Monday, June 13, 2011

खूंटे से बंधी हुई गाय है यह जिन्दगी

खूंटे से बंधी हुई गाय है यह जिन्दगी 
प्रताड़ित विधवा की हाय है यह जिंदगी 

ललचाई आँखों से टुकुर टुकुर देखती 
प्यालों में बची हुई चाय है यह जिन्दगी 

धोके में फंसे हुए मुजरिम के बारे में 
शंकालु जूरी की राय है यह जिन्दगी 

गंगाजल जिसको न प्रभावित कर पाए 
सधी हुई वेश्या की आय है यह जिन्दगी 

छत की तलाश में भटक रहा कारवां
भूतपूर्व उजड़ी सराय है यह जिन्दगी 

बस्ती से दूर कहीं नाले पर बसा हुआ 
अस्पृश्य पिछड़ा समुदाय है यह जिन्दगी 

नोक पर त्रिशूलों की उगते हैं रात दिन 
आजकल मंदा व्यवसाय है यह जिन्दगी 

सामने कसाई के गर्दन झुकाए हुए 
हाय हाय कितनी असहाय है यह जिन्दगी .
                                                "चरण

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