुप धाकर
बसंत गया बसंत गया
                                       "चरण"
बसंत
शोर है गली गली
खिल उठी कलि कलि
पुकारति पवन चली
बसंत गया -बसंत गया
धूल यूँ उड़ी कि ज्यों
अबीर हो गुलाल हो
बदन को चुम ले अगर
तो जिंदगी निहाल हो
एकता के राग को अलापता
बसंत गया बसंत गया

खेत लहलहा उठे
किसान मुस्कुरा उठे
पलास झूम्ने लगे
गगन को चुमने लगे
वसुंधरा के रूप को निखाता
बसंत गया बसंत गया

पुरानी पत्तियाँ  झड़ी 
शा पर नई  छड़ी
विरिक्छ तन बदल रहे 
मस्त हो मचल  रहे 
कहीं पे पीत रंग है कहीं हरा हरा 
बसंत गया बसंत गया

पीया के इंतज़ार में
जो रात काटती रही
आत्मा के दर्द को
निशा से बाँटति रही
पिया  का रुप धाकर
बसंत गया बसंत गया
                                       "चरण"

कविता मेरी आसंगिनि है और संजीवनी भी

कविता मेरी आसंगिनि है और संजीवनी भी
कविता मेरी आसंगिनि है और संजीवनी भी

Thursday, July 28, 2011

इस प्रश्न को आप ही सुल्झाइये

एक भूखे पेट को क्या चाहिए
इस प्रश्न को आप ही सुलझाइये
अंतडियोन  में उग रहे जंगली बबुल 
आइए एक बार देख जाइए
किस अंधेरी कोठरी  में कैद है अपनी सहर
नयन व्याकुल हो गए हैं इक झलक दिखलाइये
नीची निगाहें करके ना उत्तर दिया करो
असलियत हम जानते हैं हमसे मत शर्माइये
आरंभ होता है यहाँ से झोपरॉन का सिसिला
कृपया यहाँ बैठ करके आग मत सुल्गाइये
आता नहीं है गर हमारी गिगिराहत पर यकीन
नरक में एक दिन को आप भी जाइए .
                                                            "चरण"

आप सीने से गर लगा लेते

आप थोड़ा सा मुस्कुरा देते बीती बातों को हम भूला देते
हम भी दे देते जान हंस हंस कर
आप सीने से गर लगा लेते
गिरते गिरते शायद संभल जाते
आप आँखों में गर बसा लेते
हम यूँ कीचड़ में ना ने होते
आप झुक कर अगर उठा लेते
हम भी महकते किसी के जुड़े में
आप काँटों से गर बचा लेते .
                                     "चरण"
कविता लिखना सरल है ,कविता को जीना कठिन है और जब तक हम कविता को जीते नहीं है , हम उसकी सार्थकता को सिद्ध नहीं कर सकते .
                                                          "चरण"

Wednesday, July 27, 2011

आओ किस्सा सुनाउन

आज जब मै अतीत के पन्नो को खंगा हा था  तो यह लग बीस साल पुरानी रचना मेरे हाथों में गई,यह एक ऐसी घटना है जो दिल्ली में घटी किंतु पूरे भारत वर्ष को दहला कर रख दिया .
इस घटना को अंजाम दिया था उस समय कि प्रख्यात क्रिमनल जोड़ी रंगा वा बिल्ला ने यह वह समय था जब भारत में क्राइम का सूर्योदय हो रहा था .इसे आप कविता कह सकते हैं ,किंतु में इसे कविता मानने से इनकार करता हूँ  मेरी दृष्टि में यह एक घटना का चित्रण है जिसे साहित्य कि भाषा में सपाट बयानी कहते हैं . प्रस्तुत है रचना -----------
आओ किस्सा सुनाउन
एक किस्सा सुना
यह किस्सा देश का है
हमारे देश का है
सुनहरे देश का है
प्यारे देश का है ,
साँझ का झुर्मुता था
दिन ढलने लगा था
निशा का कारवाँ भी
धरती पे उतरने लगा था .
दिल्ली कि एक सड़क पर
दो बच्चे खड़े थे
खुदा का नूर थे वे
बड़े मश्हूर थे वे
माँ कि आँख के तारे
बाप के राजदुलारे
देश कि शान थे वे
हुस्न कि खान थे वे .
तभी भुडोल  आया
एक तूफान आया
कार में बैठ करके
एक शैतान आया ,
पास बच्चो के आक
कान में फुस्फुसाकर
खींच कर हाथ उनका
कार में उनको डाला .
कर फिर बढ़ने लगी
हवा सी चलने लगी
बच्चे चिल्लाते रहे
शोर मचाते रहे
आँसू बहाते रहे
ख़ुद को बचाते रहे
जिसने भी सुनी आवाजें
दिल तो दहलाए लेकिन
दर्दीली चींख सुनकर
मन तो भर आए लेकिन
कोइ कुछ कर ना सका
आह तक भर ना सका ,
पुलिस भी रही देखती
कानो में उंगली डालें
होथो पर ताला डालें
आंखों पर परदा डालें
ये हैं इस देश के रक्छक
हमारे देश के रक्छक .
आओ दर्शन कर्वऊन
रात जब बढ़ने लगी
यौवन पर चढ़ने लगी
अभागिन माता जी कि
बेचैनी बढ़ने लगी
बच्चे अब तक ना लौटे
शहर भर रहा खर्राटे
तलाश तब होने लगी
माता जी रोने लगी
आँखों से नीर ना रुकता
हृदय में शूल सा चुभता
रात भर रहे भागते
शुभ चिंतक रहे जागते
पर कोई हल ना निकला 
दिल के बोझिल आँगन से
दर्दिलापनना निकला
वक्त हा यूँ ही गुजरता
अंचल को आंशु से भरता
आशाओं के खालीपन में
निराशा का रंग भरता .
वक्त लाया संदेशा
हो गया पूरा अंदेशा
झाड़ी में लाश मिलीं है
संजय की लाश मिली है
गीता की लाश मिलीं है
हीरे की लाश मिली है
नीलम कि लाश मिली है
पन्ने कि लाश मिली है
चोपड़ा दंपती के
बन्ने- की लाश मिली है .
                          "चरण"

Tuesday, July 26, 2011

एक दिन

नगर पालिका के प्रांगण में जमी भीड़ को देख कर
हमने एक से पूछा
भाई यह क्या हो रहा है
उसने उत्तर दिया
क्योंकि
नगर के लोग
पानी कि कमी से प्यासे रहे हैं
इसलिए
शुभ चिंतक दूध वाले
अनशन कर रहे हैं
                         "चरण"

हर रोज़ नया घाव दिए जा रहे हैं दोस्त

हर रोज़ नया घाव दिए जा रहे हैं दोस्त
दोस्त का अपमान किए जा रहे हैं दोस्त
कोल्हु में पिल रहे  हैं अपने हा मांस
शालीनता से श्रये लिए जा रहे हैं दोस्त
देखियेगा एक दिन पर्वत बना देंगे इसे
आज जो उपकार किए जा रहे हैं दोस्त
विष मिलाकर दूध में हमको पिला दिया
और अमृत स्वयम पिये जा रहे हैं दोस्त
विश्वासघात कर गया यह जानते हैं  हम
फिर भी तेरा नाम लिए जा रहे हैं दोस्त
ये हम ही आंखो  में समंदर लिए हुए
विपरीत हवा में भी जिये जा रहे हैं दोस्त .
                                                       "चरण"
हर रोज़ नया घाव दिए जा रहे हैं दोस्त
दोस्त का अपमान किए जा रहे हैं दोस्त
कोल्हु में पिल रहे  हैं अपने हा मांस
शालीनता से श्रये लिए जा रहे हैं दोस्त
देखियेगा एक दिन पर्वत बना देंगे इसे
आज जो उपकार किए जा रहे हैं दोस्त
विष मिलाकर दूध में हमको पिला दिया
और अमृत स्वयम पिये जा रहे हैं दोस्त
विश्वासघात कर गया यह जानते हैं  हम
फिर भी तेरा नाम लिए जा रहे हैं दोस्त
ये हम ही आंखो  में समंदर लिए हुए
विपरीत हवा में भी जिये जा रहे हैं दोस्त .
                                                       "चरण"
हर रोज़ नया घाव दिए जा रहे हैं दोस्त
दोस्त का अपमान किए जा रहे हैं दोस्त
कोल्हु में पिल रहे  हैं अपने हा मांस
शालीनता से श्रये लिए जा रहे हैं दोस्त
देखियेगा एक दिन पर्वत बना देंगे इसे
आज जो उपकार किए जा रहे हैं दोस्त
विष मिलाकर दूध में हमको पिला दिया
और अमृत स्वयम पिये जा रहे हैं दोस्त
विश्वासघात कर गया यह जानते हैं  हम
फिर भी तेरा नाम लिए जा रहे हैं दोस्त
ये हम ही आंखो  में समंदर लिए हुए
विपरीत हवा में भी जिये जा रहे हैं दोस्त .
                                                       "चरण"

Monday, July 25, 2011

चोर से डरना ना साहूकार से डरना

चोर से डरना ना साहूकार से डरना
डरना पड़े तो यार रिश्तेदार से डरना
कुछ खर्च कर सको तो रिश्तेदार के जाना
मरना पड़े तो गैर कि दहलीज़ पा मरना
इक अजनबी था ढेर सारा  प्यार दे गया
घातक हुआ विश्वास रिश्तेदार पर करना
मत भूलकर अहसान रिस्तेदर का लेना
दल्दले तालाब में फंस जायेगा वरना
ज्योतिषी बता गया लूटने का खतरा है
मोहल्ले से रिस्तेदा के चुपचाप गुजरना
                                                    "चरण"

Sunday, July 24, 2011

हर दरे दीवार पर मुर्गे बिथाये हैं

कातिलाना ढंग से वे मुस्कुराये हैं
जब कभी भी लौट कर दिल्ली से आए हैं
काला बाजारियोन कि फिर तनने लगी मूँछें
नगर कि वेश्याओं ने स्वागत गीत गाये हैं
इन झुगियोन को भी शायद पेरीस बनायेंगे
बड़े अंदाज़ से बुलदोजरोन के संग आए हैं
लब सिल लिए करने लगे आदेश का पालन
इस भीड़ में अब सब हरे चश्मे लगाए हैं
अब कोई निश्चिंत हो कर सो नहीं सकता
हर दरे दीवार पर मुर्गे बिथाये हैं
उपलब्धियों के जब कभी होने लगे चर्चे
सीना फुला आकाश के तारे गिनाये हैं
इस शहर की मानसिकता और बदलेगी
कुछ योजनाओं के नए नक्शे दिखाये हैं
                                          "चरण"

Saturday, July 23, 2011

गुण गा रहा है आपका पूरा शहर

आपका आदेश सिर आंखों पर
सेवा करेंगे आप कि आठों पह
हम खड़े हैं द्वार पर खंजर लिए
आप भीतर शौख से द्धाहिये कहर
आप बस निस्चिंत हो सोते रहें
गुण गा रहा है आपका पूरा शहर
इस महा कंट्रोल का कोटा जनाब
पहुँचा दिया है आपके साले के घर
हर सभा में भीड़ गूंगो कि रहेगी
फैला दिया है हमने एक ऐसा जहर
अगला शासक आपका बेटा ही होगा
है अभी भी आपके पक्ष में लहर
फिर मचेगी त्रहि त्राहि खेत रोयेंगे फिर
पाट दी है हमने गाँव की नहर .
                                        "चरण"

Friday, July 22, 2011

डूबते किनारे

आँसुओं के छंद बने डूबते किनारे हैं
जिंदगी कि बाज़ी को जिंदगी पर हारे हैं
आग लगी तन में मेरे आग लगी मन में
आग गाँव गाँव लगी आग शहर शहर लगी
आग ने उजाड़ कर रख दिया मेरा चमन
फिर भी आत्मा बेचारी आग के सहारे है .

वक्त के इरादों पर वक्त ने स्रिंगार किया
वक्त कि जवानी पर वक्त ने नीखार दिया
वक्त ने रुला दिया वक्त ही से हारे हैं
फिर भी आत्मा बेचारी वक्त के सहारे है

धूप के बिछोने पर हिम शिशु के रोने पर
साँझ  के खिलौने से अजनबी से बौने से
रात के अंधेरे में  रात ही को घेरे हैं

दर्द के मजार पर दर्द के दिए जले
दर्द कि तलाश में दर्द से गुजर चले
दर्द के तूफानों में दर्दे दिन गुजारे हैं .
आँसुओं के छंद बने डूबते किनारे हैं
जिंदगी कि बाजी को जिंदगी पर हारे हैं .
                                                   "चरण"
डूबते किनारे
आँसुओं के छंद बने डूबते किनारे हैं
जिंदगी कि बाज़ी को जिंदगी पर हारे हैं
आग लगी तन में मेरे आग लगी मन में
आग गाँव गाँव लगी आग शहर शहर लगी
आग ने उजाड़ कर रख दिया मेरा चमन
फिर भी आत्मा बेचारी आग के सहारे है .

वक्त के इरादों पर वक्त ने स्रिंगार किया
वक्त कि जवानी पर वक्त ने नीखार दिया
वक्त ने रुला दिया वक्त ही से हारे हैं
फिर भी आत्मा बेचारी वक्त के सहारे है

धूप के बिछोने पर हिम शिशु के रोने पर
साँझ  के खिलौने से अजनबी से बौने से
रात के अंधेरे में  रात ही को घेरे हैं

दर्द के मजार पर दर्द के दिए जले
दर्द कि तलाश में दर्द से गुजर चले
दर्द के तूफानों में दर्दे दिन गुजारे हैं .
आँसुओं के छंद बने डूबते किनारे हैं
जिंदगी कि बाजी को जिंदगी पर हारे हैं .
                                                   "चरण"
डूबते किनारे
आँसुओं के छंद बने डूबते किनारे हैं
जिंदगी कि बाज़ी को जिंदगी पर हारे हैं
आग लगी तन में मेरे आग लगी मन में
आग गाँव गाँव लगी आग शहर शहर लगी
आग ने उजाड़ कर रख दिया मेरा चमन
फिर भी आत्मा बेचारी आग के सहारे है .

वक्त के इरादों पर वक्त ने स्रिंगार किया
वक्त कि जवानी पर वक्त ने नीखार दिया
वक्त ने रुला दिया वक्त ही से हारे हैं
फिर भी आत्मा बेचारी वक्त के सहारे है

धूप के बिछोने पर हिम शिशु के रोने पर
साँझ  के खिलौने से अजनबी से बौने से
रात के अंधेरे में  रात ही को घेरे हैं

दर्द के मजार पर दर्द के दिए जले
दर्द कि तलाश में दर्द से गुजर चले
दर्द के तूफानों में दर्दे दिन गुजारे हैं .
आँसुओं के छंद बने डूबते किनारे हैं
जिंदगी कि बाजी को जिंदगी पर हारे हैं .
                                                   "चरण"