Anubhav
Wednesday, August 31, 2011
अब हमें नपना नहीं हैं
यहाँ धधकती आग में मत कूदिये
यह शहर अपना नहीं है
कागजी फूलों की रक्षा के लिए
धूप में तपना नहीं है
सामने जो वृक्ष पर आंते तंगी हैं
सत्य है सपना नहीं है
आजकल हर रोज घटते जा रहे हैं
अब हमें नपना नहीं है .
"चरण"
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