Thursday, July 14, 2011

तुम हो मेरी आँख कि ज्योति

जा रहा हू छोड़ कर तुमको प्रियतम
हो सके तो माफ कर देना मुझे तुम
तुम हो मेरी आँख कि ज्योति
और मेरी जिंदगी भी
तुम बिना अंधकार संभव है हिर्दय में
किंतु तुम को छोड़कर जाना है निस्चित
हम करें प्रयास जितने भी मगर
किंतु चलना साथ जीवन भर असंभव
क्योंकि जग में और भी कर्तव्य मेरे
राह में आँखें बिछाये ताकतें हैं राह मेरी
याद आएगी मुझे भी रितु बसंती
रो उठेंगे गीत मेरे
सामने वह दिरश्य होगा
जब तुम्हें बाहों में लेकर
काम्पते अधरो पे तेरे
रख दिए थे होंठ मेरे
व्यर्थ है आँसू बहाना
रोक लो इनको प्रिये तुम
कर नही सकती मुझे अब
आह भी विचलित तुम्हारी
किंतु ये न सोचना तुम
मैं तुम्हें चाहता नहीं हूँ
तुम तो मेरे प्रण हो प्रिय
याद सीने में दबाकर
जिंदगी भर काट लूँगा
लो प्रिय अब
हो गया है वक्त मेरा
रोक लो ये अश्रुधारा
और हृदय मुस्कान देकर
दो विदाई का नजारा
ताकि पथ ना  रोक ले मेरा कोई गम
जा राहा  हूँ छोड़कर तुमको प्रियतम
हो सके तो माफ कर देना मुझे तुम .
                                             "चरण"

1 comment:

  1. चरण लाल जी सर, बहुत ही भावात्मंक कविता लिखी है आज आपने...मन की गहराइयों तक पहुंची है... मैं भी आपका follower बन गया हूँ, ब्लाग पर....कभी समय निकाल कर मेरा ब्लॉग भी देख लीजिये....मेरे ब्लाग का लिंक यह है....http://asifalihashmi.blogspot.com/

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