Sunday, July 3, 2011

एक गीत (दीपावली के नाम)

आँचल की ओट किये
अंजुरी में दीप लिए
मेरे गांवन की गोरी
मन में उल्लास भरे ,

कुछ ऐसा लगता है 
आकाश धरा पर है
नव चेतन नव जीवन
विश्वास धरा पर है
गदराये अधरों पर
चंचल मधुमास लिए
मेरे गांवन की गोरी
मन में उल्लास भरे ,आँचल की -----------

संध्या मतवारी ने
दीपक आलोकित कर
फैलादी है जग में
उजियारे की चादर
कजरारे नयनों में
सारा इतिहास लिए
मेरे गांवन की गोरी
मन में उल्लास भरे ,आँचल की -----------

छज्जे मुंडेरों पर
संदीपों की पांति
लौ बढ़ती जाती है
मीनारों की भांति
परदेसी प्रीतम से
मिलने की आस लिए
मेरे गांवन की गोरी
मन में उल्लास भरे. आँचल की ------------.
                                "चरण"

1 comment:

  1. Very nice uncle .. When you resitated this song for us .. it was one of one most beutiful moments that i had ina long time .. it remined me of India, my family ... Diwali :)

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