Thursday, June 30, 2011

दो ग़ज़ल

वक्त ने हमको कहीं का नहीं छोड़ा
हर जगह तोड़ा कहीं जियादा कहीं थोड़ा

अपनी इच्छा से चले  मंजिल तलाशने
वक्त ने जब चाहा जिधर चाहा उधर मोड़ा

अपनी ही रफ़्तार से हमको लिए चला
जिसपर सवार था ,था वह वक्त का घोड़ा

जब सफलता की कहीं संभावना जगी
वक्त ने तत्काल ही अटका दिया रोड़ा

नादान नहीं ,पागल नहीं ,मासूम थे वे लोग
वक्त के संकेत पर अपनों का सर फोड़ा .
--------------------------------------------------
(२)
दान भी देते हैं लोग कर्ज की तरह
प्यार निभाते हैं मात्र फ़र्ज़ की तरह

टपका गए आप जो अधरों से शब्द विष
बढ रहा है ला इलाज़ मर्ज़ की तरह

हमने तेरी चाह में जीवन बिता दिया
अफशोस तुम हमसे मिले खुदगर्ज की तरह

जिस तर्ज ने इंसान को बहरा बना दिया
है तुम्हारी तर्ज भी उस तर्ज की तरह .
                                                 "चरण"

No comments:

Post a Comment