एक रात
जब सारी जनता सो रही थी
तब
सेठ फूलचंद
और उनके मुनीम घासीराम के बीच
व्यापार की बातें हो रहीं थीं
मोहन का बिल बन गया
जी हाँ
सोहन का बिल बन गया
जी हाँ
खच्चू का बिल बन गया
जी हाँ
बच्चू का बिल बन गया
जी हाँ
और किस किस का बिल बन गया
जी सबका बिल बन गया
उनके इस मधुर वार्तालाप को
ओट में खड़े कुछ चूहे सुन रहे थे
और अपना सर धुन रहे थे
लो अब मनुष्य के भी बिल बनने लगे
ये भी हमारी ही छाती पर दाल दलने लगे
जब आदमी ही बिल में रहने आयेंगे
तो चूहे बेचारे कहाँ जायेंगे .
"चरण"
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