Friday, June 24, 2011

जिस डाली पर कोयल कूकती uu

जिस डाली पर कोयल कूकती 
उस पर उल्लू बोल रहा है 
कौन हमारे अमृत घट में 
चुपके से विष घोल रहा है 

खलियानों में सांप लोटते 
खेतों में शैतान उग रहे 
इंसानों की भरी सड़क पर 
सरे आम भगवान् लुट रहे 
इन्द्रराज का इन्द्रासन भी 
अदभुद भय से डोल रहा है 
कौन हमारे अमृत घट  में --------

कलि फूल बनने से पहले 
पैरों की कुचलाहन बन गयी 
वेसियालयों की शान बन गयी 
कोठों की मुस्कान बन गयी 
कौन हमारी माँ बहिनों का 
छुपकर घूँघट खोल रहा है 
कौन हमारे अमृत घट में ------------

नन्हा बदन धूप में जलता 
सपनो का संसार पिघलता 
नकली रोटी के टुकड़ो से 
असली रोटी का मन छलता 
आज एक गेहूं का दाना 
सोने का बल तोल रहा है 
कौन हमारे अमृत घट में 
चुपके से विष घोल रहा है .
                           "चरण"

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