Wednesday, June 22, 2011

आदमी पर गिद्ध मडराने लगे हैं

आदमी पर गिद्ध मडराने लगे हैं 
दुर्दिनो के काफिले आने लगे हैं 

देखिये क्या वक्त ने बदले हैं तेवर 
जन्म दिन पर मर्सिया गाने लगे हैं 

इस निगोड़ी भूख की पराकाष्टा तो देखिये 
कल्पनाएँ भूनकर खाने लगे हैं 

हादसे जिनको समझ दफना चुके थे 
आजकल फिर ज़हन पर छाने लगे हैं 

जिनके कंधो पर भरोसा करके बैठे 
अब वही संबल कहर ढाने लगे हैं 

बांध ले बिस्तर चलें कहीं और हंसा 
अब यहाँ पर साये लम्बाने लगे हैं .
                                  "चरण"

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