खिल नहीं पाये थे हवा जोर से चली
फुल तो झड़े ही झड़े झड़ गइ कली
मेहनत की कमाई से भरा दूध का गिलास
होंठ तक पहुँचे कि गिरि एक छिपकली
बस्तियों में छा गया गंभीर सन्नाटा
घूमती हैं आजकल कुछ लाश अधजली
रात भर जिस बात का करते रहे विरोध
भोर को वह आँसुओं के रूप में ढाली
रात बियाबन है दिन कैट रहे हैं ज्यों
जल्लाद अंघूते के तले श्वांस कि नली
एक और रात कैट गई करवट बदल बदल
बिस्तरों में रख गया कोई कौच कि फली
"चरण"
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