Monday, June 27, 2011

जिंदगी (दो गीत)

 सूने आकाश में पतंग हुई जिन्दगी 
काट रही जूते सी तंग हुई जिन्दगी 

अम्बर से ऊँची है लगती है पास में 
भोला मन भ्रमित है झूठे एहसाश में 
छण भर को भांग की तरंग हुई जिन्दगी 
काट ---------

मन को भरमाती है मनभावन भावना 
झूठे आश्वासन की उथली संभावना 
कच्ची उमर की उमंग हुई जिन्दगी 
काट ----------

हमने तो चाहा था सन्नाटा तोड़ना 
जीवन के झूठे आदर्शों को छोड़ना 
किन्तु चौराहे से संग हुई जिन्दगी 
काट -----------

अन्दर भी बाहर भी इसका अधिकार है 
जाने इस जिंदगी का कितना उधार है 
मेरे सब गीतों के छंद बनी जिंदगी 
काट ----------.
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२-उड़ती चिड़ियों के परों को नोच कर देखो 
जिंदगी को फिर समझ और सोच कर देखो 

सर्फ़ घोलो और उठाओ बुलबुले 
देखने में लग रहे हैं चुलबुले 
अब किसी भी बुलबुले को फोड़कर कर देखो 
जिन्दगी को ---------------

धातुओं में चुलबुली है मरकरी 
धुप में व्याकुल हो जैसे जलपरी 
मुट्ठियों में मरकरी को भींच कर देखो 
जिंदगी को ---------------

धूप में शीतल निशा की कल्पना 
वृद्ध अवस्था ढूँढती है बचपना 
वृद्ध नयन की खाइयों में 
जिस्म की गहराइयों में झाँक कर देखो 
जिंदगी को --------------- .
                                        "चरण"

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