चौराहों पर आने लगे हैं लोग
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भीतर के घाव नोच कर माथे पर उगाने लगे हैं लोग
कितनी मन्हूश शक्ल बनाने लगे हैं लोग
तृष्णा कुछ इस कदर हावी है जेहन पर
अपने घरों के भेद बताने लगे हैं लोग
सभ्यता के नाम पर ,मौलिकता के नाम पर
नग्न हो चौराहों पर आने लगे है लोग
उद्देश्यहीन मूर्ख परिंदो की टोह में
बहेलियोन कि तरह जाल बिछाने लगे हैं लोग
शहंशा कि आँख की पुतली बने हुये
नीचे खड़े हुओ को डराने लगे हैं लोग .
"चरण"
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भीतर के घाव नोच कर माथे पर उगाने लगे हैं लोग
कितनी मन्हूश शक्ल बनाने लगे हैं लोग
तृष्णा कुछ इस कदर हावी है जेहन पर
अपने घरों के भेद बताने लगे हैं लोग
सभ्यता के नाम पर ,मौलिकता के नाम पर
नग्न हो चौराहों पर आने लगे है लोग
उद्देश्यहीन मूर्ख परिंदो की टोह में
बहेलियोन कि तरह जाल बिछाने लगे हैं लोग
शहंशा कि आँख की पुतली बने हुये
नीचे खड़े हुओ को डराने लगे हैं लोग .
"चरण"
Kuch Likhna Chahata Hoon
ReplyDeleteSochta Hoon Kya Likhoon ?
Soi Umeed Ko Roz Jagana
Kya Unka Yeh Intezar Likhoon?