Saturday, June 18, 2011

आला पुलिस अफसर

एक रूपसी ,कमसिन कुंवारी कन्या के साथ 
पुलिस के संराक्षण में पले हुए 
कुछ गुंडे 
जोर आजमईस कर रहे थे 
और पास ही किसी दूसरे खेत में 
सरकार के वफादार कुछ सिपाही 
हरी हरी घास चर रहे थे 
तभी अचानक 
स्वछ वर्दीधारी 
एक पुलिस अफसर 
बीच में टपक पड़ा 
और बिन मौसम बरसात सा 
गुंडों पर बरस पड़ा 
गुंडे इशारा पाते ही 
दुम दबाकर  भाग खड़े हुए 
तब वह पुलिस अफसर 
कन्या के निकट आया 
उसकी ठुड्डी पकड़ कर 
चेहरे को ऊपर उठाया 
बोला 
बेटी 
अब रात में कहाँ जाओगी
फिर कहीं गुंडों से घिर जाओगी 
मेरे साथ चलो 
रात में 
गुंडों से बचने का गुर सिखा दूंगा 
सुबह होते ही तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा 
लड़की थी भोली नादान 
दीन दुनिया से अनजान 
जी अंकल कहकर 
उसके पीछे हो ली 
रास्तेभर कुछ न बोली 
कमरे में पहुंचकर 
उस आला अफसर ने 
भीतर से कुण्डी लगाई
और ललचाई आँखों से 
उस गुडिया को निहारने लगा 
धीरे धीरे अपने और उसके 
कपडे उतारने लगा 
लड़की भोली थी 
नादान थी 
किन्तु बेवकूफ नहीं थी 
जो इस हरकत का अर्थ न समझ पाती
उसकी आँखें डबडबा आई 
शारीर शिथिल पड़ गया 
रुंधे हुए गले से स्वर फूटे 
अंकल 
यदि मेरे साथ यही होना था 
तो मुझे गुंडों से क्यों बचाया 
और मेरी दृष्टी में 
अपने आपको 
इतना ऊँचा क्यों चढ़ाया 
वह आला अफसर 
ठहाका मार कर हंसा 
और बोला 
नादान लड़की 
यदि -
मैं तुझे गुंडों से नहीं बचाता 
तो 
मेरी वर्दी में दाग नहीं लग जाता .
                                     "चरण"                                                       r  

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