Friday, June 10, 2011

तन स्वीकार नहीं करता मै

मन देना चाहो तो दे दो 
तन स्वीकार नहीं करता मैं 
एक विवशता और आड़े है 
सबको प्यार नहीं करता मैं .

कुंदन सा है बदन तुम्हारा 
कंचन सा है मन 
देह गंध से महक रहा है 
यह सारा उपवन 
रूप राशी की खान हो तुम 
इससे इंकार नहीं करता मैं 
किन्तु विवशता एक आड़े है 
सबको प्यार नहीं करता मैं .

मुस्काओ तो कुंद कलि की 
पाँखुरियाँ खिलती हैं 
सर्माओ तो झील किनारे 
सान्धिया निशा मिलती है 
वीणा की झंकार हो तुम 
इस से इंकार नहीं करता मैं 
किन्तु विवशता एक आड़े है 
सबको प्यार नहीं करता मैं .

शब्द तुम्हारे मुख से 
हीरे मोती बन झरते हैं 
कर्ण पटल को पल प्रतिपल जो -
उद्वेलित करते हैं 
चंचल मस्त बहार हो तुम 
इससे इंकार नहीं करता मैं 
किन्तु विवशता एक आड़े है 
सबको प्यार नहीं करता मैं .
                               "चरण"

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