एक दिन
एक आधुनिक मा
और एक आधुनिक पुत्री
सड़क पर जा रहीं थी
आस पास वालों पर बिजली गिरा रहीं थी
चौराहे पर
एक मनचले युवक ने सीटी बजाई
दोनों आधुनिकाओ ने दृष्टि घुमाई
बारी बारी से अंखिया मिलायी
मुस्करायी
और चली गइं
दूसरे दिन
उसी स्थान पर
अकेली पुत्री फिर उस युवक से टकराए
मुस्कराई अंखिया मिलायी
किंतु युवक खामोश रहा
फिर युवती ही फुस्फुसायी
कल तो सीटी बजा रहा था
आज नखरे दिखा रहा है
युवक बोला
देवी आपको ग़लत फहमी हुयी है
मेरी नीयत जरूर दगमगायी थी
किंतु आप पर नहीं
मैंने तो आपके साथ वाली को देखकर
सीटी बजाई थी .
"चरण"
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